हाल ही में इन्दिरा गांधी द्वारा लिखा गया एक पत्र वायरल हुआ, जिसमें न केवल उनके अनुच्छेद 35 ए के प्रति विरोध को जगजाहिर किया गया है, अपितु काँग्रेस पार्टी के दोहरे रुख को भी उजागर किया गया है। न्यूयॉर्क में रहने वाली डॉ॰ निर्मला मित्रा को लिखे पत्र में इन्दिरा गांधी ने कहा था, “मैं बहुत दुखी हूँ इस बात से कि कश्मीर से आप भी संबंध रखती हो और मैं भी, परंतु हम लोग वहाँ पर ज़मीन भी नहीं खरीद सकते। मुझे भारतीय प्रेस और उसके विदेशी समकालीन मुझे तानाशाह बनाने पर तुले हुए हैं, जिसके कारण मैं आवश्यक निर्णय भी नहीं ले सकती”। यही नहीं उन्होने इस पत्र का अंत कश्मीरी पंडितों और लद्दाख के बौद्ध निवासियों पर हो रहे अत्याचारों का उल्लेख करते हुए किया।
बता दें कि इस पत्र में इन्दिरा गांधी का इशारा अनुच्छेद 35ए की ओर था, जिसके अंतर्गत जम्मू और कश्मीर की विधानसभा को यह तय करने का अधिकार मिला था कि कौन कश्मीर के नागरिक हैं और कौन नहीं। इसके अंतर्गत जम्मू कश्मीर से बाहर रहने वाले किसी भी व्यक्ति को राज्य में संपत्ति का अधिकार तो छोड़िए, छात्रवृत्ति और अन्य नौकरी करने का भी अधिकार नहीं था। इस प्रावधान की सबसे ज़्यादा आलोचना इसलिए भी की जाती थी क्योंकि एक महिला को किसी बाहरी से विवाह करने पर उसके संपत्ति का अधिकार भी छीन लिया जाता था।
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इस पत्र से काँग्रेस का दोहरे रुख भी सबके सामने उजागर हो चुका है। यहाँ ये बताना आवश्यक है कि कैसे इन्दिरा गांधी ने अनुच्छेद 35ए का हटाया जाना अत्यंत आवश्यक बताया था। परंतु जब मोदी सरकार ने इस विचार को आगे ले जाते हुए 5 अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए के विशेषाधिकार संबंधी प्रावधानों को निरस्त किया, तो काँग्रेस के वर्तमान नेतृत्व ने ऐसा बर्ताव किया मानो इसे हटाना जम्मू कश्मीर के इतिहास में सबसे भयानक निर्णय था।
इस प्रकरण से यह सिद्ध हो जाता है कि इन्दिरा गांधी सरकार न तो राजनीतिक रूप से सशक्त थी, और न ही उनके पास वो राजनीतिक इच्छा थी जिसके बल पर वे कश्मीर का कायाकल्प कर सके। समय के साथ साथ काँग्रेस तो मानो राजनीतिक रूप से पंगु हो चुकी थी, और जो निर्णय इन्दिरा गांधी के लिए अत्यंत अहम माने जाते थे, उन्हे भी लागू करने से कतराने लगी।
इन्दिरा गांधी ने अनुच्छेद 35 ए को न हटाने के पीछे मीडिया का हवाला दिया था। परंतु मोदी सरकार ने दिखा दिया कि यदि राष्ट्रहित में निर्णय लेने हो, और आपके इरादे सशक्त हो, तो संसार की कोई शक्ति आपको अपना निर्णय लागू करने से नहीं रोक सकती। ऐसे में इन्दिरा गांधी द्वारा लिखे गए इस पत्र से पता चलता है कि काँग्रेस कैसे कश्मीर के मुद्दे पर शुरू से ही दोगलों की तरह बर्ताव करती आई है। अब चूंकि ये पत्र वायरल हो चुका है, इसलिए अब सोनिया गांधी को भाजपा के विरोध मोर्चा संभालने में बहुत मुश्किल होगी, चूंकि चिराग तले अंधेरा किसी को नहीं भाता। अनुच्छेद 370 के हटने पर पहले ही पार्टी के अंदर की दरारें सामने आ चुकी थी, जो अब इस पत्र के सार्वजनिक होने से और गहरी हो जाएगी।