सीएए के विरोध के नाम पर हो रही हिंसा ने कांग्रेस और भाजपा के बीच के अंतर को स्पष्ट रूप से सामने रखा है। जहां भाजपा एक स्पष्ट विचारधारा वाली पार्टी के रूप में सामने आई है, तो वहीं कांग्रेस एक ऐसे अवसरवादी पार्टी के रूप में सामने आई है, जिसे सत्ता की लालसा में उपद्रव का समर्थन करने से भी कोई हिचकिचाहट नहीं हो रही है। इसी बीच एक घायल पत्रकार से मिलकर यूपी सरकार के एक मंत्री ने दोनों पार्टियों के बीच के वैचारिक अंतर को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया, जबकि प्रियंका गाँधी वाड्रा दोनों से मिलीं।
सीएए के विरोध के नाम पर किए गए हिंसा में घायल पत्रकार ओम राज सैनी से मिलने राज्य सरकार में मंत्री कपिल देव अग्रवाल ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, ‘मैंने पुलिस वालों से बातचीत की है और उन्होंने बताया कि ओम राज सैनी को काम से लौटते वक्त एक गोली लगी थी। ऐसी स्थिति में मुख्यमंत्री के निर्देशानुसार मैं उनके घर गया और उनके परिवार को आश्वासन दिया कि उनके सभी स्वास्थ्य संबंधी खर्चों का वहन यूपी सरकार उठाएगी’।
कपिल देव अग्रवाल पर वामपंथियों ने सीएए के विरोध के दौरान मारे गए दो दंगाइयों के परिवारों से न मिलने के लिए आड़े हाथों लेने का प्रयास किया, जिसके जवाब में उन्होंने इन अवसरवादियों को आड़े हाथों लेते हुए पूछा, “मैं दंगाइयों के घर क्यों जाऊँ? जो दंगे फैलाना चाहते हैं और जो हिंसा करने पर आमादा है, वो समाज का भाग कैसे हो सकते हैं? यह हिन्दू मुस्लिम के बारे में नहीं हैं, मैं अभी अभी इस हिंसा में घायल हुए एक मुस्लिम पत्रकार से मिल कर आ रहा हूँ। आखिर क्या आवश्यकता है मुझे दंगाइयों के घर जाने की”। इस एक बयान से उत्तर प्रदेश के इस मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि हिंसक प्रदर्शनों के पीड़ितों और हिंसक प्रदर्शन करने वालों में क्या अंतर है। इसीलिए उन्होंने घायल पत्रकार से मिलना ज़्यादा उचित समझा।
परंतु दूसरी ओर प्रियंका गांधी वाड्रा उन्हीं लोगों के परिवारजनों से मिली, जो सीएए के विरोध के नाम पर हिंसा करते हुए मारे गए थे। काँग्रेस के सूत्रों के अनुसार उन्होंने बिजनौर के नहतौर इलाके का दौरा किया, जहां उन्होंने दो मृत दंगाइयों – अनस और सुलेमान के परिवारों से मुलाक़ात की। बता दें कि सीएए पर विरोध के नाम पर राज्य में बिजनौर में सबसे उग्र और हिंसक प्रदर्शन देखे गए थे। पुलिस पर दंगाइयों ने ईंट पत्थर भी बरसाए थे। ऐसे लोगों के परिवारों से मिलकर प्रियंका गांधी वाड्रा ने असामाजिक तत्वों को बढ़ावा ही दिया है। वो तो भला हो मेरठ की पुलिस का, जिन्होंने प्रियंका गांधी वाड्रा को शहर की सीमा से ही वापस भेज दिया, वरना न जाने और कितनी हिंसा भड़कती।
उत्तर प्रदेश मंत्री और प्रियंका गांधी वाड्रा के दौरों से ही उनकी विचारधारा का अंतर स्पष्ट हो जाता है। जहां भाजपा का ध्येय विरोध के नाम पर भड़काए जा रहे हिंसक प्रदर्शनों पर नियंत्रण करना है, तो वहीं काँग्रेस के लिए वोट बैंक की राजनीति ही सर्वोपरि है। इसीलिए भाजपा ने मृत दंगाइयों के परिवारों से मिलने से मना कर दिया, परंतु प्रियंका गांधी वाड्रा ने केवल वोट साधने के लिए ऐसे दंगाइयों के परिवारों से मिलना उचित समझा।