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ईरान और अमेरिका के बीच युद्ध जैसी स्थिति उत्पन्न होना भारत के लिए बिलकुल भी अच्छा नहीं है

एक तरफ चाबहार- दूसरी तरह कच्चे तेल के दाम

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
5 January 2020
in समीक्षा
ईरान
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आज-कल अमेरिका और ईरान पूरी दुनियाभर की मीडिया की सुर्खियों में छाए हुए हैं। कारण था कि भारतीय समयनुसार शुक्रवार अल सुबह अमेरिका ने इराक में ड्रोन अटैक करके ईरानी सेना के ताकतवर सेना कमांडर जनरल सोलेमानी को मार गिराया। भारत में कुछ लोग किस पर खुश हो रहे हैं तो कुछ दुखी। जम्मू-कश्मीर से तो अमेरिका के इस कदम के बाद प्रोटेस्ट भी किया गया था।

जनरल सोलेमानी की मृत्यु की गंभीरता का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि आज दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के मुहाने पर खड़ी हो गयी है। इस हमले के असर से पूरे विश्व के साथ-साथ भारत भी अछूता नहीं रह पाएगा।

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अब देखते है कि आखिर इस युद्ध जैसी स्थिति का भारत पर असर कैसे पड़ेगा:

1) तेल के आयात पर असर

भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयात करने वाला देश है, और भारत ने 2018-19 में 207.3 मीट्रिक टन कच्चे तेल का आयात किया। लेकिन यह जो तेल इम्पोर्ट किया जाता है, इसमें से लगभग हर तीन में से दो बैरल तेल Strait of Hormuz के रास्ते से ही भारत आता है। अब बता दें कि यह Strait of Hormuz एक पतला जलमार्ग है, जो फ़ारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। इसके सबसे संकीर्ण बिंदु पर, जलमार्ग केवल 21 मील चौड़ा है, और दोनों दिशाओं में शिपिंग लेन की चौड़ाई सिर्फ 2 मील है।

2018 में Strait of Hormuz के रास्ते से एक दिन में लगभग 21 मिलियन बैरल तेल का ट्रांसपोर्ट हुआ था, जो दिखाता है कि यह strait वैश्विक तेल सप्लाई के लिए कितना महत्वपूर्ण है। ईरान ठीक इस Strait के उत्तर में स्थित है। अगर युद्ध स्थिति बनती है तो ईरान इस Strait of Hormuzको निशाना बना सकता है।

हालांकि विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी नौसेना की बहरीन स्थित पांचवीं फ्लीट की उपस्थिति से जलमार्ग को बंद करने की ईरान की क्षमता पर संदेह है। परंतु ईरान की क्षमताओं को कम भी नहीं आँका जा सकता है। अगर ईरान ने थोड़ा भी बाधा डाली, तो इसके प्रभाव की वजह से विश्वभर में तेल की कीमतों में बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है, और यह भारत के लिए चिंता की बात होगी।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत ने वर्ष 2018-19 में लगभग 10 प्रतिशत तेल खाड़ी देशों से आयात किया है। और इराक से भारत सबसे अधिक मात्रा में कच्चा तेल आयात करता है। पिछले वर्ष अक्टूबर में भी हमें कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि देखने को मिली थी, जब ईरान के तेल टैंकरों पर सऊदी अरब के तट के पास हमला कर दिया गया था, अब दोबारा ईरान और अमेरिका के बीच बढ़ रहे तनाव से हमें ऑइल के दामों में वृद्धि देखने को मिल सकती है। बता दें कि भारत के पास इमरजेंसी क्रूड रिजर्व के तौर पर 3.91 करोड़ बैरल तेल मौजूद है, जो सिर्फ 9.5 दिनों के लिए ही काफी है।

 

अब दूसरा कारण जिससे भारत पर असर पड़ सकता है और वह हैं चाबहार पोर्ट।

बता दें की चाबहार पोर्ट ईरान में है और भारत, ईरान के इस बंदरगाह को विकसित करने के लिए लगभग 20 अरब डॉलर (करीब 1,363 अरब रुपए) की परियोजना पर काम कर रहा है। यह एक त्रिपक्षीय समझौता है जिसमे भारत और ईरान के साथ अफगानिस्तान भी शामिल है। यह बंदरगाह ईरान के लिए रणनीति की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण होने के साथ-साथ भारत के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है।

चाबहार पोर्ट के कारण भारत अपना माल अफगानिस्तान और ईरान को सीधे भेज सकता है। इसके अलावा एक बड़ी बात यह भी है कि चाबहार के कारण भारत अपने माल को रूस, तजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, कज़ाकिस्तान और उज़्बेकिस्तान भेज सकता है। इससे भारत की परिवहन लागत में काफी बचत होगी। अगर ईरान में युद्ध की स्थिति उत्पन्न होती है तो अवश्य ही चाबहार पोर्ट को विकसित करने के काम में बाधा आएगी और चीन तथा पाकिस्तान के खिलाफ तैयार की जा रही रणनीति को एक धक्का भी लगेगा।

इसलिए भारत को चाहिए कि इन दोनों देशों के बीच बढ़ रहे तनाव को अपने डिप्लोमैटिक चैनल के जरिये कम करने की कोशिश करे, ताकी देश को किसी प्रकार का नुकसान न हो। यह ध्यान देने वाली बात है कि भारत का इन दोनों देशों के साथ यानि अमेरिका और ईरान के साथ अच्छे संबंध हैं और वह इस तनाव को कम करने में मदद कर सकता है।

Tags: अमेरिकाईरानकच्चा तेलचाबहार
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