कल यानि गुरुवार को लखनऊ की विशेष अदालत ने UP में अवैध दस्तावेजों के आधार पर रह रहे तीन बांग्लादेशियों को पांच-पांच साल की कारावास की सज़ा सुनाई। इसके साथ ही उन सभी पर 19-19 हज़ार का जुर्माना भी लगाया गया है। इन सभी को वर्ष 2017 में सहारनपुर के एक मदरसे में पकड़ा गया था। इसके अलावा इनका संबंध बांग्लादेश के प्रतिबंधित संगठन अंसारुल बांग्ला टीम से भी था। अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर उस मदरसे नेे इन्हें पनाह कैसे दे दी, जबकि इनके पास तो कोई वैध कागज़ था ही नहीं। इसके अलावा मदरसे ने यह भी पुष्टि नहीं की, कि जिसको वे पनाह दे रहे हैं, वे एक आतंकी संगठन का सदस्य है। ऐसे मामलों के बाद हमें समझ आता है कि देश के मदरसों को संचालित करने के लिए हमें और ज़्यादा कड़े नियमों की जरूरत है ताकि मदरसों की कार्यशैली को पारदर्शी बनाया जा सके। इस दिशा में अगर भारत चाहे, तो अपने पड़ोसी श्रीलंका से भी सीख ले सकता है।
बता दें कि हाल ही में देश में बढ़ते कट्टरवाद से निपटने के लिए श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने मुस्लिम धार्मिक मामलों के विभाग को देश के सभी मदरसों को विभाग के साथ पंजीकृत करने का आदेश दिया है। श्रीलंका के प्रधानमंत्री, महिंदा राजपक्षे ने मुस्लिम धार्मिक मामलों के विभाग के अधिकारियों को सभी मदरसों के पाठ्यक्रम का पुनर्मूल्यांकन करने और शिक्षा मंत्रालय की सहायता से एक अद्यतन पाठ्यक्रम तैयार करने का निर्देश दिया है।
आपको याद ही होगा, पिछले वर्ष 21 अप्रैल को आतंकवादियों द्वारा ईस्टर के दिन तीन चर्च और पांच होटलों को 8 सीरियल बम धमाकों के जरिये निशाने पर लिया गया था। इस हमले में 277 लोगों की मौत हो गयी थी। ईस्टर संडे के दिन हुए इस हमले में 30 विदेशियों की मौत भी हुई थी। इस हमले में स्पष्ट रूप से इस्लामिक कट्टरवाद के स्पष्ट निशान थे जिससे इन हमलों को मदद मिली थी। उसके बाद अब श्रीलंका सरकार के इस फैसले को देश में इस्लामिक कट्टरपंथ पर हमले के रूप में देखा जा रहा है।
भारत में मदरसे अक्सर बुरी चीजों की वजह से ही खबरों में रहते हैं। कई मदरसों में जहां बच्चों का यौन शोषण किए जाने की खबरें आती रहती हैं तो वहीं, कई बार इनपर पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए पैसों के सहारे चलने का आरोप लगता रहता है। पिछले वर्ष शिया सेंट्रल वक़्फ़ बोर्ड ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया था कि देश में मदरसों को बंद कर दिया जाना चाहिए। बोर्ड ने आरोप लगाया था कि ऐसे इस्लामी स्कूलों में दी जा रही शिक्षा छात्रों को आतंकवाद से जुड़ने के लिए प्रेरित करती है। उन्होंने दावा किया था कि ऐसे मदरसे लगभग हर शहर, कस्बे, गांव में खुल रहे हैं और ऐसे संस्थान गुमराह करने वाली धार्मिक शिक्षा दे रहे हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि मदरसों के संचालन के लिए पैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी आते हैं तथा कुछ आतंकवादी संगठन भी उनकी मदद कर रहे हैं।
भारत में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार तो मदरसों को लेकर गंभीर दिखाई दे भी रही है, लेकिन बाकी राज्यों में हमें सरकारों की ओर से कोई खास कदम देखने को नहीं मिलते हैं। पिछले वर्ष जुलाई में यूपी सरकार ने निर्णय लिया था कि मदरसों से संबंधित सभी डीटेल सरकार के पास मौजूद होगी और इन पर निगरानी भी रखी जाएगी। सरकार ने यह निर्णय बिजनौर के एक मदरसे से हथियार बरामद होने के बाद लिया था। हथियारों की बरामदगी के बाद मदरसों की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे थे। यहां तक की कुछ लोगों ने ऐसे मदरसों को बंद तक करने की अपील की थी। लेकिन तब सरकार ने रास्ता निकालते हुए मदरसों की मॉनिटरिंग का फैसला किया था। अब भारत के अन्य राज्यों को भी उत्तर प्रदेश और श्रीलंका से सीख लेकर मदरसों को लेकर सख्त नियम कायदे बनाने की ज़रूरत है।