कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट में एक PIL दायर किया गया जिसमें वक्फ बोर्ड के करोड़ो की संपत्ति का हिसाब न होने, उनका दुरुपयोग और बिल्डरों को अवैध हस्तांतरण का आरोप लगाया गया था। इसी PIL पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और के एम जोसेफ की एक डिवीजन ने सुनवाई करते हुए इस मामले को लाइमलाइट में ला दिया है। सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने अब अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, सभी राज्यों और वक्फ बोर्ड से जवाब मांगा है।
इस मामले के याचिकाकर्ता और अधिवक्ता रऊफ रहीम तथा अली असगर रहीम ने वक्फ संपत्तियों के बारे में कुछ चौंकाने वाले आंकड़े और उन सम्पत्तियों के आश्चर्यजनक मूल्य के बारे में बताया जिसे राज्य इन संपत्तियों की गणना करने में विफल रहे हैं।
इस PIL के अनुसार, पश्चिम बंगाल राज्य में शिया वक्फ संपत्तियों का मूल्य लगभग 5,424 करोड़ रुपये है, जबकि इसी राज्य में सुन्नी वक्फ की संपत्ति 13,126 करोड़ रुपये है। इसी तरह कर्नाटक में, शिया वक्फ बोर्ड की संपत्ति लगभग 688 करोड़, जबकि सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास लगभग 99,311 करोड़ रुपये है।
इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि वक्फ संपत्तियों के बढ़ते मूल्य के बावजूद, न तो राज्यों और न ही वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्तियों की कोई सूची तैयार की है और न ही किए जा रहे उपयोग की। याचिका में यह भी दावा किया गया है कि अन्य राज्यों में भी वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का मूल्य बराबर या शायद अधिक होगा।
बता दें कि वर्ष 2013 में वक्फ अधिनियम लागू हुआ था और अधिनियम की धारा 4 (1 ए) प्रत्येक राज्य सरकार को अधिनियम में आने के एक वर्ष के भीतर सर्वेक्षण कराने के बाद वक्फ संपत्तियों की एक सूची बनाने लिए अनिवार्य करती है। जबकि याचिका में यह कहा गया है कि किसी भी राज्य ने इस तरह की सूची नहीं तैयार की है।
याचिकाकर्ताओं ने अपने याचिका में यह भी खुलासा किया है कि वक्फ अधिनियम की धारा 4 (1) राज्यों के लिए ‘वक्फ के Survey Commissioner’ की नियुक्ति के लिए बाध्य करती है इसके साथ ही सरकार अपने अनुसार Additional Survey Commissioners नियुक्त कर सकती है। यह प्रावधान अभी तक पेपर पर ही सिमट कर रह गया है।
याचिका में इन सम्पत्तियों के हो रहे दुरुपयोग को भी दर्शाया गया है। यही नहीं याचिकाकर्ताओं ने अदालत से छह महीने के भीतर वक्फ बोर्ड की संपत्तियों की गणना करने का आदेश देने का आग्रह किया है और साथ ही यह भी प्रार्थना की है कि सर्वेक्षण में उन संपत्तियों की भी गणना की जानी चाहिए जो पिछले चार दशकों में लीज या बिक्री के माध्यम से हस्तांतरित की गई हैं।
याचिका में जो भी चिंताएं व्यक्ति की गयी हैं वह निराधार नहीं हैं। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, “हाल के वर्षों में कई राज्य के वक्फ बोर्ड पर डेवलपर्स और निजी खरीदारों को वक्फ जमीन बेचने का आरोप लगा है।” अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री, मुख्तार अब्बास नकवी ने भी इस मुद्दे को वर्ष 2017 में चिंता व्यक्त की थी। उन्होंने तब कहा था, “जब से वक्फ बोर्ड की स्थापना की गई है, तब से रिक्त संपत्तियों के अतिक्रमण से संबंधित एक मुद्दा है जिसे मैं वक्फ माफिया कहता हूं।”
बता दें कि वक्फ बोर्ड भारत के सबसे बड़े भूस्वामियों में से एक है। दिसंबर 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वक्फ बोर्ड की पांच लाख पंजीकृत संपत्तियां है, जो लगभग छह लाख एकड़ भूमि में फैली हुई है।
अब जब यह मामला लाइम लाइट में आ चुका है और याचिका पर सुनवाई करते हुए SC ने राज्यों और बोर्डों से जवाब मांगा है तब इस मामले के और बढ़ने की उम्मीद है। यह एक ऐसा मामला है जो अभी तक कभी लोगों के सामने नहीं आया और वक्फ अभी तक मलाई खाता आया है। उनके सम्पत्तियों की गणना होने से देश को अवैध संपत्ति और लेनदेन के बारे में पता चलेगा।