पिछले दिनों में हम यस बैंक की अर्श से फर्श तक पहुंचने की कहानी देख चुके हैं। यस बैंक की विफलता का सबसे बड़ा कारण उसकी कर्ज़ देने की बेहद घटिया और स्तरहीन नीति मानी गई। यस बैंक ने एस्सेल ग्रुप, CG पावर, दीवान हाउसिंग फाइनेंस और वीडियोकॉन जैसी कंपनियों को लोन दिया और ये सभी कंपनियां बाद में डूब गयी और इसका खामियाजा यस बैंक को भुगतना पड़ा। इन्हीं कंपनियों में से एक कंपनी थी अनिल अंबानी ग्रुप कंपनी, जिसने यस बैंक से भारी भरकम 14 हज़ार करोड़ का लोन लिया और इस प्रकार यह कंपनी यस बैंक की सबसे बड़ी borrower कंपनी बन गयी।
हालांकि, मुकेश अंबानी ग्रुप यह लोन चुकाने में असफल रहा जिसका सीधा असर यस बैंक की वित्तीय हालत पर पड़ा। और सिर्फ यस बैंक ही नहीं, अनिल अंबानी ग्रुप ने विदेशों में भी कई बैंकों से लोन लिया और वहां भी अनिल अंबानी ने अपने आप को defaulter घोषित कर दिया। यह दर्शाता है कि मुकेश अंबानी ने अपने असफल बिजनेस स्टाइल से ना सिर्फ अपने ग्रुप को बल्कि कई बैंकों समेत कई कंपनियों की वित्तीय हालत को खस्ता कर दिया।
ऐसा ही हमें तब देखने को मिला था जब इसी वर्ष फरवरी में अनिल अंबानी ने यूके की एक अदालत में जानकारी दी थी कि उनकी नेटवर्थ जीरो है, वे दिवालिया हो चुके हैं इसलिए उनके पास चीनी बैंकों को कर्ज़ चुकाने के लिए पैसा नहीं है।
दरअसल, चीन के तीन बैंकों- इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना, चाइना डेवलपमेंट बैंक और एग्जिम बैंक ऑफ चाइना ने अंबानी के खिलाफ लंदन की अदालत में केस किया था। इन बैंकों ने अंबानी की कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशन (आरकॉम) को 2012 में 70 करोड़ डॉलर (5,000 करोड़ रुपए) का कर्ज दिया था, लेकिन आरकॉम भुगतान नहीं कर पाई। चीन के बैंकों ने UK में जब अनिल अंबानी पर केस किया तो अनिल अंबानी ने अपने आप को दिवालिया घोषित कर दिया।
इसी प्रकार अनिल अंबानी पर स्वीडन की कंपनी एरिक्सन का भी 458 करोड़ का कर्ज़ बकाया था और इस मामले में पिछले वर्ष उन पर जेल जाने तक की नौबत आ गई थी। पिछले वर्ष फरवरी में कोर्ट द्वारा अनिल अंबानी को साफ शब्दों में कह दिया गया था कि अगर वे इस कर्ज़ का भुगतान करने में असफल हो जाते हैं तो उन्हें जेल जाना होगा। उस स्थिति में अनिल अंबानी के भाई मुकेश अंबानी ने उनकी मदद की थी।
वर्ष 2007 में अनिल अम्बानी की कुल संपत्ति 45 बिलियन डॉलर थी और वे दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में छठे स्थान पर थे उनकी कुल संपत्ति बड़े भाई मुकेश अम्बानी से ज्यादा थी। आज आलम यह है कि अनिल अम्बानी को यूके की कोर्ट में जाकर अपने आप को दिवालिया घोषित करना पड़ रहा है। रिलायंस समूह के बुरे प्रदर्शन के पीछे सबसे बड़ा हाथ आरकॉम का ही था।
शुरुआती सालों में तो आरकॉम के मार्केट शेयर में 20 प्रतिशत की बढ़त देखने को मिली थी, लेकिन जल्द ही तकनीक के मामले में यह कंपनी बाकी कंपनियों से पिछड़ गयी। बाकी कंपनियां जीएसएम तकनीक का उपयोग कर रही थी, तो वहीं आरकॉम तब भी पुरानी सीडीएमए तकनीक का इस्तेमाल कर रही थी।
हालांकि, तब अनिल अंबानी ने आक्रामक रुख दिखाते हुए 12 महीनों के अंदर-अंदर जीएसएम तकनीक का उपयोग करना शुरू कर दिया। उसके बाद कंपनी द्वारा एक आक्रामक मूल्य नीति अपनाई गई देश के 11 केन्द्रों में 3जी स्पेक्ट्रम के लिए 8500 करोड़ रुपये के निवेश की मंजूरी दे दी गई।
इसका यह नतीजा निकला कि वर्ष 2010 के अंत तक कंपनी के साथ 10 लाख से ज़्यादा ग्राहक जुड़ गए थे। टेलीकॉम मार्केट में अचानक आई नई कंपनियों की बाढ़ ने कंपीटीशन को और ज़्यादा कड़ा कर दिया जिसका सभी टेलिकॉम कंपनियों के लाभ पर बहुत बुरा असर पड़ा। नतीजतन, आरकॉम ने 2012 में वोडाफोन के हाथों अपना नंबर 2 का स्थान खो दिया और वर्ष 2016 में तो आरकॉम नंबर 4 से भी नीचे खिसक गया।
स्पेक्ट्रम अधिग्रहण में बड़े पैमाने पर निवेश से बढ़ते कर्ज-बोझ के कारण कंपनी को 4जी की नई तकनीक में निवेश करने में बड़ी मुश्किलें पेश आईं। फर्म का कर्ज़ 2010 में 25,000 करोड़ रुपये से दोगुना हो गया, और पिछले वर्ष ही आर कॉम ने भारत में दिवालिया घोषित होने के लिए फाइल किया था।
लेकिन जब यह कंपनी डूबी तो उसने अपने साथ उन बैंकों को भी गर्त में धकेल दिया जिन्होंने अनिल अंबानी की कंपनी को कर्ज़ दिया था और आज यस बैंक की हालत देखकर इसका अनुमान भी लगाया जा सकता है। अनिल अंबानी की गलत व्यापार नीतियों की वजह से यस बैंक, IDBI समेत इंडस्ट्रियल एंड कमर्शियल बैंक ऑफ चाइना, चाइना डेवलपमेंट बैंक और एग्जिम बैंक ऑफ चाइना जैसे चीनी बैंकों को भी भारी खामियाजा उठाना पड़ा है।
इन बैंकों में आम जनता का पैसा होता है, जो इन बड़ी-बड़ी कंपनियों के साथ ही डूब जाता है। लेकिन कुल मिलाकर इतना तो साफ है कि इस मामले से हमारे देश का बैंकिंग सिस्टम और व्यापार करने वाली कंपनियाँ कई बड़ी सीख ले सकती हैं, ताकि भविष्य में किसी बैंक की हालत यस बैंक जैसी ना बन सके।