पिछले कुछ वर्षों से हम अक्सर सुनते और देखते आ रहे हैं कि कैसे केरल राज्य इस्लामिक स्टेट नामक आतंकी संगठन का गढ़ बनता जा रहा है। इस बात की पुष्टि एक बार फिर हुई है, जब ये सामने आया है कि अफ़ग़ानिस्तान के काबुल शहर में स्थित गुरुद्वारे पर हुए आतंकी हमले में केरल के एक युवा आतंकवादी का भी हाथ था।
मोहम्मद मुहसिन नामक यह युवक उन तीन आत्मघाती हमलावरों में शामिल था, जिन्होंने काबुल में स्थित गुरुद्वारे पर आत्मघाती हमला किया था। इसमें 28 सिख श्रद्धालु मारे गए थे, और कई अन्य घायल भी हुए थे।
इस्लामिक स्टेट के लिए काम करने वाली मैगज़ीन, अल नाबा ने तीनों आत्मघाती हमलावरों की तस्वीर जारी की। इसी मैगज़ीन के जरिए मुहसिन के माता पिता ने अपने बेटे की पहचान की। एक अफसर की माने तो टेलीग्राम एप पर उस उग्रवादी की मां को मैसेज भी आया था कि उसके बेटे को काबुल के हमले में शहादत मिली है। अब भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसियां ये पता लगाने में लगी हुई हैं कि कहीं बाकी हमलावर भी भारतीय तो नहीं थे।
भारतीय इंटेलिजेंस एजेंसियों के अनुसार ये सिद्ध हुआ है कि काबुल हमले में असली निशाना भारत था, क्योंकि हक्कानी नेटवर्क और लश्कर ए तैयबा के लड़ाकों ने शोर बाज़ार में स्थित गुरु हर राय गुरुद्वारा पर हमला करने का निर्णय लिया था, जिससे भारतीय दूतावास पर तैनात सुरक्षाबलों में भी दहशत फैलाई जा सके। इस आतंकी हमले का कोड नेम था “ऑपरेशन ब्लैक स्टार”, जिसे पाकिस्तानी हुक्मरानों के इशारे पर तालिबान के क्वेटा शूरा, लश्कर ए तैयबा और इस्लामिक स्टेट के आतंकियों ने मिलकर अंजाम दिया।
तालिबान और पाकिस्तान का इस हमले के पीछे एक ही उद्देश्य था – एक तो अल्पसंख्यकों की संख्या में कमी लाना, और दूसरा भारतीय राजनयिकों को निशाने पर लेना।
इस्लामिक स्टेट के जिस खुरासान मॉडयूल को इस हमले का श्रेय दिया गया, उसे अंजाम तक पहुंचाने में लश्कर ए तैयबा और हक्कानी नेटवर्क का भी बराबर का हाथ था, जिन्होंने एक विज्ञप्ति निकालकर बताया कि कैसे यह हमला भारत द्वारा कश्मीर पर लिए गए एक्शन का बदला है ।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि कहीं ना कहीं मोहम्मद मुहसिन के दिमाग में कश्मीर का मुद्दा कौंधा अवश्य होगा। परन्तु वास्तव में इस हमले के पीछे का उद्देश्य था कि अफ़ग़ानिस्तान में भारत का प्रभाव कम हो और वे इस देश को सदा के लिए छोड़ दें।
भारत अफगनिस्तान में लोकतान्त्रिक व्यवस्था का समर्थक रहा है। इसलिए तालिबान भारत की सक्रियता को अपने लिए खतरे समान मानता है।
परन्तु जिस तरह से मुहम्मद मुहसिन का उपयोग किया गया, उससे साफ पता चलता है कि इन आतंकी संगठनों की मंशा क्या है। उग्रवादी सोच पर पले बढ़े युवा वेस्ट एशिया में आतंक की शिक्षा लेकर सोचते हैं कि उन्होंने कश्मीर में होने वाले कथित अत्याचारों का बदला लिया है, परन्तु जिस तरह से इन कृत्यों का भारत में कुछ लोग समर्थन करते हैं, वह बताता है कि कैसे केरल जैसे राज्यों में आतंकवाद ने इतना विकराल रूप धारण किया है।
हालांकि यह केरल के लिए कोई नई बात नहीं है। उदाहरण के लिए एक उग्रवादी लड़का मलप्पुरम जिले से आईएस ज्वाइन करने के लिए निकला था, और बाद में पिछले वर्ष अफ़ग़ानिस्तान में मारा गया था।
इसके अलावा केरल में आतंकवाद को बढ़ावा देने में पीएफआई का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है। केरल में इस हेतु आतंकवादी तैयार करने में इसका भी बहुत बड़ा हाथ रहा है। दुर्भाग्यवश इस संगठन पर कार्रवाई तो बहुत दूर की बात, उल्टे राज्य सरकार से इसे राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त होने की आशंका है।
केरल को समझना होगा कि आवश्यक मुद्दों पर आंखें मूंदकर कुछ प्राप्त नहीं होगा, क्योंकि राज्य का वास्तविक शत्रु आईएस जैसे दुर्दांत आतंकी संगठन हैं, आरएसएस के स्वयंसेवक नहीं।
वहाबी मानसिकता और केरल के अरबीकरण के कारण वहां के नौजवान उग्रवाद की ओर अग्रसर हो रहे हैं, जबकि वहां की कम्यूनिस्ट सरकार यह धारणा फैलाती है कि केरल में तो सब कुशल मंगल है। ऐसे में केरल के एक उग्रवादी द्वारा काबुल में निर्दोष सिखों को मारना कोई कम गंभीर नहीं है, और यदि समय रहते सरकार नहीं चेती, तो उनके हाथ से केरल को फिसलने में देर नहीं लगेगी।