दिल्ली के दंगों ने अंतर्राष्ट्रीय मीडिया का वास्तविक स्वरूप एक बार फिर उजागर किया है, जो इसमें भी हिंदुओं को दोषी बनाने के लिए प्रयासरत हैं। अब पूर्वोत्तर दिल्ली पर उमड़े एक विकिपीडिया आर्टिकल ने खुलेआम हिंदुओं पर आरोप मढ़ना शुरू कर दिया है, जिसे अनेक भारतीयों ने आड़े हाथों लिया है।
इस पक्षपाती लेख में विकिपीडिया ने इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा मचाए गए उत्पात को बिल्कुल भी कवर नहीं किया है। उल्टे कपिल मिश्रा को पूरे प्रकरण के लिए दोषी सिद्ध करते हुए कहा गया है कि ये दंगे धार्मिक, राष्ट्रवाद और इस्लामोफोबिया के कारण हुए हैं।
पूर्वोत्तर दिल्ली की हिंसा से संबंधित लेख पिछले मंगलवार को ही विकिपीडिया पर लिखी गई थी। जिसे DBigXray नामक एक यूज़र ने लिखा है। प्रारम्भ से ही इन दंगों का दोष कपिल मिश्रा पर मढ़ा जा रहा है, और इस लेख के अनुसार कपिल मिश्रा के कथित भड़काऊ बयान ने सारा खेल बिगाड़ दिया था। बता दें कि कपिल मिश्रा ने जाफराबाद में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों ने जहां पर कब्जा किया था उसे तीन दिन के अंदर खाली कराने की मांग की थी।
हालांकि इस लेख में न तो वारिस पठान के बयानों पर प्रकाश डाला गया है, और न ही स्वरा भास्कर और आरजे साएमा के भड़काऊ बयानों पर कोई भी ध्यान केन्द्रित किया गया है। इतना ही नहीं, जब एक यूज़र ने विकिपीडिया के मॉडरेटर को वारिस पठन के भड़काऊ कमेंट शामिल करने के लिए रिक्वेस्ट किया, तो विकिपीडिया ने ये कहते हुए मना कर दिया, कि उनके पास वाजिब सोर्स नहीं है।
विकिपीडिया में पॉलिसी रही है कि चाहे कुछ भी हो, हर दावे को कई स्त्रोतों से verify कराना बेहद आवश्यक है। परंतु अपने ही नीतियों की धज्जियां उड़ाते हुए इस लेख में केवल एक ही पक्ष के विचारों को सामने रखा गया। चाहे सीएए समर्थक भीड़ द्वारा पत्रकारों को धमकाने की अफवाह हो, या फिर कपिल मिश्रा को पूरी दिल्ली प्रकरण के लिए एकमात्र दोषी बनाना, यहां तो मानो आम आदमी पार्टी के पीआर टीम की तरह बर्ताव किया गया था। मॉडरेटर ने अमानतुल्लाह खान के बारे में भी कोई उल्लेख करने से साफ मना कर दिया।
विकिपीडिया का उत्तर पूर्वी दिल्ली के दंगों पर लेख कुछ भी नहीं है अपितु कट्टरपंथी मुसलमानों द्वारा किए गए अपराधों को छुपाने की कोशिश है। रवीश कुमार से मानो ज्ञान लेते हुए इस लेख ने शाहरुख के अपराध को पूरी तरह माफ कर दिया। मोहम्मद शाहरुख नामक एक फरार आतंकी ने पिस्तौल लहराते हुए सीएए समर्थक प्रदर्शनकारियों एवं दिल्ली पुलिस के कर्मचारियों पर 8 गोलियां चलाई, पर उसे केवल एक शूटर के रूप में उल्लेख किया गया है और लेख में यह भी उल्लेख नहीं किया गया है कि वह एंटी-सीएए भीड़ से है।
जब अन्य उपयोगकर्ता विकिपीडिया लेख में इस जानकारी को शामिल करना चाहते थे, तो उन्हें मॉडरेटर द्वारा भगा दिया गया। वरिष्ठ संपादक, जिन्हें विकिपीडिया पर मॉडरेट करने के दौरान राजनीतिक रूप से तटस्थ माना जाता है, ये टिप्पणी कर रहा था कि यदि वह व्यक्ति हिंदू था, तो मीडिया ने उस पर ध्यान केंद्रित नहीं किया होगा, और घटना पर अधिक विवरण शामिल करने की आवश्यकता नहीं है।
इस लेख पर यदि ध्यान दें, तो एक आम आदमी को यही लगेगा कि हिंदुओं ने अपने आंतरिक मुगलों को जगाकर पूरे दिल्ली पर बर्बरता की। परंतु सच्चाई इससे कोसों दूर है। 25 फरवरी को, एक मुस्लिम भीड़ ने शांतिपूर्वक मार्च कर रहे हिंदुओं पर तेजाब फेंक दिया, परंतु लेख में इस घटना का उल्लेख है कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए क्षेत्र में तैनात किए गए अर्धसैनिक बलों पर प्रदर्शनकारियों द्वारा तेजाब फेंका गया था। कितनी चतुराई से विकिपीडिया ने हिंदुओं को दोषी बनाते हुए एक पक्ष को शांतिदूत करार दिया है।
आईबी ऑफिसर अंकित शर्मा की निर्मम हत्या ने हर देशवासी को झकझोर कर रख दिया है। परंतु यहां भी विकिपीडिया कहता है कि चाणक्यपुरी के खुफिया प्रशिक्षु अंकित शर्मा का शव लापता होने के एक दिन बाद जाफराबाद के एक नाले में मिला था। उनकी मौत के लिए परिस्थितियों की जांच की जा रही है। पोस्ट मॉर्डम रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें बार-बार चाकू मारा गया, जिससे उनकी मृत्यु हो गई। अंकित शर्मा की हत्या के आरोप में आप पार्षद ताहिर हुसैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है। लेकिन विकिपीडिया के अनुसार आम आदमी पार्टी या ताहिर हुसैन की इस हत्या में कोई भागीदारी नहीं है, अब तक इस केस में कोई प्रमाण नहीं मिले हैं।
कहने को विकिपीडिया अपने आप को को एक ओपन सोर्स प्लेटफॉर्म होने पर गर्व करता है जिसे किसी के द्वारा भी संपादित किया जा सकता है, परंतु जिस तरह नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के दंगों पर प्रोपेगेंडा लेख विकिपीडिया पर लिखा गया है, उसका अर्थ है कि केवल कुछ विशेष पंजीकृत उपयोगकर्ता ही इसका संपादन कर सकते हैं। परिणामस्वरूप आम उपयोगकर्ताओं को परिवर्तन करने के लिए उपयोगकर्ता DBigXray से अनुरोध करना पड़ता है, और उपयोगकर्ता DBigXray यह तय करता है कि कौन सी सामग्री शामिल कर सकते हैं और कौन नहीं।
यह मामला स्पष्ट संकेत देता है कि वामपंथियों ने अपनी प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए किस तरह लगभग हर उल्लेखनीय संस्थान में घुसपैठ कर रखा है। यह ऐसे समय में आया है जब अरबपति जॉर्ज सोरोस ने सार्वजनिक रूप से मोदी और ट्रम्प जैसे राष्ट्रवादी नेताओं को लेने के लिए 1 बिलियन डॉलर का वादा किया है। वैसे न्याय की लड़ाई शुरू हो चुकी है और राष्ट्रवादियों को अभी बहुत लंबा सफर तय करना है।