जब से कोरोना ने भारत में अपना पाँव पसारना शुरू किया है खासकर तबलीगी जमात के मरकज की घटना के बाद एक पैटर्न देखने को मिला और वो था मुस्लिम संप्रदाय के एक वर्ग द्वारा कोरोना के इलाज का बहिष्कार किया जाना। कभी डाक्टरों के ऊपर थूक कर तो कभी पत्थर बाजी कर कभी झूठ बोल कर। इस तरह के व्यवहार से इतिहास की एक घटना याद आती है जिसे मोहन दास करमचंद गांधी ने शुरू किया था। असहयोग आंदोलन जिसमें लोगों को ब्रिटिश सरकार से सभी कामों में असहयोग का ऐलान किया गया था। 1 अगस्त 1920 को असहयोग आंदोलन की शुरूआत हुई थी और आंदोलन के दौरान स्टूडेंट्स ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया था, वकीलों ने अदालत में जाने से इनकार कर दिया था, कई कस्बों और शहरों में कामगार हड़ताल पर चले गए थे। हालांकि, चौरा चौरी की घटना के बाद इस आंदोलन को महात्मा गांधी ने वापस ले लिए और यह आंदोलन असफल रहा।
अब तो भारत स्वतंत्र भी हो चुका है और केद्र में लोकतान्त्रिक रूप से आम चुनाव में जीत कर एक पार्टी ने मजबूत सत्ता में है। अभी किसी भी प्रकार से किसी भी वर्ग को खिलाफत या असहयोग आंदोलन करने का कोई मतलब नहीं बनता है लेकिन, कोरोना की इस लड़ाई में जिस प्रकार से मुस्लिम का एक वर्ग लगातार हरकते कर रहा है उससे यही सिद्ध होता है कि वे अब खिलाफत की राह पर उतर चुके हैं।
कभी डॉक्टरों पर पत्थरों से हमला किया जाता है, तो कभी उन पर थूका जाता है। इतना ही नहीं, गाजियाबाद में तो इन्हीं लोगों ने नर्सों के साथ छेड़खानी तक की थी। ऐसा ही हमें कल देखने को मिला जहां मुरादाबाद में एक इलाके में चेक-अप करने के लिए गए स्वास्थ्य कर्मियों पर पत्थरों की वर्षा कर दी गयी। मुस्लिम धर्म के कुछ लोगों ने संभवत: कोरोना वायरस से संक्रमित एक व्यक्ति को लेने गई मेडिकल एंबुलेंस पर पर जमकर पथराव किया। इस दौरान मानवता के दुश्मनों ने डॉक्टरों को बुरी तरह से पीटा और उन्हें बंधक बना लिया। इस हमले में दो एंबुलेंस पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो गई। वहीं 2 स्वास्थ्य कर्मी भी गंभीर रूप से घायल हो गए।
दिल्ली के निज़ामुद्दीन क्षेत्र के मरकज़ भवन से पकड़े गए लोगों को quarantine सेंटर भेजा गया, तो इन लोगों द्वारा सड़कों पर, सुरक्षाकर्मियों पर और यहां तक कि quarantine सेंटर में स्थित स्वास्थ्य कर्मचारियों पर थूके जाने की खबरें सामने आयीं।
Occupants were unruly since morning&made unreasonable demand for food items. They misbehaved&abused staff at Quarantine Centre.Also they started spitting all over&on persons working/attending them incl doctors.They also started roaming around hostel building:CPRO Northern Railway https://t.co/mKLP1UQgJg
— ANI (@ANI) April 1, 2020
पिछले कुछ दिनों से जहां-जहां पर तबलीगी जमात के सदस्यों के छुपाए जाने का शक भर भी है, वहां पर अगर पुलिस जाती है या कोई स्वास्थ्य कर्मचारी भी जाता है, तो उन पर जानलेवा हमला किया जाता है। उदाहरण के लिए राजस्थान को ही देख लीजिये। अजमेर से कुछ दूरी पर स्थित सरवर जिले में ख्वाजा फख़रुद्दीन चिश्टी की दरगाह है, जहां हर वर्ष कई अनुयायी उर्स मनाने आते हैं। राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के कारण बाहर निकलने पर सख्त मनाही थी। इसके बावजूद कई लोग दरगाह पर उर्स के लिए जमा हुए।
जब पुलिस को पता चला, तो वे घटनास्थल पर पहुंच उन लोगों को समझाने का प्रयास करने लगी। मधुबनी में भी जब पुलिस तबलीगी जमात के सदस्यों को ढूंढने के लिए दौरा करने पहुंची, तो एक इलाके में उन पर गोलियां बरसाई जाने लगीं। वहीं गुजरात के अहमदाबाद शहर में जमात के सदस्यों को पकड़ने पहुंचे पुलिस कर्मचारियों पर पत्थरबाजी भी हुई, जिससे एक पुलिस कर्मचारी घायल हो गया।
#Breaking 1st on TIMES NOW | A search party was fired upon for searching Markaz attendees in Madhubani.
TIMES NOW's Shyam with details. | #CoronaHarega pic.twitter.com/6Ue7hPzOCS
— TIMES NOW (@TimesNow) April 1, 2020
इंदौर के टाटपट्टी से भी इसी प्रकार की घटना सामने आई थी। इस इलाके में एक मरीज कोरोना पॉजिटिव मिला था। जिसके बाद डॉक्टरों की टीम जांच करने के लिए पहुंची। इस दल में दो महिला डॉक्टर थीं। जैसे ही महिला डॉक्टरों ने जांच की प्रक्रिया शुरु की, ठीक उसी वक्त उपद्रवियों की भीड़ ने हमला बोल दिया। दोनों महिला डॉक्टर किसी तरह जान बचाकर भागीं।
At 57 sec rioter is asking for hot water, perhaps to throw on medical workers. Pathetic!!! https://t.co/TGVlzO8OPK
— Vikas Pandey (Sankrityayan) Modi ji’s Family (@MODIfiedVikas) April 1, 2020
देश के कोने कोने से इसी प्रकार की खबर सामने आ रही है। राजस्थान के रामगंज इलाके में तो लोग इलाज करवाने बाहर ही नहीं आ रहे हैं तथा इनके लिए स्पेशल मस्जिद से ऐलान करवाना पड़ रहा है।
दिल्ली और कई अन्य स्थान से तो यह भी खबर आई कि एक तबका स्वास्थ्य कर्मियों को अपने बारे में जानकारी नहीं दे रहा है और उन्हें NPR का कर्मचारी समझ कर उनका विरोध कर रहे हैं।
यही नहीं सरकार के लॉकडाउन निर्देशों की धज्जिया उड़ाते हुए कई बार मस्जिदों में भीड़ जुटाने का मामला भी सामने आया है।
इस तरह का व्यवहार कौन करता है? जो भी कर्रवाई की जा रही है वो जनता के भले के लिए ही है और जांच से किसी प्रकार की हानि तो नहीं हो रही है फिर इस तरह से विरोध क्यों? ऐसा लगता है कि सहयोग न करने वाली सोच अभी भी भारत में है और वही इन्हें इस तरह से सरकार और स्वास्थ्य कर्मियों पर हमला करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। जान बचाने वाले किसी डॉक्टर पर हमला करना इनकी मानसिकता को ही दर्शाता है कि किस तरह से इनके दिमाग में जहर भरा पड़ा है जिसे ये अभी दिखा रहे हैं। गाजियाबाद में जिन नर्सों के साथ इस जमात के लोगों की आपत्तिजनक हरकत की तो कोई परिभाषा ही नहीं है।
पूरे देश में जिस तरह से मुस्लिम वर्ग का एक तबका अपना असली रंग दिखा रहा है उससे यह कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना महामारी के बावजूद ये सभी मोदी सरकार के खिलाफ अपनी कुंठा निकाल रहे हैं।