यूरोप में कोरोना ने खूब कहर बरपाया। इटली से लेकर स्पेन फ़्रांस और ब्रिटेन तक में इस वायरस का तांडव देखने को मिला। कई ऐसे देश हैं जो कोरोना के कहर आने के बावजूद अपने देश में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का मज़ाक उड़ाते रहे, उनमें से एक स्वीडन है। स्वीडन में कोरोना के अभी तक 14 हजार 300 केस सामने आए हैं जिसमें से 1500 से अधिक मौते हुई हैं जिसमें उम्रदराज़ व्यक्तियों का प्रतिशत कहीं अधिक है। स्वीडन की सरकार के खराब रवैये से वहाँ के बुजुर्गों में अब गुस्सा देखने को मिल रहा है। उनका कहना है कि सरकार द्वारा कोरोना को रोकने के लिए कदम न उठाने की कीमत बुजुर्गों को उठाना पड़ रहा है।
यूरोप के इस देश में लोग अभी भी कोरोना को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। यहां सरकार ने लॉकडाउन का कोई ऐलान नहीं किया है। यहां तमाम केस सामने आने के बावजूद लोग पार्टियां कर रहे हैं। पार्कों में भी 500-500 लोग इकट्ठा हो रहे हैं।
यह ध्यान देने वाली बात है कि दुनिया के अधिकतर देशों में भारत जैसे संयुक्त परिवार की व्यवस्था नहीं है जिसके कारण आज बुजुर्गों की हालत सबसे नाज़ुक है। स्वीडन में जितनी मौतें हुई हैं उनमे से 75 फ़ीसदी लोगों की आयु 70 साल से उपर है।
इसके बावजूद यहां लोगों का सार्वजनिक स्थलों, रेस्टोरेंट, बार या शॉपिंग सेंटर में जाना जारी है। कोरोना से संक्रमित ज्यादातर लोग उम्रदराज़ हैं। इसके बाद भी सड़कों पर, किसी दुकान में या फिर रेस्तरां में बैठे बुजुर्ग आसानी से दिख जाते हैं। स्वीडन के लोगों के इस व्यवहार की आलोचना दुनिया भर में हो रही है। स्वीडन में रहने वाले दूसरे देश के लोग उनके इस आचरण को समझ नहीं पा रहे हैं और सरकार के साथ उनकी भी जमकर आलोचना कर रहे हैं, लेकिन यहां की सामाजिक व्यवस्था उनके इस व्यवहार का बड़ा कारण है। स्वीडन के सिर्फ लोग ही नहीं, सरकार भी कोरोना के प्रति गंभीर नजर नहीं आ रही है। 2300 डॉक्टर और शैक्षणिक विद्वानों ने सरकार पर कोरोना को गंभीरता से ना लेने और कोई ठोस कदम ना उठाने का आरोप भी लगाया था।
आपको जानकर हैरानी होगी कि यहां के अधिकांश घरों में लोग अकेले रहते हैं या फिर उम्र ढलने के साथ ओल्ड एज होम में रहने चले जाते हैं। इसी का असर कोरोना के समय में देखा जा रहा है जब मरने वालों में 1/3 ऐसे ही ओल्ड एज में रहने वाले हैं। The Guardian की रिपोर्ट के अनुसार इन जगहों पर काम करने वाले कर्मचारी न तो मास्क लगा कर काम कर रहे और न ही ग्लव्स पहन कर।
जब भारत समेत अन्य देशों में जहां लोगों का सड़कों पर निकलना तक मना किया गया था तब स्वीडन में 500 लोगों को एकसाथ बाहर इकट्ठे रहने की मंजूरी थी। हैरान कर देने वाली बात यह है कि इस नियम के पीछे तर्क दिया जा रहा है कि यह लोगों का मौलिक अधिकार है।
स्वीडन की एक शोधकर्ता ईन्हॉर्न का मानना है कि नॉर्वे और फ़िनलैंड की तुलना में स्वीडन के केयर होम में कोरोना के अधिक मामले सामने आए हैं, इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि, स्कूलों और किंडरगार्टन या रेस्तरां या बार को बंद नहीं करना है। केवल राजधानी स्टॉकहोम में करीब सौ ओल्ड एज होम में कोरोना के मरीज पाए गए हैं। जहां सारी दुनिया स्वीडन के लॉकडाउन नहीं करने की आलोचना कर रही है, वहीं स्वीडिश पब्लिक हेल्थ एजेंसी ने साफ शब्दों में कह दिया है कि ऐसा करना मुमकिन नहीं है।
समान्यतः स्वीडन को एक प्रोग्रेसिव समाज के तौर पर देखा जाता है और यह लिबरल वर्ग में भी इस देश की काफी बड़ाई की जाती है लेकिन अब इसी देश में बड़े बुजुर्गों का जीना मुहाल हो गया है। कोरोना बढ़ने और उनकी मृत्यु का खतरा इतना बढ़ गया है कि सभी दहशत में है। स्वीडन के पड़ोसी डेनमार्क, फिनलैंड और नॉर्वे की बात करें तो यहां अभी तक काफी कम मौतें हुई हैं। फिर भी इन देशों की सरकार ने कड़े प्रतिबंध लगाते हुए लॉकडाउन कर रखा है। अब यह देखना है कि आखिर कब स्वीडन की सरकार को कोरोना वायरस की भयावहता के बारे में पता चलता है और कड़े कदम उठाती है। अगर कड़ा कदम नहीं उठाया गया तो इसका खामियाजा उस देश के वरिष्ठ नागरिकों को ही चुकाना पड़ेगा।