वामपंथी पोर्टल द वायर एक बार फिर से सुर्खियों में है, और इस बार भी गलत कारणों से। इस पोर्टल के लिए लेख लिखने वाली एक फ्रीलांस पत्रकार ने हाल ही में आत्महत्या कर ली, परन्तु अपने सुसाइड नोट में उसने जो व्यथा बताई है, उससे कई लोगों के रातों की नींद और दिन का चैन छिनने वाला है।
पत्रकार रिज़वाना तबस्सुम ने हाल ही में वाराणसी में आत्महत्या कर ली। वह एक फ्रीलांस पत्रकार थी, जो द वायर और द प्रिंट जैसे मीडिया वेबसाइट्स के लिए लेख लिखती थी। अपने सुसाइड नोट में उसने समाजवादी पार्टी के एक स्थानीय नेता शमीम नोमानी को अपनी आत्महत्या के लिए ज़िम्मेदार ठहराया है.
अब दिलचस्प बात यह है कि द वायर और द प्रिंट, दोनों के लिए रिजवाना ने लेख लिखे हैं, परन्तु दोनों ही पोर्टल मौन व्रत धारण कर लिए हैं। दोनों ही समाजवादी पार्टी को प्रत्यक्ष रूप से ज़िम्मेदार ठहराने से बच रहे हैं। अब कल्पना कीजिए, यही जगह एक भाजपा नेता होता, तो?
A journalist who wrote for portals like The Wire and BBC Hindi committed suicide in Varanasi. She has blamed a Samajwadi youth leader in her suicide note. None of the portals she wrote for bothered to cover her suicide & stand up for her. Sad. https://t.co/mUipAqqhaj
— Ajit Datta (@ajitdatta) May 4, 2020
हालांकि, ये कोई हैरानी की बात नहीं है। द वायर और समाजवादी पार्टी का तो चोली दामन का नाता रहा है। रोहिणी सिंह जैसों पर तो इस पार्टी की विशेष कृपा रही है। जब भी भाजपा को निशाने पर लेना हो, तो द वायर और समाजवादी पार्टी लगभग एक ही प्रक्रिया से काम करते हैं।
पिछले कुछ दिनों से द वायर के सितारे भी गर्दिश में हैं। तब्लीगी जमात ने जिस तरह से दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों में उत्पात मचाया है, उसके चक्कर में पूरे देश में आक्रोश उमड़ पड़ा है। स्वयं केंद्र सरकार ने भी माना है कि भारत के मामलों में तब्लीगी जमात का कार्यक्रम ही अप्रत्याशित उछाल के लिए स्पष्ट रूप से जिम्मेदार है। परंतु कुछ लोग तो सेक्युलरिज़्म की चाशनी में ऐसे डूबे हुए हैं कि वे इस सच को भी स्वीकारना नहीं चाहते, और सिद्धार्थ वरदराजन उन्हीं में से एक हैं।
जनाब ने एक महीने पहले ट्वीट किया था- “जिस तब्लीगी जमात के समारोह का आयोजन हुआ था, उसी दिन योगी आदित्यनाथ ने न सिर्फ रामनवमी पर अयोध्या में होने वाले मेले को मंजूरी दी, अपितु ये भी कहा था कि भगवान राम सबको कोरोना वायरस से बचा लेंगे”।
सिद्धार्थ ने उसी ट्वीट के नीचे एक छोटा सा स्पष्टीकरण दिया, परंतु न तो उन्होंने ट्वीट डिलीट किया और न ही माफी मांगी। फलस्वरूप यूपी सरकार को एक्शन लेने के लिए बाध्य होना पड़ा और यूपी सरकार ने एफ़आईआर दर्ज कराई। मृत्युंजय कुमार कहते हैं, “हमारी चेतावनी के बावजूद इन्होंने अपने झूठ को ना डिलीट किया ना माफ़ी माँगी। कार्रवाई की बात कही थी, FIR दर्ज हो चुकी है आगे की कार्रवाई की जा रही है। अगर आप भी योगी सरकार के बारे में झूठ फैलाने की सोच रहे हैं तो कृपया ऐसे ख़्याल दिमाग़ से निकाल दें।”
हमारी चेतावनी के बावजूद इन्होंने अपने झूठ को ना डिलीट किया ना माफ़ी माँगी।
कार्यवाही की बात कही थी, FIR दर्ज हो चुकी है आगे की कार्यवाही की जा रही है।
अगर आप भी योगी सरकार के बारे में झूठ फैलाने के की सोच रहे है तो कृपया ऐसे ख़्याल दिमाग़ से निकाल दें। pic.twitter.com/1xPWWQVxGx
— Mrityunjay Kumar (@MrityunjayUP) April 1, 2020
इतना ही नहीं, जब देश हंदवारा ऑपरेशन में वीरगति को प्राप्त हुए 5 योद्धाओं के बलिदान से उबरा भी नहीं था, उस वक्त द वायर ने अपनी खबर में आतंकियों को ‘कथित आतंकी’ की संज्ञा दी थी. द वायर ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि वह इतना निम्न स्तर का पोर्टल क्यों माना जाता है। प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट को ना सिर्फ उसने तोड़ा मरोड़ा, अपितु आतंकवादियों का बचाव करने का प्रयास भी किया। द वायर और निकृष्टता का जब उल्लेख होगा, तो बरबस ही एक ख्याल आता है, दोनों अलग अलग होते हैं क्या?