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‘फ्री में कुछ भी नहीं’, PM मोदी तैयारी कर रहे हैं कि किसी को भी मुफ्तखोरी की आदत न हो, भले ही मनरेगा में पैसा लगाना हो

रोजगार देंगे, मुफ्तुखोरी कितने दिन काम आएगी

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
19 May 2020
in मत
सरकार
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एक कहावत है कि दुनिया में कुछ भी फ्री या निशुल्क नहीं होता, कुछ न कुछ तो कीमत चुकनी पड़ती है। अगर आपको एक बार फ्री की आदत लगी तो उससे आपका ही नुकसान होना तय है। इसका अर्थ यह है कि कुछ पाने के लिए आपको कुछ तो देना ही होगा। भारत में प्रधानमंत्री मोदी ने वर्ष 2014 में सत्ता संभालने के बाद से इसी यथार्थ का पालन किया है।

दरअसल, इस कोरोना महामारी के बीच में दुनिया के अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्थाएं डावांडोल स्थिति में हैं, लेकिन फिर फिर भी हमारे देश के कुछ वामपंथी अर्थशास्त्री और विपक्षी पार्टियों का कहना है कि डिमांड को बढ़ाने के लिए सरकार को सभी गरीबों के खाते में रुपया ट्रान्सफर कर देना चाहिए। कांग्रेस के राहुल गांधी का कहना है कि,”आज किसानों, मजदूरों और गरीबों के खाते में सीधे पैसे डालने की जरूरत है।“ उन्होंने कहा, ”आप (सरकार) कर्ज दीजिए, लेकिन भारत माता को अपने बच्चों के साथ साहूकार का काम नहीं करना चाहिए, सीधे उनकी जेब में पैसे देना चाहिए। इस वक्त गरीबों, किसानों और मजदूरों को कर्ज की जरूरत नहीं, पैसे की जरूरत है।“

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राहुल गांधी का ह्यूस्टन इवेंट आयोजित करने वाली संस्था CAIR अमेरिका में आतंकी संगठन घोषित, हिंदू घृणा फैलाने वाली संस्था के अलकायदा, हमास जैसे आतंकी संगठनों से मिले रिश्ते

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यह सुझाव देश के और देश की जनता के लिए कितना खतरनाक है ये शायद राहुल गांधी के समझ से परे की चीज़ है। अगर सरकार ने फ्री में रुपये बांटना आरंभ किया तो लोग अपना काम करना बंद कर देंगे और बस बैठ कर सरकार द्वारा भेजे गए रुपये का इंतज़ार करते रहेंगे। एक बार आदत लगने पर वे अपनी छोटी से छोटी जरूरतों के लिए भी सरकार पर ही निर्भर हो जाएंगे। लोगों को लगेगा कि जब सरकार दे ही रही है तो हम क्यों करे।

इसी कारण से जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज की घोषणा की तो यह सुनिश्चित किया कि एक भी रुपया फ्री न बांटा जाए। सरकार ने लिकुइडिटी उपायों के जरीय मार्केट में कैश की कमी नहीं होने पर ध्यान दिया जिससे कंपनियाँ बची रहें। 20 ट्रिलियन के पैकेज में से आधे को लिकुइडिटी तथा RBI के कम इंटरेस्ट पर रुपयों के Transmission पर ध्यान दिया गया था।

यही नहीं सरकार ने अतिरिक्त 40 हजार करोड़ मनरेगा के लिए आवंटित किया था जिससे शहरों से घर जा रहे मजदूरों को मनरेगा के जरीय रोजगार मिल सके।

हालांकि, JAM यानि जनधन, आधार और मोबाइल के जरिये सभी गरीबों के खाते में रुपये ट्रांसफर करने का विकल्प सरकार के पास था, लेकिन फिर भी केंद्र सरकार ने यह रास्ता नहीं अपनाया। इससे लोगों को फ्री के रुपयों की आदत लग सकती थी जिसका खामियाजा बाद में इन मजदूरों के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को भुगतना पड़ता।

यही कारण था कि मोदी सरकार ने यूनिवर्सल बेसिक इंकम योजना का भी विरोध किया था। पिछले चुनाव में कांग्रेस की न्याय योजना इसी UBI के तहत काम करती। उस समय प्रधानमंत्री के इकनॉमिक एडवाइजरी काउंसिल के चेयरमैन बीबेक देबोरोय ने कहा था कि लोगों को मिनिमम इंकम के स्थान पर उनके खाते में सबसिडी का डायरेक्ट ट्रान्सफर करना ज्यादा अच्छा है क्योंकि मिनिमम इंकम से लोगों को यह लगेगा कि सरकार दे ही रही है तो काम क्यों करना।

इसीलिए यह आवश्यक है कि सरकार यह सुनिश्चित करे कि जनता को किसी भी प्रकार प्रकार से फ्री में मिलने वाली योजना की आदत न लगे क्योंकि इससे देश को ही नुकसान होगा। यही नहीं इससे देश की मैक्रोइकनॉमिक स्थिरता भी अस्थिर होगी।

पिछली बार जब देश वर्ष 2008-09 में आर्थिक संकट से जूझ रहा था तब कांग्रेस की सरकार थी। उस समय, पी चिदंबरम एक वित्त मंत्री थे और उन्होंने 3 करोड़ छोटे और मार्जिनल किसानों के लिए पहले बड़े पैमाने पर कृषि ऋण माफी की घोषणा कर दी थी जिसकी कुल लागत लगभग 60,000 करोड़ रुपये थी।

इसके अलावा, सरकार ने मनरेगा जैसी योजनाओं के माध्यम से खर्च बढ़ाया जिसके कारण देश का fiscal deficit 6 प्रतिशत से ऊपर चला गया था। कांग्रेस के नेतृत्व वाली UPA सरकार यही नहीं रुकी, बल्कि देश के PSUs को उन्होंने उद्योगपतियों की मदद करने के लिए क्रेडिट देने के लिए कहा।

यह सभी उपाए सिर्फ डिमांड साइड ही थे और इसका परिणाम नकारात्मक हुआ। देश में मुद्रास्फीति दो अंकों में पार कर गई। इसके साथ ही प्याज और सब्जी की कीमतों में इतनी भारी वृद्धि हुई कि लोग सड़कों पर उतरने लगे। अगले कुछ ही वर्षों में, भारत दुनिया की सबसे नाजुक पाँच अर्थव्यवस्थाओं में से एक था, जिसकी कुल विकास दर 5 प्रतिशत से भी नीचे थी।

वर्ष 2012 आते आते, देश की मैक्रोइकोनॉमी पूरी तरह से डांवाडोल स्थिति में आ गई थी और अगर वर्ष 2014 में एक नई सरकार सत्ता में नहीं आती तो भारत के अर्थव्यवस्था की कहानी खत्म थी। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि पिछली बार जब हमने डिमांड साइड के उपायों से निपटने की कोशिश की थी तब देश की मैक्रोइकोनॉमी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा था। यही कारण है कि इस बार, मोदी सरकार ने सप्लाइ साइड के जरीये व्यापक आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित कर इस आर्थिक संकट से निपट रही है। इससे देश की अर्थव्यवस्था भी गतिमान रहेगी तथा लोगों को उनके मेहनत का फल भी मिलेगा और किसी को फ्री में रुपये लेने की आदत भी नहीं लगेगी।

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