कभी कभी कुछ लोगों और उनकी हरकतों को देख कर एक बार तो आपके मन में भी ये बात आई होगी, “जब ऐसे लोग हो, तो दुश्मनों की क्या ज़रूरत”। जब गलवान घाटी में चीन के विश्वासघात के बाद भारत की जनता पाकिस्तान की तरह चीन को भी कड़ा सबक सिखाना चाहती है, तो देश में कुछ महानुभाव ऐसे हैं, जिनके लिए चीन की भलाई ज़्यादा महत्वपूर्ण है।
उदाहरण के लिए आउटलुक के इस लेख को देखिये जिसने स्पष्ट बोल दिया कि चीन के इम्पोर्ट्स को रोक पाना भारत के लिए लगभग नामुमकिन है। इस शीर्षक से ही आप समझ सकते हैं कि आउटलुक वास्तव में कितना भारतीय है, “बॉयकॉट चाइना यथार्थवादी नहीं है – भारत ज़्यादा से ज़्यादा चीन के 30 प्रतिशत इम्पोर्ट्स रोक पाएगा”।
पर ये तो मात्र प्रारम्भ है। ऐसे कई पोर्टल हैं, जो खाते भारत का हैं, लेकिन वफादारी भारत के शत्रुओं के प्रति होती है। इन्हीं में शामिल हैं द लॉजिकल इंडियन, जिसने आउटलुक की परिपाटी पर ये बात कही कि कैसे भारत का आत्मनिर्भर बनने का सपना छलावा मात्र है, और भारत चीन के बढ़ते ‘प्रभुत्व’ को रोकने में सक्षम नहीं है। द लॉजिकल इंडियन ने ये भी बताया कि बॉयकॉट चाइना का यह सौदा भारत को बहुत महंगा पड़ेगा।
अब बात भारत को नीचा दिखाने की हो, और द वायर न सहयोग करे, ऐसा हो सकता है क्या? द वायर ने चीन को श्रेष्ठ दिखाने में अपने लेख में कोई कसर नहीं छोड़ी है, और भारत को पिछड़ा बताने का ज़बरदस्त प्रयास किया गया है। द वायर के अनुसार भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर चीन है, और जब भारत के पास मैन्युफैक्चरिंग में कोई भी खूबी या उचित क्षमता न हो, तो चीन से पंगा मोल लेना हद दर्जे की बेवकूफी होगी।
इतना ही नहीं, द वायर ने ये भी बताया है कि कैसे भारत की आधे से अधिक जरूरतों को चीन पूरा करता है, और ऐसे में बॉयकॉट चाइना को बढ़ावा देना अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर होगा। इसके लिए द वायर ने HCQ का हवाला भी दिया, जिसका रॉ मैटिरियल चीन से आता है। शायद द वायर ने केंद्र सरकार के उस फैसले को जानबूझकर अनदेखा किया है।
हाल ही में भारत सरकार ने आत्मनिर्भर भारत प्रोग्राम के अंतर्गत अपने कुछ अहम उत्पादन क्षेत्र जैसे स्वास्थ्य, रक्षा सामग्री में आत्मनिर्भरता के लिए कदम बढ़ाए हैं। इसी दिशा में आगे बढ़ते हुए उन्होंने एपीआई यानि Active Pharmaceutical Ingredients, जिनसे कई दवाइयाँ बनाई जा सकती हैं, पर चीन की पकड़ को ढीली करने और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने हेतु केंद्र सरकार ने कुछ अहम कदम उठायें हैं। द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार इस परिप्रेक्ष्य में आवश्यक गाइडलाइन्स जल्द ही जारी कर सकती है।
पर असल बात तो बिजनेस इनसाइडर की रिपोर्ट से सामने आई। अपने रिपोर्ट में बिजनेस इनसाइडर ने बॉयकॉट चाइना की मांग का मज़ाक उड़ाते हुए कहा, “कहना बहुत आसान है, पर करना उतना ही मुश्किल। भारत ने अगर बॉयकॉट चाइना की भावना को बढ़ावा दिया, तो उसके लिए बहुत बड़ी मुसीबत खड़ी हो सकती है, क्योंकि उसके लिए फिर स्मार्टफोन, एसी और गाडियाँ बहुत महंगी हो जाएगी”। मतलब इन पोर्टल्स को भारत के स्वाभिमान से ज़्यादा अपने निजी सुख की चिंता है, और इसके लिए इन साइट्स की जितनी निंदा की जाये, उतनी कम है।
भारत को कभी भी बाहरी आक्रमण से उतना भय नहीं रहा है, जितना कि ऐसे अंदरूनी विश्वासघातियों से। जिस तरह से इन पोर्टल्स ने चीन के हितों को बचाने का प्रयास किया है, उससे इनमें और चीनी मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स में कोई विशेष अंतर नहीं दिखाई देता है। अगर अंतर है, तो सिर्फ इतना कि ग्लोबल टाइम्स चीन में रहकर चीन के लिए काम करता है, और द वायर, द लॉजिकल इंडियन जैसे पोर्टल भारत में रहकर चीन का गुणगान करते हैं।