शीर्ष से आगे सिर्फ पतन होता है और स्वयं का नियंत्रण न होने पर यह पतन और अधिक गति से होता है। आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का पतन शुरू हो चुका है। उनके द्वारा लिए गए एक के बाद एक फैसले उन्हीं पर भारी पड़ रहे हैे। इसी कड़ी में 15 जून की रात को भारतीय सेना पर हमले करवाने का दांव भी उल्टा पड़ गया और झड़प में PLA की करारी हार हुई। इस हार ने शी जिनपिंग की चीन की जनता और कम्युनिस्ट पार्टी दोनों पर से नियंत्रण कमजोर कर दिया है। जिस तरह पहले शी जिनपिंग एक कद्दावर नेता के रूप में चीन पर शासन करते थे शायद अब वे नहीं कर पाएंगे।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बतौर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का कार्यकाल बेहद उतार-चढ़ाव भरा रहा है। चाहे हॉंग कॉंग में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शन में भयंकर आक्रोश बढ़ने की बात हो, या फिर ताइवान के स्वतंत्रता आंदोलन और उसके लिए बढ़ता वैश्विक समर्थन हो, या फिर वुहान वायरस से निपटने में चीनी प्रशासन की अक्षमता ही क्यों ना हो। वुहान वायरस पर शी जिनपिंग के प्रशासन की चुप्पी और उसके लचर व्यवस्था ने आग में घी का काम किया। वुहान वायरस के कारण उत्पन्न आर्थिक संकट की स्थिति ने चीन के नागरिकों में शी जिनपिंग के खिलाफ रोष भर दिया। यहाँ तक कि कोरोना के कारण चीन में लगाए गए लॉकडाउन से जिनपिंग के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो चुका था और लोग सड़कों पर उत्तरने लगे थे।
सिर्फ जनता ही नहीं कम्युनिस्ट पार्टी के अंदर भी शी जिनपिंग के खिलाफ माहौल बना हुआ है और अब कई नेता शी जिनपिंग से छुटकारा चाहते हैं। एशिया टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन में माओ जेडोंग की सरकार में उप वाणिज्य मंत्रालय संभालने वाले मंत्री के 70 वर्षीय बेटे और चीन के बड़े व्यापारियों में से एक रेन जिकियांग ने शी जिनपिंग के खिलाफ सीधा मोर्चा खोल दिया है। Asia times की ही रिपोर्ट के मुताबिक कम्युनिस्ट पार्टी के कई टॉप नेताओं में वर्ष 2012 से लेकर अब तक जिनपिंग द्वारा की गई सभी गलतियों के एक रिकॉर्ड के तौर पर एक खुला खत भी पिछले कई दिनों से सर्कुलेट किया गया था। यह दिखाता है कि कम्युनिस्ट पार्टी में जिनपिंग की पकड़ पहले से काफी कमजोर पड़ चुकी है।
जब शी जिनपिंग ने देखा कि लोगों में कोरोना की वजह से असंतोष बढ़ रहा है तो उन्होंने उसी विरोध को दबाने के लिए चाल चलते हुए भारत के साथ बार्डर पर तनाव बढ़ाया जिससे चीन में चीनी राष्ट्रवादी भावना बढ़े और उनके खिलाफ बढ़ रहा विरोध भारत तथा अन्य देशों के खिलाफ भावना में बदल जाए। चीन की एक-पार्टी प्रणाली में किसी भी प्रकार के विरोध या आलोचना की अनुमति नहीं होती है, लेकिन कोरोना के कारण पनपे विरोध को शी जिनपिंग महसूस कर सकते हैं इसी कारण से वे इन विरोधो को दबाने का भरपूर प्रयास कर रहे थे।
परंतु ये चाल भी उनकी उल्टी पड़ गयी और 15 जून को PLA को काफी नुकसान उठाना पड़ा। यह नुकसान इतना था कि चीन ने अपने यहाँ हताहत सैनिकों की संख्या और नाम तक नहीं बताया। इस कारण चीन की जनता में और उबाल आ चुका है और वे सभी वीबो पर अपने गुस्से का प्रदर्शन कर रहे हैं और चीनी सरकार से सवाल पूछ रहे हैं।
शी जिनपिंग ने जिस कारण से भारत के साथ विवाद बढ़ाया था वह उन्हीं पर भारी पड़ रहा है। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि South China Sea में भी चीन बैकफुट पर ही है। एक तरफ ताइवान ने चीन को नानी याद दिलाई है तो वहीं जापान ने भी अपने द्वीपों पर एयर डिफेंस मिसाइल तैनात कर दिया है। वहीं अमेरिका भी उसी क्षेत्र में अपने तीन-तीन एयरक्राफ्ट कैरियर के साथ निगरानी कर रहा है और चीन की किसी भी गलती का बस इंतजार कर रहा है। BRI को पहले ही झटका लग चुका है, तो वहीं हाँग-काँग में लगातार लोकतंत्र के लिए प्रदर्शन हो रहा है और साथ में उइगर मुस्लिमों के साथ चीन के निर्मम व्यवहार की खबरें चीन की जनता के साथ विश्व भर में फैल चुकी हैं। वहीं कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था चीन में निचले स्तर पर है इस बार तो चीन ने वार्षिक आर्थिक वृद्धि लक्ष्य भी नहीं निर्धारित किया है।
इन सभी कारणों से कम्युनिस्ट पार्टी में असंतोष भी भयंकर स्तर से बढ़ चुका है रहा। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म वीबो पर चीन की सरकार के खिलाफ असंतोष की झलक मिली। ऐसे में अगर शी जिनपिंग को कम्युनिस्ट पार्टी से डंप कर दिया जाता है तो इसमें कोई हैरानी नहीं होगी और अगर वे अपनी कुर्सी बचाने में सफल भी रहते हैं तो उतने नियंत्रण के साथ सत्ता नहीं चला पाएंगे जैसे वे कोरोना से पहले चलाते थे।