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अशोक गहलोत ने धीरे-धीरे पायलट को किनारे की ओर सरकाया, और मौका मिलते ही ज़ोर का धक्का दे डाला

वाह रे गहलोत तेरी राजनीति!

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
15 July 2020
in मत
आरक्षण

(PC: DNA India)

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सचिन पायलट कांग्रेस से बाहर किए जा चुके हैं। जिस तरह के नेता अशोक गहलोत हैं और जिस राजनीतिक कलाबाजी करने के लिए “जादूगर” के रूप में वह जाने जाते हैं उसे देखते हुए पहले ही यह कयास लगाए जा रहे थे कि सचिन पायलट को हटाने के लिए गहलोत ने बेहद ही खतरनाक चक्रव्युह बनाया था। इसकी शुरूआत विधानसभा चुनावों के दौरान हो गई थी और फिर सचिन पायलट इस चक्रव्युह में फँसते चले गए। उन्हें इस प्रकार से नजरंदाज किया गया कि वह अपने आत्मसम्मान की रक्षा करने के लिए बगावती रुख अपनाने को मजबूर हो गए। अशोक गहलोत को इसी क्षण का इंतज़ार होगा जिससे सचिन पायलट को कांग्रेस से बाहर किए जाने का रास्ता साफ हो सके।

राजस्थान की राजनीति में दरकिनार किये जाने की कहानी स्वयं सचिन पायलट ने कही और बताया कि कैसे अशोक गहलोत ने उन्हें व्यवस्थित तरीके से हटाने की चाल चली। सचिन पायलट ने इंडिया टुडे मैग्जीन से विशेष बातचीत में कहा कि राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से अशोक गहलोत गैंग पार्टी में हावी हो गया है, जिसके चलते हमें अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़ा। राहुल के हस्तक्षेप के सवाल पर पायलट ने बताया कि, “राहुल गांधी अब कांग्रेस अध्यक्ष नहीं हैं। राहुल ने जब से इस्तीफा दिया, गहलोत और उनके कांग्रेस के दोस्तों ने मेरे खिलाफ मोर्चा खोल लिया। यहां तक कि आत्मसम्मान के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा था।“

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दरअसल, अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को कभी पसंद ही नहीं किया और विधानसभा चुनावों के दौरान से ही उनके पीछे पड़े थे।

इसके बाद वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद सचिन पायलट को कांग्रेस की कमान दी गयी थी। सचिन ने भी सीपी जोशी की तरह ही खूब मेहनत की और कांग्रेस को दोबारा मुक़ाबले के लिए तैयार कर दिया। लेकिन जब चुनाव हुए तो अशोक गहलोत ने ऐसी राजनीतिक बिसात बिछाई की सचिन पायलट मुख्यमंत्री पद के रेस से बाहर हो गए। तब गहलोत ने चाल चलते हुए अपने 11 नेताओं को निर्दलीय चुनाव लड़वा दिया। यही नहीं अपने करीबी राष्ट्रीय लोक दल के सुभाष गर्ग को भी टिकट दिलाकर जीत दीलवाई। जब परिणाम आए तो कांग्रेस बहुमत से 1 सीट दूर थी ऐसे में अशोक गहलोत ने निर्दलीय और राष्ट्रीय लोक दल की एक सीट से अपने दावे को और मजबूत किया जिससे कांग्रेस की आलाकमान को उन्हें मुख्यमंत्री पद सौपना ही पड़ा। सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री बनाया गया।

यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि अशोक गहलोत यही नहीं रुके और आगे के लिए भी जाल बिछा कर उन्हें पार्टी में इस तरह से साइड लाइन किया कि सचिन पायलट बगावत पर उतर आए और अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली।

सबसे पहले तो अशोक गहलोत ने 10 जनपथ में अपनी स्थिति को मजबूत किया। लोक सभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद सोनिया गांधी को फिर से अन्तरिम अध्यक्ष बनाया गया। इससे कांग्रेस के सभी ओल्ड गार्ड्स को अपनी स्थिति मजबूत करने का मौका मिल गया और अशोक गहलोत को ऐसे मौके की ही तलाश में थे। गहलोत ने इस मौके का फायदा उठाते हुए सिर्फ सोनिया गांधी ही नहीं, बल्कि प्रियंका गांधी को अभी अपने पक्ष में कर लिया और गांधी परिवार में सोनिया राहुल के साथ प्रियंका के भी विश्वसनीय पात्र बन गए। प्रियंका गांधी का 10 जनपथ में हस्तक्षेप बढ़ने से फायदा सीधे अशोक गहलोत को हुआ। अशोक गहलोत ने पहले से ही अपने पूर्व निजी सचिव धीरज श्रीवास्तव को प्रियंका गांधी के निजी सचिव के रूप में नियुक्ति करवा दी थी। इससे उनका काम आसान हो गया। पर दूसरी ओर सचिन पायलट कुछ नहीं किया। अपनी समस्याओं को लेकर राहुल गांधी का इंतज़ार करते रहे। यहीं से सचिन पायलट की मुश्किलों ने विशाल रूप धारण करना शुरू किया और उनके गांधी परिवार में एंट्री पर काले बादल मंडराने लगे। आज तक की रिपोर्ट के अनुसार राहुल गांधी पायलट का फोन भी नहीं उठाते थे। यहीं से पायलट हल्के पड़ते गए और गहलोत अपनी स्थिति मजबूत कर अगले चाल की तैयारी करने लगे।

अगर आई चौक की माने तो सचिन पायलट के 10 जनपथ से दूर होने का एक कारण कांग्रेस के महासचिव अविनाश पांडे भी हैं। कांग्रेस में किसी भी मामले की रिपोर्ट पार्टी के महासचिव से ली जाती है और अविनाश पांडे अशोक गहलोत का साथ पकड़ चुके थे। आई चौक के अनुसार, उनके इस रवैये के कारण सचिन पायलट अविनाश पांडे से इतने नाराज हो गए कि उन्होंने कांग्रेस के प्रभारी महासचिव को बदलने की मांग कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से करनी शुरू कर दी। इससे अविनाश पांडे खुलकर अशोक गहलोत की टीम में आ गए जिससे सचिन पायलट के लिए 10 जनपथ के सभी रास्ते बंद हो गए।

जब पायलट की नाराजगी दूर करने के लिए रणदीप सिंह सुरजेवाला को भेजा गया तब अशोक गहलोत को ही फायदा  हुआ। सुरजेवाला और अशोक गहलोत के भी संबंध अच्छे रहे हैं और सुरजेवाला के सामने सचिन पायलट को विनती कर अपनी बात मनवाने में बेइज्जती लगी होगी। वहीं दूसरी ओर आला कमान ने अजय मकान को भी भेजा था। अजय मकान भी अशोक गहलोत के पुराने साथी रहे हैं। इससे सचिन पायलट चारो तरफ से घिर चुके थे और इतने साइडलाइन हो चुके थे कि उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था। अशोक गहलोत ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी कि पायलट पास अपनी आत्मसम्मान बचाने के लिए बगावत करने के सिवा और कोई रास्ता नहीं बचा। अशोक गहलोत इसी ताक में बैठे थे कि कब पायलट बगावती रुख अपनाए और वो आखिरी चाल चले। जैसे ही सचिन पायलट ने कदम उठाया वैसे ही गहलोत ने विधायक दल की बैठक में 100 से अधिक विधायकों को अपने पाले में कर उनके बगावत को कुचल कर पार्टी से ही बाहर करवा दिया।

पहले तो गहलोत ने मुख्यमंत्री पद छिना और उसके बाद इस तरह की राजनीति का खेल खेला कि युवा सचिन पायलट उलझ कर रह गए। कांग्रेस के कई नेता यह मानते हैं कि पायलट एक मेहनती नेता हैं परंतु जादूगर गहलोत ने ऐसा खेल खेला कि कोई कुछ नहीं कर सका।

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