चीन के ईरान में निवेश की खबर से पूरे पश्चिमी एशिया में हलचल है। ईरान ने चीन के साथ हाथ मिलाकर न सिर्फ जियोपॉलिटिक्स में भूचाल खड़ा किया है, बल्कि एक बहुपक्षीय युद्ध के लिए मैदान भी तैयार कर दिया है। किसी भी बहुपक्षीय युद्ध के लिए क्या चाहिए? महाशक्तियों का आपसी संघर्षों , क्षेत्रीय आतंकी संगठन और Iran तथा नॉर्थ कोरिया जैसे देश। अब पश्चिम एशिया में चीन के प्रवेश के साथ ही इन सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हो चुकी है और किसी भी समय युद्ध का बिगुल बज सकता है।
दरअसल, बीजिंग ईरान में 400 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने जा रहा है। यह ईरान के लिए एक ऐसा मौका था जिससे वह अपने दुश्मन देश इजरायल, सऊदी अरब और अमेरिका द्वारा दिये गए घावों का बदला ले सकता था और ईरान ने इस मौके को जाने नहीं दिया। इससे जो संघर्ष पहले सऊदी अरब-इज़राइल तथा अमेरिका बनाम Iran था, अब सऊदी अरब-इजरायल-यूएस बनाम ईरान-चीन हो चुका है। इस एक समझौते से पश्चिम एशिया में एक बड़े संघर्ष की शुरुआत हो चुकी है। किसी ने भी यह अनुमान नहीं लगाया था कि चीन ईरान को अपने पाले में करने के लिए लगभग आधा ट्रिलियन डॉलर उनकी अर्थव्यवस्था में लगा देगा।
Iran और चीन के बीच हुए अगले 25 वर्षों के लिए इस समझौते में सैन्य समझौता सबसे चिंताजनक है। Iran को सशक्त बनाकर, चीन पश्चिमी एशिया में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। यही नहीं Iran की रणनीतिक संपत्ति और स्ट्रेटजिक क्षेत्रों पर अपनी पकड़ बनाने के इरादे से ही चीन इतनी भारी मात्रा में निवेश कर रहा है।
चीन ईरानी तेल और अन्य हाइड्रोकार्बन, साथ ही परिवहन और विनिर्माण बुनियादी ढांचे में निवेश करेगा लेकिन चिंता का कारण ईरान में रूसी और चीनी सैन्य मौजूदगी। इस समझौते के बाद ईरान में इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (ईडब्ल्यू) क्षमताएं, साइबर युद्ध, मिसाइल, वायु रक्षा प्रणाली और जैमर सभी का खतरा शत प्रतिशत बढ्ने वाला है। इससे पश्चिम एशिया में दो सबसे बड़े महत्वपूर्ण देश यानि इजरायल और सऊदी अरब के लिए भी रणनीतिक खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
OilPrice.com के अनुसार, एक ईरानी अधिकारी ने कहा है, “रूसी एयर जैमिंग सिस्टम में से एक चाबहार में भी लगेगा और यह यूएई और सऊदी अरब के हवाई सुरक्षा को पूरी तरह से निष्क्रिय करने में सक्षम होगा। खतरा इस प्रकार से बढ़ जाएगा कि ईरान की ओर से आने वाली किसी भी मिसाइल या ड्रोन के हमले की चेतावनी के लिए सिर्फ दो मिनट का समय होगा।
इस कारण से ईरान चीनी के साथ दोस्ती कर इजरायल के बेहतर खुफिया तंत्र और तकनीकी कौशल को भी पाने की आस लगा कर बैठा है। अगर उसे किसी भी प्रकार की तकनीक हासिल होती है तो वह पूरे विश्व के लिए खतरा होगा। Iran पश्चिमी एशिया के कई संगठन और लड़ाकों के साथ सहानुभूति रखता है। जनरल सुलेमान जिनकी हत्या से इस साल की शुरुआत में अमेरिका-ईरान तनाव बढ़ गया था, उन्हें इराक, सीरिया, लेबनान, यमन और गाजा पट्टी में हजारों लड़ाकों की निष्ठा प्राप्त थी। अगर Iran को कोई तकनीक मिलती है तो इन संगठनों को भी यह तकनीक मिलनी तय है।
ईरान को इज़राइल का मुकाबला करने के लिए 1980 के दशक से ही, लेबनान-आधारित हिज़्बुल्लाह जैसे कई शिया संगठनों का समर्थन प्राप्त है। हिजबुल्लाह ने इजरायली बलों के खिलाफ 18 साल का छापामार युद्ध किया और पहले भी ISIS के साथ भागीदारी की है।
इसी तरह, ईरान यमन में Houthis का समर्थन करता है। इराक में, तेहरान सद्दाम हुसैन की हत्या के बाद लगातार अपना प्रभाव बढ़ा चुका है कि बगदाद में एक शिया बहुल सरकार है जो ईरान के पक्ष में है।
चीन के निवेश से इन संगठनों को भी मदद मिलेगी। चीनी निवेश ईरान को पश्चिम एशिया में शांति और स्थिरता के लिए असामान्य रूप से शक्तिशाली और अधिक खतरनाक बना देगी। Iran को इजरायल जैसे देशों के ऊपर हमला करने का मौका और ताकत दोनों प्राप्त हो जाएंगे। ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली ख़ामेनेई खुद “इजरायल को मिट्टी में मिला देने” के विचार का समर्थन करते हैं।
दूसरी ओर, इज़राइल भी ईरान को काबू में करने के लिए कई बार हमले करता रहता है। इज़राइल ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई साधनों का उपयोग किया है कि Iran को परमाणु हथियार न मिल सके लेकिन चीनी निवेश का मतलब है कि ईरान इस क्षेत्र में खतरनाक संघर्ष के लिए बाकी देशों को भी उकसा सकता है। साथ ही ईरान साइबर युद्ध, उपग्रह प्रौद्योगिकी और रक्षा क्षमताओं से सभी प्रकार के युद्ध में सक्षम हो सकता है।
परमाणु हथियार प्राप्त करने और इज़राइल को मिट्टी में मिलाने के अलावा, Iran की एक और दीर्घकालिक महत्वाकांक्षा है और वह है सऊदी अरब को चुनौती दे कर मुस्लिम देशों का निर्विवाद नेता बनना।
सीरिया, बहरीन और यमन में प्रभाव के लिए ईरान सऊदी अरब के साथ प्रतिस्पर्धा करता है। अगर ईरान अधिक शक्तिशाली होता है तो यह सऊदी अरब के लिए एक बड़ा रणनीतिक खतरा है।
इस एक समझौते ने पश्चिम एशिया में भूचाल ला दिया है। इस क्षेत्र के सभी देशों की सरकारों के अलावा, नॉन स्टेट संगठन, तथा आतंकी संगठन, सभी अपनी अपनी तैयारियों में जुट चुके होंगे। यही नहीं अगर Iran चीन के समर्थन से कुछ भी करता है तो इस युद्ध में अमेरिका भी कूद जाएगा।
इस प्रकार से पश्चिम एशिया में दो शक्तिशाली तथा एक दूसरे के कट्टर विरोधी संगठन तैयार हो चुके हैं और एक-दूसरे के खिलाफ एक बड़े संघर्ष की ओर बढ़ रहें हैं। चीन का इस तरह से ईरान को समर्थन करना पूरे क्षेत्र में अभूतपूर्व तबाही ला सकता है।