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‘चीन को BRI से लगा चूना’ चीन ने BRI के जरिये दुनिया पर राज का सपना देखा, पर कोरोना ने सब बर्बाद कर दिया

क्या सोचा था और क्या हो गया है!

Vikrant Thardak द्वारा Vikrant Thardak
29 August 2020
in चर्चित
चीन China

pc: The Tribune India

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पिछले कुछ महीनों में BRI का हिस्सा बन चुके कई देश चीन से उनके कर्ज़ को restructure करने की मांग कर चुके हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि वर्ष 2013 के बाद से ही चीन ने छोटे-बड़े देशों को ऊंची दरों पर कर्ज़ दिया था। हालांकि, आज की स्थिति में ये देश अपने कर्ज़ को चुकाने में असमर्थ हो चुके हैं, क्योंकि कोरोना ने उनकी देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर दिया है।

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चीनी बैंकों ने BRI के सदस्य देशों को 5 प्रतिशत से लेकर 10 प्रतिशत की ब्याज दर पर कर्ज़ दिया। हालांकि, पिछले कुछ सालों में जिस प्रकार दुनियाभर के सरकारी बैंकों ने अपनी-अपनी अर्थव्यवस्थाओं को सहारा देने के लिए बाज़ारों को सस्ते दरों पर कर्ज़ दिया है, उसके कारण पूंजी की कीमत में तेजी से गिरावट देखने को मिली है। हालांकि, इसके बावजूद देशों में आर्थिक विकास तेजी से नहीं हो पाया है, और इसमें कोरोना की भी बड़ी भूमिका रही है।

BRI के सदस्य देशों के पास कर्ज़ चुकाने का पैसा नहीं है, क्योंकि आर्थिक गतिविधियां कम होने से देश में tax कलेक्शन कम हो गया है और मुद्रा भंडारों का इस्तेमाल कर सरकारें अपने लोगों और व्यवसायों को आर्थिक सहायता प्रदान करने में लगी हैं। यही कारण है कि आज cost of capital वर्ष 2013 के मुक़ाबले बेहद कम रह गया है। अधिकतर देशों में आज ब्याज दर 5 प्रतिशत से कम है, जबकि BRI के अंतर्गत देशों को 5 से 10 प्रतिशत तक के बीच में ब्याज दरों पर कर्ज़ दिया गया था।

आज BRI के सामने ना सिर्फ राजनीतिक समस्याएँ हैं, बल्कि आर्थिक समस्याएँ भी हैं। कोरोना के कारण लगे आर्थिक झटके से उबरने में सभी देशों को कम से कम 2 से 3 साल का समय लगेगा। तब तक BRI के माध्यम से दुनिया को आपस में जोड़ने का सपना ठंडे बस्ते में चला जाएगा।

चीन ने किस प्रकार BRI पर करोड़ों-अरबों रुपए खराब कर दिये, उसे समझने के लिए भारत की NPA समस्या को ही समझ लीजिये। वर्ष 2008 से लेकर वर्ष 2012 के बीच भारतीय बैंकों ने जमकर कर्ज़ दिया। यहाँ तक कि उन कंपनियों को भी बड़े-बड़े कर्ज़ दिये गए, जिनकी वित्तीय हालत बेहद खस्ता हो चुकी थी कि वे कर्ज़ को चुका भी नहीं सकते थे। इसके कारण भारत की अर्थव्यवस्था को वर्ष 2012 से लेकर वर्ष 2014 तक बुरे दौर से गुजरना पड़ा और देश की आर्थिक विकास दर 5 प्रतिशत से भी कम हो गयी। क्योंकि, जिन कंपनियों ने 10 से12 प्रतिशत की ब्याज दर पर कर्ज़ लिया था, वे उसे चुका ही नहीं पाये, क्योंकि देश की अर्थव्यवस्था ही 5 प्रतिशत से कम की दर पर विकास कर रही थी। इसका नतीजा यह हुआ कि देश के बैंकों में 10 लाख करोड़ के NPAs इकट्ठा हो गए।

ऐसे में कंपनियों के पास दो ही विकल्प थे। या तो वे अपनी संपत्ति बेचकर अपना कर्ज़ अदा करते या फिर वे अपने आप को दिवालिया घोषित कर देते। अब BRI की बात करें, तो श्रीलंका के साथ ठीक ऐसा ही हुआ। श्रीलंका जब अपना कर्ज़ नहीं चुका पाया, तो उसे अपने हंबनटोटा पोर्ट को 99 वर्षों के लिए चीन को लीज़ पर देना पड़ा। यही कारण है कि आज-कल अफ्रीका के अधिकतर देश चीन से अपने कर्ज़ को माफ करने और restructure करने की मांग कर रहे हैं।

अफ्रीकी देश चीन से उनका कर्ज़ माफ करने की मांग कर रहे हैं। उदाहरण के लिए हाल ही में चीनी कर्ज़ में डूबे हुए ज़ाम्बिया ने चीन से उसका कर्ज़ माफ करने की अपील की। ज़ाम्बिया के राष्ट्रपति ने अपने चीनी समकक्ष के सामने ही बयान देते हुए कहा “चीन की ओर से उनके कर्ज़ को लेकर राहत या कर्ज़-माफी पर विचार करना चाहिए, ताकि लुसाका की अर्थव्यवस्था को बचाया जा सके”। बता दें कि लुसाका पर चीन का करीब 6.7 बिलियन डॉलर का कर्ज़ है, जिसे अदा करने में ज़ाम्बिया विफल साबित हो रहा है। हालांकि, ज़ाम्बिया अकेला ऐसा देश नहीं है, जो चीन के सामने इस प्रकार की अपील लेकर पहुंचा हुआ हो। केन्या पर चीन का 5 बिलियन डॉलर का कर्ज़ है, और केन्या की हालत भी कुछ ठीक नहीं है। इसी प्रकार हाल ही में युगांडा के वित्त मंत्री ने भी चीन से उनके कर्ज़ को लेकर राहत देने का अनुरोध किया था।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की ओर से भी चीन पर अफ्रीकी कर्ज़ माफ करने का दबाव बनाया जा रहा है। हाल ही में फ्रांस की ओर से जारी एक बयान में कहा गया “हम अफ्रीकी देशों को राहत प्रदान करने का आश्वासन देते हैं। इसी के साथ हम चीन से भी ऐसा करने का अनुरोध करते हैं, जो अफ्रीकी देशों की कोरोना-विरोधी लड़ाई को मजबूती प्रदान करेगा”। जी20 देश, IMF और वर्ल्ड बैंक अपनी ओर से पहले ही अफ्रीकी देशों की वित्तीय सहायता करने का ऐलान कर चुके हैं। इस दबाव में अगर चीन अपना 150 बिलियन डॉलर का कर्ज़ या इसका कुछ हिस्सा भी माफ करने का फैसला लेता है, तो यह चीन की debt-diplomacy के लिए एक बहुत बड़ा झटका साबित होगा। ऐसे में कहा जा सकता है कि BRI पर चीन ने पहले ही बड़ी रकम को खो दिया है, और इसी के साथ चीन का BRI के जरिये दुनिया पर राज करने के सपना भी धरा का धरा रह गया है।

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