चोरी-चकारी-मक्कारी, गुंडागर्दी, लूट-खसोट और बदज़ुबानी- किसी भी सभ्य समाज में ऐसी हरकतों के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। हालांकि, भारत का पड़ोसी चीन इन आदतों को अपने गले में लटके medals की तरह लेकर घूमता है। दूसरे देशों में अपने जासूसों के जरिये ना सिर्फ चीन दुनिया के सामने बड़ा सुरक्षा खतरा पैदा करता है, बल्कि चीन इन देशों से intellectual property भी चुरा लेता है। यही कारण है कि चीन ने दशकों से अपने सुनियोजित Thousand Talent Plan यानि TTP के जरिये ऑस्ट्रेलिया समेत दुनियाभर की यूनिवर्सिटी और शैक्षणिक संस्थानों पर अपनी पकड़ मजबूत की है। चीन हर साल लाखों डोलर्स देकर बड़ी-बड़ी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर्स को अपने जाल में फँसाता है, और फिर बाद में आसानी से यूनिवर्सिटी द्वारा किए जा रहे शोधों और रिसर्च पेपर्स तक अपनी पहुंच बना लेता है। ट्रम्प प्रशासन के नेतृत्व में अमेरिका के शैक्षणिक संस्थानों में पहले ही सफाई अभियान चलाया जा चुका है, अब सबकी निगाहें ऑस्ट्रेलिया पर हैं!
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया के शैक्षणिक संस्थानों पर चीन का बेहद ज़्यादा प्रभाव है। इसके जरिये चीन ऑस्ट्रेलिया के संस्थानों में किए जा रहे शोधों, तकनीकी प्रयोगों और नए नए आविष्कारों तक सीधी पहुंच बना लेता है। इसका अर्थ यह है कि ऑस्ट्रेलिया के Taxpayers के पैसों से किए गए शोध का फायदा चीन या कई बार तो चीनी सेना इस्तेमाल कर लेती है। चीन चोरी की गयी तकनीक का किस प्रकार इस्तेमाल करता होगा, इसकी आप सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं।
सवाल यह है कि आखिर चीनी सरकार का ऑस्ट्रेलिया के शैक्षणिक संस्थानों पर इतना प्रभाव कैसे है? दरअसल, बड़ी संख्या में चीनी छात्र इन संस्थानों में पढ़ते हैं। ऑस्ट्रेलिया की Universities की कुल कमाई में चीनी छात्रों का औसतन 10 प्रतिशत योगदान होता है। University of Sydney और UNSW जैसी Universities की कुल कमाई में तो चीनी छात्रों का योगदान 20 प्रतिशत तक है। अब चीन अपनी आदत के मुताबिक इसके बदले में कुछ तो फायदा उठाएगा ही! ऐसे में वह इन शैक्षणिक संस्थानों को अपनी उंगली पर नचवाता है, और कई मामलों पर तो इन संस्थानों पर राजनीतिक दबाव भी बनाया जाता है।
उदाहरण के लिए हाल ही में ऑस्ट्रेलिया की Queensland University द्वारा एक 20 वर्षीय छात्र को सिर्फ इसलिए सस्पैंड कर दिया गया, क्योंकि वह खुलकर चीन के विरोध में अपने विचार प्रकट कर रहा था। Drew Pavlou नामक उस छात्र ने उसके बद ऑस्ट्रेलिया के supreme court में इस फैसले के खिलाफ अपील दायर की थी। Drew Pavlou के मुताबिक उन्हें तिब्बत, हाँग-काँग से जुड़े कई संगठनों से समर्थन हासिल हुआ है और इसके साथ ही सरकार और कुछ सांसदों ने भी उसका समर्थन किया है, लेकिन सिर्फ उसकी यूनिवर्सिटी उसके पीछे हाथ धोकर पड़ी है, और इसका कारण है कि ऑस्ट्रेलिया की इस यूनिवर्सिटी पर चीन का बहुत ज़्यादा प्रभाव है।
The Australian की एक रिपोर्ट के मुताबिक चीन ऑस्ट्रेलिया की किसी भी यूनिवर्सिटी में सहकर्मियों, वरिष्ठ प्रोफेसर्स और यहाँ तक कि LinkedIN के जरिये भी वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों की भर्ती करता है। इसके जरिये चीन इन्हें हर साल करीब 1 लाख 50 हज़ार डोलर्स का ऑफर देता है। इसके साथ ही इन्हें शोध के लिए भत्ता भी दिया जाता है। अधिकतर मामलों में ऑस्ट्रेलिया के ये वैज्ञानिक चीन के साथ अपने जुड़ाव को सार्वजनिक करते हैं और वे चीनी कार्यक्रम से जुड़े होने को लेकर गौरवान्वित महसूस करते हैं। हालांकि, कई बार इन शिक्षाविदों को कार्यक्रम से अपना जुड़ाव सार्वजनिक करने से साफ़ मना कर दिया जाता है, और इन्हीं लोगों के जरिये चीन intellectual property की चोरी करता है। ऐसे प्रोफेसर्स और वैज्ञानिक समय-समय पर चीन का दौरा भी करते हैं। बता दें कि इस दौरान ये सभी लोग ऑस्ट्रेलिया के शैक्षणिक संस्थानों में भी फुल-टाइम जॉब करते हैं और सरकारी पैसे पर शोध कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं।
इसका नतीजा यह होता है कि ऑस्ट्रेलिया में सरकारी पैसे से जिस शोध या रिसर्च को अंजाम देकर कोई आविष्कार या कोई बड़ा प्रयोग किया जाता है, उसका फायदा चीन की सरकार उठाती है और कई बार तो किसी नई तकनीक को चीन में ही पेटेंट करा लिया जाता है। सैन्य सुरक्षा से जुड़े शोधों और तकनीक के मामले में तो स्थिति और ज़्यादा खतरनाक हो जाती है क्योंकि शी जिनपिंग की सरकार सीधे तौर पर उस तकनीक का इस्तेमाल अपनी सेना यानि PLA के लिए करती है! वही PLA जो आज पूरी दुनिया की शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा बनी हुई है।
आज चीन और ऑस्ट्रेलिया एक दूसरे के सबसे कट्टर शत्रु बनकर उभरे हैं। चीन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आर्थिक जंग का ऐलान किया हुआ है। चीन पहले ही ऑस्ट्रेलिया की barley और wines पर प्रतिबंध लगा चुका है। ऐसे में चीन द्वारा ऑस्ट्रेलिया के संस्थानों में की जा रही खूफिया चोरी ऑस्ट्रेलिया के लिए बड़ा सरदर्द बन सकती है। अभी चीन के TTP प्रोग्राम के तहत ऑस्ट्रेलिया के जितने भी वैज्ञानिक या शिक्षाविद चीन से जुड़े हैं, उन्हें जल्द से जल्द चीन से अपना जुड़ाव खत्म कर देना चाहिए! अगर ऐसा नहीं होता है तो ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन की चीन विरोधी लड़ाई बेहद मुश्किल रहने वाले है।