वैश्विक सप्लाई चेन से चीन को बाहर निकालने के लिए भारत ने पूरी तरह से तैयारी कर ली है, और अब इसमें भारत का साथ देने के लिए डेनमार्क को भी न्योता दिया गया है। यदि किसी को भी इसके बारे में शंका है, तो इसे दूर करते हुए पीएम मोदी और डेनमार्क के प्रधानमंत्री मेट्टे फ़्रेडरिकसेन ने एक वर्चुअल समिट में भारत और डेनमार्क की साझेदारी पर काफी लंबी बातचीत की।
पत्रकारों से बातचीत करते हुए ज्वाइंट सेक्रेटरी नीता भूषण ने बताया, “ये साझेदारी हमें एक नए युग की ओर ले जाएगी और ये हमारे द्विपक्षीय सम्बन्धों को एक नया आयाम देगी। ये आर्थिक सम्बन्धों को सुधारने और ग्रीन ग्रोथ को बढ़ावा देने में मदद करेगी, और वैश्विक चुनौतियों से निपटने एवं पेरिस समझौते के अंतर्गत जलवायु परिवर्तन से संबन्धित लक्ष्यों की पूर्ति में ये साझेदारी हमारी सहायता करेगी”।
भारत और डेनमार्क के बीच व्यापारिक और आर्थिक रिश्ते काफी वर्षों से मजबूत रहे हैं। 21वीं सदी के प्रारम्भ से ही डेनमार्क ने भारत में करीब 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर के मूल्य का निवेश प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से किया। Novo Nordisk , AP Moller Maersk, Vestas जैसी बड़ी बड़ी कंपनियाँ भारत में करीब 1 लाख लोगों को रोजगार देती है। ऐसे ही TCS, L&T Infotech, Infosys, ITC Infotech जैसी आईटी कंपनियों ने भी डेनमार्क में भरपूर काम किया है।
इन्हीं सम्बन्धों पर प्रकाश डालते हुए पीएम मोदी ने सम्मिट के दौरान कहा, “वुहान वायरस ने हमें दिखाया कि सप्लाई चेन के किसी एक कड़ी पर आवश्यकता से अधिक विश्वास करना काफी हानिकारक हो सकता है। हम सप्लाई चेन को विस्तृत करने के लिए जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ काम कर रहे हैं, और हमारे जैसे अन्य देश भी इस अभियान में काम कर सकते हैं। पिछले कुछ महीनों की गतिविधियों ने हमें सिखाया है कि कैसे समान विचारधारा वाले देशों को साथ में काम करना होगा, जो पारदर्शी शासन, मानवता और लोकतान्त्रिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं”। इससे पीएम मोदी ने स्पष्ट संदेश दिया कि वे QUAD के साथ मिलकर समान विचारधारा वाले अन्य देशों को वैश्विक सप्लाई चेन को चीन के प्रभाव से मुक्त करने के अभियान में शामिल करना चाहेंगे, ताकि किसी भी अनहोनी के समय उन्हें चीन की राह न देखनी पड़े।
चीन को सप्लाई चेन से बाहर खदेड़ने के इस अभियान में TFI Post ने अपने एक रिपोर्ट में प्रकाश डालते हुए लिखा था, “चीन के आक्रामक रवैये को ध्यान में रखते हुए भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया चीनी चुनौती से निपटने के लिए साथ आने को तैयार हैं, और वे अपनी खुद की सप्लाई चेन बना रहे हैं ताकि विश्व की चीन पर से निर्भरता खत्म हो सके”। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि इस समय चीन पर दुनिया की निर्भरता खत्म करने की लड़ाई को पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत दशा और दिशा दोनों दे रहा है।
इसके अलावा भारत और डेनमार्क के प्रधानमंत्रियों ने अपनी साझेदारी को पर्यावरण संबंधी ग्रीन Strategic Partnership की ओर अपग्रेड करने की दिशा में अपने कदम बढ़ाने का भी फैसला लिया। दोनों देशों के संयुक्त बयान के अनुसार, “क्लाइमेट और ऊर्जा को लेकर दोनों देशों के लक्ष्य समान है, जो पेरिस एग्रीमेंट का सम्मान करेंगे। दोनों देश मिलकर ये सिद्ध करेंगे कि Climate and Sustainable Energy के लक्ष्यों को प्राप्त करना संभव है”। इसके अलावा दोनों ने WTO के सुधार के जरिये चीन द्वारा वर्चस्व जमाने के अभियान पर हमला भी बोला है।
विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा की गई मेहनत अब रंग लाने लगी है, और जो काम चीनी विदेश मंत्री अपने यूरोप दौरे में नहीं कर पाये, वो भारत ने बिना हेकड़ी के कर दिखाया – यूरोप को एक सूत्र में बांधने का। चीन जैसे देश के विरुद्ध भारत और डेनमार्क की साझेदारी निस्संदेह एस जयशंकर की बतौर विदेश मंत्री एक और कूटनीतिक विजय कहलाई जाये तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।