भारत सरकार चीन से लगी सीमा पर तेजी से रोड कंस्ट्रक्शन का काम कर रही है। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो 1962 के युद्ध में भारत की पराजय का एक कारण यह भी था कि दुर्गम क्षेत्रों में भारतीय सेना को सप्लाई पहुंचाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास नहीं किया गया था। पिछली कांग्रेस सरकारों के दौरान यही समस्या बनी रही।
परंतु मोदी सरकार के आने के बाद सब कुछ कितनी तेजी से बदला है इसका उदाहरण है नई बनी Nimmu-Padam-Darcha रोड। यह LAC तक पहुंचने के लिए साल भर खुली रहने वाली पहली सड़क है। इससे पहले भारत ने मनाली से लेह तक के लिए जो हाईवे बनाया गया था वह सर्दियों के मौसम में बर्फबारी के कारण हफ्तों तक बंद रहता था। साथ ही यह रास्ता बहुत ही टेढ़ा-मेढ़ा था जिसके कारण लेह तक पहुंचने में समय भी बहुत होती थी। अब इन सभी समस्याओं का समाधान हो गया है।
भारत सरकार ने जिस सड़क का निर्माण पूर्ण किया है उसकी योजना आज नहीं बल्कि आज से 20 साल पहले बनाई गई थी। 1999 में कारगिल युद्ध के समय मनाली से लेह तथा लेह से श्रीनगर को जोड़ने के लिए एक ही हाइवे था। जब पाकिस्तानी सेना ने कारगिल की चोटियों पर कब्जा कर लिया तो उनकी बमबारी के कारण भारत का श्रीनगर से संपर्क टूट गया था। तभी सरकार ने यह जरूरत महसूस की थी कि लेह तथा श्रीनगर तक पहुंचने के लिए कोई नया वैकल्पिक मार्ग भी खोजा जाए।
वाजपेयी सरकार के दौरान इस रोड का चुनाव कर लिया गया था तथा इसके विकास के लिए सारी कागजी प्रक्रिया पूरी कर दी गई थी, एवं 2004 से इस रोड का कंस्ट्रक्शन शुरू हो जाना था जिसके बाद यह रोड 2007 तक बनकर तैयार हो जाती। किंतु 2004 में वाजपेयी सरकार गिर गई और उसके बाद अगले 10 वर्षों में कांग्रेस सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया।
मोदी सरकार में अंततः यह रोड बनकर तैयार हुई है। इसके चलते भारत सर्दियों में भी LAC पर सैन्य साजोसामान पहुंचा सकता है। साथ ही इस रोड पर सेना की गतिविधियों को, न तो पाकिस्तान और न ही चीन पता कर सकता है। लेह मनाली सड़क द्वारा LAC पर पहुंचने में 14 से 16 घंटे लगते थे, वो भी तब जब बर्फबारी न हो रही हो, अन्यथा हफ़्तों तक रास्ता बंद रहता था। अब इस रोड के बनने के बाद इसमें 6-7 घंटे लगेंगे।
कांग्रेस की ढुलमुल नीति का यह कोई एक उदाहरण नहीं है। इसका एक दूसरा उदाहरण अटल रोहतंग टनल है। इसका निर्माण लेह मनाली हाइवे पर ही किया गया है। 10000 फीट की ऊंचाई पर बनी सुरंगों की श्रेणी में यह दुनिया की सबसे लंबी सुरंग है। इसके चलते लेह मनाली रोड के टेढ़े-मेढ़े रास्तों के बजाय सीमा तक पहुंचने के लिए सेना अब सीधे रास्ते का प्रयोग करेगी। सुरंग ने बर्फबारी के कारण रास्ता बंद होने की सम्भावना को भी कम कर दिया है।
इस टनल को बनाने का सुझाव 1990 में दिया गया था। कांग्रेस सरकार में इसपर कोई कार्य नहीं हुआ। इसके बाद इस दुर्गम इलाके में टनल बनाने के लिए geographical survey वाजपेयी सरकार में पूर्ण हुआ लेकिन सरकार बदलते ही पुनः यही ढुलमुल रवैया दुबारा शुरू हो गया। सर्वे होने के बाद cabinet approval में 1 साल से अधिक समय लगा। 2007 में टेंडर पास होने के बाद काम शुरू होने में 3 साल लग गए। 2010 में इसका Foundation stone रखा गया। इसके बाद पुनः टनल निर्माण का कार्य ठंडे बस्ते में चला गया। नतीजा यह हुआ कि जिस सड़क का निर्माण 2015 तक हो जाना चाहिए था वह 2020 में बनकर तैयार हुई है।
यदि पिछले 6 सालों में इस दुर्गम सुरंग के निर्माण का कार्य ना हुआ होता तो आज भी हमारी सेना को LAC तक पहुंचने में कठिनाई होती।
कांग्रेस सरकार में सामरिक सड़कों के निर्माण को किस प्रकार दरकिनार किया गया है इसके इक्का दुक्का उदाहरण नहीं हैं। 2006 में कांग्रेस सरकार द्वारा BRO को सामरिक महत्व के 61 रोड बनाने का कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था। इनकी कुल लंबाई 3324 किलोमीटर थी। 2015 की शुरुआत में इसमें 625 किलोमीटर सड़क बनी थी। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि BRO को आदेश तो दे दिया गया, लेकिन संसाधन मुहैया नहीं करवाए गए।
आज 61 में से 34 सड़कों का कार्य पूरा हो चुका है और कुल बन चुकी सड़क की लंबाई 2486 km है। प्रोजेक्ट का 70 फीसदी कार्य पूर्ण हो गया है और 2022 तक यह कार्य 100% पूर्ण हो जाएगा। रॉड, रेल, हवाईपट्टी आदि सभी की बात करें तो भारत सरकार का अनुमान है कि 2024-25 तक भारत बॉर्डर इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में चीन की बराबरी कर लेगा।
राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमाओं की रक्षा कांग्रेस के लिए कभी महत्वपूर्ण मुद्दे रहेगी नहीं। यह हास्यास्पद है कि आज कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार से उन मुद्दों पर प्रश्न कर रही है जिन पर ध्यान देना उसने कभी जरूरी नहीं समझा था।