पश्चिम बंगाल की ममता सरकार और केन्द्र की मोदी सरकार के बीच विवाद कोई नई बात नहीं है। राजनीतिक हत्याओं से लेकर राज्यपाल तक की तू-तू मैं-मैं किसी से छिपी नहीं है लेकिन अब ये बवाल एक नए मुद्दे पर भी सामने आया है जो कि लोकल ट्रेनों के संचालन से जुड़ा है। ऐसे वक्त में जब कोरोना वायरस को लेकर सावधानी बरतने की आवश्यकता है तो ममता सरकार राज्य में लोकल ट्रेनों के संचालन की मांग कर एक नया ही राजनीतिक एजेंडा चला रही है। जबकि मोदी सरकार समेत रेलवे इस पूरे मामले में राज्य सराकर द्वारा इन ट्रेनों के संचालन पर सहयोग न देने की बात कह रही है जो दिखाता है कि राजनीतिक नीयत के मामले में टीएमसी रसातल में जाने को तैयार है।
दरअसल, अनलॉक-5 की गाइडलाइन के बावजूद बंगाल में अभी-भी लोकल ट्रेनों के चक्के थमें ही हुए हैं जिसके चलते दैनिक यात्रियों को सबसे ज्यादा परेशानियां होती हैं। ये वो लोग हैं जो प्रतिदिन लोकल ट्रेन में यात्रा कर एक जिले से दूसरे जिलों की ओर जाते हैं। इस मुद्दे को उठाकर पश्चिम बंगाल की सरकार राजनीतिक स्कोर हासिल करने की कोशिश में है इसीलिए टीएमसी पूर्णतः इस मुद्दे पर मोदी सरकार और रेलवे को घेरने की कोशिश में है जबकि हकीकत कुछ और ही है और ममता सरकार अपनी नाकामियों का ठीकरा रेलवे पर फोड़ना चाहती है।
पश्चिम बंगाल की सरकार इस मसले पर जितनी बातें बना रही है उसकी उतनी ही पोल खुल रही है। टीएमसी नेता असित चट्टोपाध्याय बोल रहे हैं कि मोदी सरकार ने लोकल ट्रेनों को बंद कर रखा है और इसके चलते बंगाल की जनता को परेशानी हो रही है। दैनिक यात्री परेशान हैं जबकि हकीकत यह है कि अनलॉक-5 के मुताबिक पूरे देश में सभी तरह के ट्रेन संचालन को मोदी सरकार ने मंजूरी दे दी है। फिर भी बंगाल सरकार ने इस ओर कोई कदम ही नहीं उठाया है जिससे बंगाल में लोकल ट्रेनों का संचालन ठीक तरीके से किया जा सके जो दिखाता है कि कैसे बंगाल सरकार पहले तो कोविड को रोकने में नाकाम रही और अब वो जनता के हित से जुड़े मुद्दों को हल करने के बजाए उनको लटकाकर राजनीति करने की कोशिश कर रही है।
नहीं मिल रहा है सहयोग
इस मुद्दे पर जहां पूरे प्रदेश में टीएमसी मोदी सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार फैला रही है तो वहीं, दूसरी ओर लोकल ट्रेनों के संचालन से जुड़े फैसलों को ममता सरकार रोक कर बैठी है। इस मुद्दे को लेकर अब हावड़ा डिवीजन के डीआरएम इशाक खान ने ही ममता सरकार की पोल खोल दी है। दरअसल, इस मुद्दे पर उन्होंने बताया है कि ममता सरकार को इस संबंध में रेलवे द्वारा पत्र लिख दिया गया है। साथ ही उन्होंने ये भी कहा है कि ममता सरकार ने लोकल रेलवे के संचालन को लेकर कोई दिशा-दशा तय ही नहीं की है।
उन्होंने कहा, “यह राज्य सरकार पर निर्भर करता है कि इस महामारी की स्थिति के बीच इसे शुरू किया जाए या नहीं। यदि हम रेल सेवा को फिर से शुरू करते हैं तो हमें राज्य सरकार से मदद की आवश्यकता होगी। पश्चिमी और मध्य रेलवे में ई-पास सेवाएं हैं, जिन्हें यात्रियों द्वारा ऑनलाइन जनरेट करने की आवश्यकता है । हमें पहले मॉड्यूल् पर काम करना होगा। कितनी ट्रेनों को एक बार चलाने की आवश्यकता है? कितने स्टॉपेज आवंटित किए जाएंगे? किसे अनुमति दी जाएगा या कौन यात्रा करने में सक्षम होगा? सरकार को इसका निर्णय करना होगा।
राजनीतिक बयानबाजी से अलग अगर इस वरिष्ठ अधिकारी के बयान पर ही भरोसा किया जाए तो यह साबित होता है कि पश्चिम बंगाल की सरकार इस मुद्दे पर राजनीति ही कर रही है, इस मुद्दे को चुनावी समर में उठाकर मोदी सरकार को ही घेरने की कोशिश कर रही है। हालांकि, वास्तविकता कुछ और ही है, जिसका परीणाम बंगाल सरकार को ही भूगतना पड़ सकता है। बंगाल सरकार अपने यहां राजनीति हत्याओं से लेकर जनहित तक के मुद्दों पर पूरी तरह से घिर चुकी है इसीलिए अब वो इस लोकल ट्रेनों के मुद्दे पर राजनीति कर रही है जबकि ये मुद्दा उसकी नाकामियों का पर्याय है।ऐसा लगता है कि ममता सरकार ये समझने में असफल रही है कि आम जनता को होने वाली परेशानियां आगामी चुनाव में उनके लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकती है ।