दिन-ब-दिन पत्रकारिता के गिरते स्तर के बीच हाथरस रेप कांड के बाद तो मीडिया का एक नया ही स्वरूप सामने आया है। पुलिस से झड़प और बेजा रसूख दिखाने का अंजाम ये हुआ कि परेशान होकर प्रशासन द्वारा पत्रकारों पर ही रोक लगा दी गई ताकि वो पीड़ित परिवार को और परेशान न कर सकें। सरकार द्वार उठाये गए इस कदम ने एक बार फिर लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या पत्रकारिता अब खत्म ही हो चुकी है? लोकतंत्र के तथाकथित चौथे स्तंभ का भौंडापन सारी मर्यादाएं तार-तार कर रहा है जिससे पत्रकारिता जैसे सम्मानित पेशे पर सवाल उठने लगे हैं।
हाथरस रेप कांड को लेकर ऐसा लग रहा है कि दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत के मामले की तरह ही जांच का सारा जिम्मा मीडिया चैनल्स ही लेना चाहते हैं। जुर्म को लेकर पुलिस कार्रवाई कर रही है। सभी आरोपी पकड़े जा चुके हैं। एसआइटी टीम सात दिन में अपनी जांच रिपोर्ट देगी। केस में लापरवाही करने वाले अधिकारियों पर भी कार्रवाइयां हुई़ हैं, लेकिन इस पूरे मामले पर भारतीय मीडिया का रुख चौंकाने वाला है जो दिखाता है कि किसी की मौत पर राजनेताओं के अलावा अब कुछ मीडियाकर्मियों ने भी गिद्ध की प्रवृत्ति पाल ली है।
कठुआ, हैदराबाद रेप कांड या कोई भी रेप केस हो मीडिया कर्मी लगातार सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन की धज्जियां उड़ाते रहे हैं। एबीपी न्यूज के पत्रकारों द्वारा हाथरस केस में नैतिकताओं की बात कर रही है लेकिन इसी न्यूज के पत्रकारों ने रिपब्लिक टीवी के एडिटर प्रदीप भंडारी के साथ मुंबई में मारपीट करके ये साबित कर दिया कि ये दोगलेपन के प्रतीक ही हैं।
मीडिया की प्रवृत्ति की भद्द तो उसी दिन पिट गई थी जब फिल्म पीपली लाइव में उसकी असलियत बड़े पर्दे के जरिए बाहर आई थी, लेकिन मजाल है कि इस पर कोई भी कुछ सुधार की गुंजाइश रखे। पल-पल की रिपोर्टिंग और सबसे तेज खबर देने के नाम पर अधिकारियों को काम में डिस्टर्ब करना इन मीडियाकर्मियों की पुरानी आदत है। अपने आपको पत्रकार कहने वाले ये लोग पीड़ितों से बयान लेते नहीं है, पर उन्हें बताते हैं कि तुम ये बयान रिकार्ड कर के दो। हालांकि ये पहली बार नहीं हुआ है, ये एक सतत् प्रकिया है जो बदस्तूर जारी है।
हाल ही में अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या और बाद में उनके शव की फोटो को शेयर करना भी दिखाता है कि गैर जिम्मेदाराना हरकतें करना मीडिया की अब आदत बन गई़ है। इन मीडिया संस्थानों ने सोशल मीडिया पर फोटो खूब वायरल कराई। इस पूरे मामले में मीडिया की खूब आलोचना हुई है। यही नहीं सुशांत सिंह राजपूत की गर्लफ्रेंड रिया चक्रवर्ती के लिए पीआर एजेंसी का काम कर उनका इंटरव्यू लिया और साबित किया ये टीआरपी के लिए किसी भी हद तक जाएंगे।
यही नहीं बिहार के मुजफ्फरपुर में चमकी बुखार के कारण बच्चों की मौत और उस पर एक्सक्लूसिव जानकारी के नाम पर डाक्टरों के काम में बाधा पहुंचाने वाली एक वरिष्ठ महिला पत्रकार को सभी ने देखा था। ऐसा नहीं है कि केवल डिस्टर्बेंस ही एक कारण है। इसके आलावा सबकुछ दिखाने की होड़ में पीड़ित या अभियुक्त के घर में घुसकर कर ब्रेकिंग न्यूज के नाम पर बेहूदगी दिखाना आजकल की तथाकथित पत्रकारिता की पहचान बन गई है।
ऑनड्यूटी सीनियर ऑफिसर्स से बदसलूकी पत्रकारों के रसूख का प्रतीक बनता जा रहा है जिसे हर बार दिखाने में उन्हें कोई शर्म नहीं है। पत्रकारिता का मुख्य सिद्धांत खबर पेश करना और तथ्यात्मक विश्लेषण करना है, लेकिन इस दौर में तथ्यों की बेशर्मी के यज्ञ में आहुति दे दी गई है और सारे सिद्धांत धुंआ हो गए हैं। 5W 1H न जाने कब का अंधेरों में गुम हो चुका है अब तो स्टूडियों में बैठकर एंकर्स बिना जांच अपने रिपोर्टरों द्वारा लोगों से जिद्द करके मंगाएं गए वीडियो और ऑडियो वर्जन के आधार पर ही फांसी का फैसला कर देते हैं।
इस तरह की कूड़ा पत्रकारिता से परेशान होकर प्रशासन पत्रकारों के घटना स्थल के भ्रमण को निषेध कर देता है तो इनकी अभिव्यक्त की आजादी इनकी ही बेशर्मी के कारण हुए सरकरी फैसलों से गड्ढे में चली जाती है, और इन तथाकथित पत्रकारों का विलाप शुरू हो जाता है जब अधिकारियों पर कार्रवाई हो जाए, तो अपनी पत्रकारिता को उत्कृष्टता का पैमाना देकर ये लोग इसे अपने काम का असर बताने और क्रेडिट लेने से नहीं चूकते हैं।
हाथरस रेप कांड में मीडिया की रिपोर्टिंग का स्तर भी कुछ इसी तरह नीचे गया है। मीडिया कर्मियों का अनप्रोफेशनल तरीके से काम करना पत्रकारिता पर ही सवाल है कि क्या हम इसके निचले तल को देख सकते हैं या लोकतंत्र का तथाकथित चौथा स्तंभ अभी और धंसेगा?