पिछले वर्ष चौथे रामनाथ गोयनका लेक्चर के दौरान भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि अब भारत The Great game में है और इसे एक बड़ा प्लेयर बनना ही होगा। आज जियोपॉलिटिक्स में भारत का स्थान एक महाशक्ति से कम नहीं है। एक तरफ पश्चिमी देश चीन को काउंटर करने के लिए भारत की सहायता चाहता है तो वहीं, दूसरी ओर रूस अपने आप को चीन के चंगुल से बचाने के लिए सहयोग को अत्यधिक स्तर पर बढ़ाना चाहता है। परंतु फिर भी भारत संतुलन बना कर भविष्य की ओर देख रहा है।
दरअसल, रिपोर्ट के अनुसार रूस के विदेश मंत्री ने पश्चिमी देशों पर रूस के साथ भारत के रिश्ते को कम करने की कोशिश का आरोप लगाया। यही नहीं उन्होंने पश्चिम के देशों पर चीन के खिलाफ भारत का इस्तेमाल का भी आरोप लगाया।
रूसी अंतर्राष्ट्रीय मामलों के लिए स्टेट-रन थिंक टैंक की परिषद की आम बैठक के दौरान की बैठक में उन्होंने यह बात कही। इस बयान से मॉस्को के इंडो-पैसिफिक के बारे में संदेह का भी पता चलता है। उसे ऐसा लग रहा है कि QUAD के बढ़ते प्रभाव के कारण उसका भारत के साथ रिश्तों में कमी न आ जाए।
आखिर रूस भारत के पश्चिमी देशों के साथ जाने पर इतना क्यों परेशान है? इसका एकमात्र कारण है चीन। चीन के बढ़ते प्रभाव ने रूस को चिंतित कर दिया है और उसे डर सताने लगा है कि कहीं चीन ऑस्ट्रेलिया की तरह रूस पर भी आर्थिक वार शुरू न कर दे। इसी से बचने के लिए रूस के पास भारत के अलावा कोई भी विकल्प नहीं है। 2014 के बाद से पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के कारण रूस की अर्थव्यवस्था इतनी मजबूत नहीं है कि वह किसी से भी अकेले भिड़े। 2014 में अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ अपने संबंधों के पतन के बाद रूस ने चीन के साथ अपनी साझेदारी को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए थे। मुख्य रूप से अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हुए। लेकिन अगर पश्चिम के प्रतिबंधों के कारण रूस चीन का एक महत्वपूर्ण साझेदार बन रहा है, तो वह बीजिंग के ऋण जाल में फंसता चला जाएगा और मास्को पर दबाव बनाना उसके लिए आसान हो जाएगा। और यह बात रूस समझ चुका है। हालांकि, चीन पर रूस की निर्भरता अभी तक एक बड़े स्तर तक नहीं पहुंची है लेकिन इसी तरह से चलता रहा तो यह असंभव भी नहीं है।
अगर वह अपनी निर्भरता चीन पर और अधिक बढ़ाता है तो उसकी हालत धोबी के कुत्ते की तरह हो जाएगी जो न घर का रहेगा न घाट का। ऐसे में उसे किसी रणनीतिक साझेदार की आवश्यकता है जो उसे इस चंगुल से निकाल सके। आज की स्थिति को देखते हुए यह सिर्फ भारत ही कर सकता है और यह रूस भी समझता है। भारत-रूस के संबंध राजनीति से लेकर रक्षा, असैनिक परमाणु ऊर्जा, आतंकवाद-रोधी सहयोग और अंतरिक्ष तक है। हाल के वर्षों में आर्थिक सहयोग भी बढ़ रहा है जी रूस की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। दोनों देशों ने द्विपक्षीय व्यापार को 2017 के लगभग 9.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर से वर्ष 2025 तक में 30 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित किया है यही नहीं इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए दोनों देश एक मुक्त व्यापार समझौता विकसित करना चाहते हैं। भारत रूस से ही सबसे अधिक रक्षा उपकरणों का आयात करता है। ऐसे में रूस चीन के चंगुल से बचने के लिए भारत पर निर्भर होना चाहता है।
वहीं, अगर पश्चिम की बात करें तो आज दुनिया के सामने सबसे बड़ी समस्या चीन की आक्रामक नीति है। इस समस्या से निपटने के लिए सभी देश भारत की ओर देख रहे हैं। चाहे अमेरिका हो या फ्रांस या जर्मनी। सभी देशों ने अपनी विदेश नीति में इंडो पैसिफिक को शामिल किया है। वहीं QUAD के एक आधिकारिक रूप लेने से भारत का महत्तव और बढ़ा है। अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया साथ मिल कर भारत को चीन से भिड़ने में मदद कर रहे हैं। मालाबार युद्धाभ्यास ने इस संगठन को एक सैन्य स्वरूप भी दे दिया है। वहीं, फ्रांस और जर्मनी ने भी अभी अपने विदेश नीति में बदलाव करते हुए इंडो पैसिफिक के लिए नीतियों का निर्धारण किया है। चीन की बढ़ती गुंडागर्दी के कारण ASEAN देश भी भारत से सहयोग को एक नई ऊंचाई दे रहे हैं। वहीं, अगर खाड़ी के देशों को देखा जाए तो सऊदी अरब और UAE ने पाकिस्तान को डंप कर भारत के साथ सम्बन्धों को मधुर करने का प्रयास आरंभ कर दिया है।
यही कुल मिलाकर भारत आज जियोपॉलिटिक्स में एक ऐसा प्लेयर बन चुका है जिससे कोई दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता और न ही नजरअंदाज करना चाहता है। भारत अब पशिम के लिए सिर्फ एक उपभोक्ता बाजार ही नहीं है बल्कि एक वैश्विक ताकत है और विश्व की राजनीति में उसके समर्थन की सख्त आवश्यकता है। अब यह दारोमदार भारत पर है कि वह QUAD को ध्यान में रखते हुए रूस के संदेह को दूर करे और समन्वय का संचार करे जिससे पशिम और रूस के बीच का यह तनाव कम हो और शांति की स्थापना हो।