रामजन्मभूमि परिसर के पुनर्निर्माण के पक्ष में सुनाए गए फैसले ने देशवासियों को अपने सांस्कृतिक प्रतीकों को पुनः प्राप्त करने के लिए एक नई प्रेरणा दी है। +अब दिल्ली के महरौली में स्थित कुतुब मीनार परिसर, जिसे हिंदुओं एवं जैन समुदाय के 27 से अधिक मंदिरों को ध्वस्त करके स्थापित किया गया था, उसे पुनः प्राप्त करने के लिए एक व्यापक अभियान प्रारंभ हो चुका है।
दैनिक जागरण की एक विशेष रिपोर्ट के अनुसार, “दिल्ली के साकेत कोर्ट में भगवान विष्णु और भगवान ऋषभदेव की ओर से मुकदमा दाखिल कर कुतुब मीनार परिसर में भग्नावस्था में पड़ी देवताओं की मूर्तियों की पुनर्स्थापना और पूजा-प्रबंधन का इंतजाम किए जाने की मांग की गई है। इस मुकदमे को विचारार्थ स्वीकार करने के मुद्दे पर मंगलवार को साकेत कोर्ट में सिविल जज नेहा शर्मा की अदालत में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई हुई। मामले पर अगली सुनवाई 24 दिसंबर को होगी”।
अब सूत्रों की मानें, तो इस मुकदमे में कुल पांच याचिकाकर्ता हैं। पहले याचिकाकर्ता है जैन समुदाय के आराध्य, तीर्थकर भगवान ऋषभदेव, जिनकी ओर से हरिशंकर जैन ने मुकदमा किया है। दूसरे याचिकाकर्ता भगवान विष्णु हैं, जिनकी ओर से रंजना अग्निहोत्री ने मुकदमा किया है। रंजना अग्निहोत्री अधिवक्ता हैं, जिन्होंने हाल ही में मथुरा के जिला न्यायालय में श्री कृष्णजन्मभूमि परिसर पर अवैध रूप से निर्मित शाही ईदगाह मस्जिद को हटाकर पूरी भूमि श्रीकृष्ण के भक्तों को पुनः सौंपने की याचिका सफलतापूर्वक दाखिल की थी।
इस मामले में भारत सरकार और भारत पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को प्रतिवादी बनाया गया है। इसी याचिका में कहा गया है कि दिल्ली के कुतुब मीनार परिसर में स्थित कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद को हिंदू और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर उनके मलबे से बनाया गया है। याचिका में ऐसा कहने की वजह है, महरौली परिसर की इमारतें, परिसर में जितनी भी इमारतें निर्मित है, उन्हें हिन्दू एवं जैन समुदाय के मंदिरों को तोड़कर निर्मित किया गया है, जिनके अवशेष आज भी उपस्थित हैं।
याचिककर्ताओं के अनुसार यह मुकदमा संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 में मिले धार्मिक आजादी के अधिकारों के तहत तोड़े गए मंदिरों की पुनर्स्थापना के लिए दाखिल किया गया है।
जागरण की रिपोर्ट के अनुसार ये भी बताया गया, “मंगलवार को याचिकाकर्ता की हैसियत से स्वयं बहस करते हुए हरिशंकर जैन ने कहा कि इस मामले में ऐतिहासिक और ASI के साक्ष्य हैं।इनसे साबित होता है कि इस्लाम की ताकत प्रदर्शित करने के लिए कुतुबुद्दीन ऐबक ने मंदिरों को तोड़कर मस्जिद का निर्माण कराया था। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम के तहत 1914 में अधिसूचना जारी कर इस पूरे परिसर का मालिकाना हक और प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया था। ऐसा करने से पहले सरकार ने हिंदू और जैन समुदाय को सुनवाई का मौका नहीं दिया।”
सच कहें तो जो लड़ाई श्रीरामजन्मभूमि परिसर को मुक्त कराने से शुरू हुई, उसने अब एक राष्ट्रवायपी अभियान का रूप ले लिया है। अब यदि आगे चलकर इसी अभियान के अंतर्गत श्री कृष्ण जन्मभूमि, दिल्ली के इस ध्रुव स्तम्भ परिसर और काशी के विश्वनाथ धाम जैसे अनेक तीर्थस्थल का जीर्णोद्धार हो, तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी।