हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट ने अमूल डेरी के उत्पादों के विरुद्ध एजेंडा फैलाती एक स्वघोषित वीगन वेबसाइट ditchdairy.in के विवादास्पद आर्टिकल पर उसे न केवल खरी खोटी सुनाई, बल्कि उस एजेंडावादी लेख को भी तत्काल प्रभाव से हटाने का आदेश दिया। लेकिन कोर्ट का यह निर्णय सिर्फ एक website के खिलाफ एक्शन के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। असल में इस निर्णय से दिल्ली हाई कोर्ट ने डेरी उद्योग पर बुरी नजर डालने वालों को एक जोरदार तमाचा जड़ा है।
ditchdairy.in नामक इस वेबसाइट ने अमूल के उत्पादों का उपहास उड़ाते हुए एक लेख लिखा, जिसका शीर्षक था ‘अमूल का सफेद झूठ और पशु दूध का काला सच’। ditchdairy वेबसाईट के एजेंडावादियों के मन में अमूल के प्रति कितनी घृणा थी, इस बात का अंदाज़ा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि उस लेख में अमूल के चर्चित टैगलाइन ‘द टेस्ट ऑफ इंडिया’ को ‘द वेस्ट ऑफ इंडिया’ में परिवर्तित कर दिया गया। इस लेख में अमूल के ऊपर कई बेबुनियाद आरोप लगाए थे, जैसे कि दूध उत्पादन में उपयोग में लाई जाने वाली गायों के प्रति क्रूरता दिखाना, दूध निकालने के लिए खतरनाक यंत्रों का इस्तेमाल इत्यादि।
इसके बाद इस एजेंडावादी website को सबक सिखाने के लिए अमूल ने इस वेबसाइट और इसके फ़ेसबुक पेज के विरुद्ध मुकदमा दायर किया, जिसपर निर्णय देते समय दिल्ली हाई कोर्ट ने उक्त वेबसाइट को खूब खरी खोटी सुनाई। कोर्ट के निर्णय के अनुसार ये वेबसाइट दूध और दूध से बने उत्पादों के प्रति जनता में भय का संचार कर रही है और अमूल के प्रति गलत धारणाएँ स्थापित कर रही है।
कहने को यह मानहानि का एक आम मुकदमा है, लेकिन अगर कोर्ट के निर्णय का विश्लेषण किया जाये और इस विषय की गहराई में जाए, तो आपको पता चलेगा कि दिल्ली हाई कोर्ट का यह निर्णय वीगनवादियों को एक कड़ा संदेश है। जिस प्रकार से हलाल प्रोडक्ट्स के लिए एक विशेष लॉबी ने लोगों की नाक में दम कर रखा है, और जिस प्रकार हलाल के नाम पर एक अलग उद्योग खड़ा हो चुका है, ठीक वैसे ही Veganism यानि वीगनवाद के बेतुके सिद्धांत को बढ़ावा देने वाले हाथ धोकर विभिन्न उद्योगों, विशेषकर डेरी उद्योग के पीछे पड़े हुए हैं।
अब डेरी उद्योग की तरफ वीगन लोगों की कुदृष्टि इसलिए भारत के लिए चिंताजनक है, क्योंकि भारत न सिर्फ दूध उत्पादन का विश्व में सबसे बड़ा केंद्र है, बल्कि यहाँ दूध देने वाली गायों का बहुत आदर सम्मान भी किया जाता है। आज़ादी के बाद भारत को Cow bases economy भी कहा गया था, क्योंकि शुरू से ही यहाँ के किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए दुग्ध उद्योग बेहद अहम रहा है। ऐसे में जिस प्रकार से वीगन लोग हाथ धोकर दुग्ध उद्योग के पीछे पड़े हुए हैं, उससे यदि इस उद्योग को कुछ नुकसान हुआ, तो इसका सबसे बड़ा असर भारत पर ही पड़ेगा। आसान भाषा में आप वीगनवादियों को किसान विरोधी भी कह सकते हैं। किसानों को ऐसे लोगों के खिलाफ भी इक्का-दुक्का प्रदर्शन निकालने ही चाहिए!
पर ये Veganism है क्या? आम तौर पर इंसान दो प्रकार के होते हैं, एक शाकाहारी, जो फल, सब्जी और अन्य प्रकार के शाकाहारी खाद्य पदार्थ खाते हैं, और दूसरे हैं मांसाहारी, जो जानवरों का मांस, अंडे इत्यादि का सेवन करते हैं। लेकिन वीगनवादी, इनसे इतर, ऐसे लोग होते हैं जो मांस खाना तो छोड़िए, जानवरों से उत्पन्न किसी भी प्रकार के उत्पाद को छूना भी नहीं पसंद करेंगे, जिसमें दूध भी शामिल है।
अगर एक आम इंसान की दिनचर्या में Veganism को लागू किया जाए, तो ये बड़ा ही बेतुका और अव्यवहारिक सिद्धांत है। चलिए, आप अपने भोजन को वीगन भी बना सकते हैं, कुछ हद तक अपने कपड़ों को भी वीगन बना सकते हैं, पर हर वस्तु को आप Veganism के अनुसार नहीं ढाल सकते। कई आवश्यक दवाएँ ऐसी है, जो कैप्सूल में आती है, और जिनमें “pig gelatine” का उपयोग होता है, जिसका उपयोग कुछ हद तक वैक्सीन में भी होता है। अब ये जेलेटिन अधिकतर मरे हुए जानवरों की चमड़ियों से निकाला जाता है।
लेकिन ये बात Veganism मानने वालों को नहीं समझ आती, जो अपनी बात मनवाने के लिए इस हद तक हो हल्ला मचाते हैं कि अब कई उत्पादों ने अपने आप को ‘Vegan Certified’ बताना तक शुरू कर दिया है, जैसे Baguette Bags हों, या फिर Killer Jeans। लेकिन इतने पे भी इनको तृप्ति नहीं मिली, तो अब इनकी नज़र दुग्ध उद्योग पर पड़ी है, जबकि अगर माँस उद्योग के विरुद्ध आवाज उठाने की बात हो, तो यही Vegan सबसे पहले मैदान छोड़कर भाग जाते हैं।
ऐसे में Veganism भारत में अपने फन फैलाने शुरू करें, इससे पहले ही भारत ने इनकी खोखले सिद्धांतों की धज्जियां उड़ानी शुरू कर दी है। जिस प्रकार से अमूल के विरुद्ध दुष्प्रचार करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने ditchdairy.in जैसे निम्न दर्जे के वेबसाइट को आड़े हाथों लिया है, वो इस दिशा में एक साहसिक और सराहनीय कदम है, जिसकी जमकर प्रशंसा की जानी चाहिए।