हाल ही में कई ऐसे विवाद हुए हैं जिनके बाद चर्चा शुरू हो गई है कि क्या बिग टेक कंपनी हमारे भविष्य को नियंत्रित करेंगी। राजनीति से लेकर वैचारिक प्रभाव एवं रुचि आदि सभी का नियंत्रण एवं जानकारी इन कंपनियों के हाथ में न आ जाए यह चिंता का विषय है। इस माहौल में कई कंपनियों के विरुद्ध कार्रवाई की बातें चल रही हैं, वहीं कई ऐसी कंपनियां हैं जो इस तूफान के थमने का इंतजार कर रही हैं, जिससे भावी कार्रवाई की गाज उनपर न गिरे। इनमें माइक्रोसॉफ्ट, Oracle प्रमुख हैं।
हाल में ट्विटर और फेसबुक ने राष्ट्रपति ट्रम्प के एकाउंट को डिलीट कर दिया था। उन्होंने ट्रम्प पर वैमनस्य फैलाने और हिंसा के लिए उकसाने का आरोप लगाकर उनके एकाउंट डिलीट कर दिए, जबकि यही प्लेटफॉर्म पूर्व में कई ऐसे विवादित लोगों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर, भ्रम फैलाने, हिंसा को उकसाने छूट देते रहे हैं। हास्यास्पद है कि तालिबान जैसे आतंकी संगठनों, खोमैनी जैसे तानाशाहों को खुली छूट है।
इतना ही नहीं जब ट्रम्प का एकाउंट हटाए जाने के विरोध में उनके समर्थक ट्विटर छोड़कर, Parler नाम के सोशल मीडिया नेटवर्क पर आने लगे तो Amazon Web Services ने इस app को ही डिलीट करवा दिया। अगर चुनावी प्रक्रिया में धांधली का आरोप लगाने पर ऐसी कार्रवाई होनी चाहिए तो सबसे पहले डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता हिलेरी क्लिंटन जैसे लोगों पर की जानी चाहिए थी, जिन्होंने ट्रम्प की जीत के वक्त ऐसे ही आरोप लगाए थे जैसे ट्रम्प अब लगा रहे हैं। उस समय डेमोक्रेटिक पार्टी ने भी बिल्कुल ऐसे ही ट्रम्प के राष्ट्रपति के रूप में पदग्रहण को अस्वीकार किया था।
वास्तव में ट्रम्प पर यह कार्रवाई इन कंपनियों ने अपने द्वेष के कारण की है। फेसबुक ने जून 2020 में अपने कंपनी में जारी अंतरिम आदेश में कहा था कि उसके कर्मचारी, ट्रम्प के चुनाव प्रचार को रोकने का प्रयास न करें। उस वक्त फेसबुक के वरिष्ठ अधिकारी एंड्रयू बॉसवर्थ ने कहा था कि उनकी दिली तमन्ना है कि ट्रम्प चुनाव हार जाएं लेकिन उनपर कार्रवाई न कि जाए। तब भी ट्रम्प पर यही आरोप थे लेकिन तब अपनी कंपनी की तथाकथित शर्तों के अनुसार उनका एकाउंट डिलीट नहीं किया गया।
वास्तविकता यह है कि ट्विटर, फेसबुक जैसे कई सोशल मीडिया प्लेटफार्म है जो वामपंथी उदारवादी विचारधारा को बढ़ावा देने का जरिया हैं, जबकि इन्हें खुली चर्चा का क्षेत्र होना चाहिए था। एक ऐसे दौर में जब एक बड़ी जनसंख्या इनका उपयोग कर रही है, इनका किसी एक विचार के पक्ष में झुकाव लोकतांत्रिक बहस के अवसर समाप्त करता है। AWS द्वारा Parler को हटाना और अधिक चिंता की बात है, जिसपर लोकतांत्रिक देशों को विचार करना चाहिए। क्या वे दो चार कंपनियों को इतनी छूट दे सकते हैं कि वे एक क्लिक से देश का राजनीतिक विमर्श तय करें।
इतना ही नहीं व्हाट्सएप द्वारा अपने ग्राहकों का डेटा चुराने जैसे विवाद ने चिंताएं और बढ़ा दी है।आज के समय में जब e कॉमर्स तेजी से विस्तृत हो रहा है, डेटा क्रूड ऑयल से भी अधिक मूल्यवान है। यही डेटा बताता है कि खरीदारी के मामले में आपकी रुचि कैसी है। इसी डेटा के इस्तेमाल से बड़ी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियां आपको आपकी रुचि की वस्तुएं दिखा रही हैं, और बाजार की खुली प्रतिस्पर्धा को धीरे धीरे खत्म कर एकाधिकार की ओर बढ़ रही हैं।
लेकिन बिग टेक को लेकर चल रहे घमासान में सर्वाधिक फायदा उन कंपनियों को है जो ग्राहकों के डेटा की सुरक्षा की गारंटी ले रही हैं तथा वामपंथ-दक्षिणपंथ की बहस में नहीं पड़ रहीं। Whatsapp द्वारा डेटा लेने की बात के बाद लोग Signal, टेलीग्राम जैसे एप्प की ओर रुख कर रहे हैं।
वहीं AWS द्वारा Parler पर की गई कार्रवाई ने कई कंपनियों को चिंतित कर दिया है जो AWS जैसे इंटरनेट क्लाउड का इस्तेमाल कर रही हैं। कल को किसी भी बड़ी कंपनी को शर्तें न पूरी करने के आरोप में AWS हटा सकता है। आप कल्पना करें कि एक बार हटाए जाने के बाद कंपनी को कितना बड़ा आर्थिक नुकसान हो सकता है। ऐसे में कई कंपनियां AWS जैसे प्लेटफॉर्म को छोड़ Microsoft, Oracle जैसे प्लेटफॉर्म की ओर रुख कर रही हैं।
बिग टेक और राजनीति की खींचतान में असली फायदा उन्हीं कंपनियों को है जो इस समय मौन धारण किये हैं तथा पक्षपात से दूर हैं।