एमेजॉन प्राइम पर रिलीज हुई सीरीज तांडव को यदि हम ट्रेंड सेटर कहें तो गलत नहीं होगा। वो इसलिए क्योंकि इस सीरीज ने जिस प्रकार से रचनात्मकता के नाम पर सनातन संस्कृति को अपमानित किया था, और जिस प्रकार से इस सीरीज ने अराजक तत्वों को भड़काने का प्रयास किया है, उसके कारण ऐसा विरोध हुआ कि अब केंद्र सरकार को OTT प्लेटफॉर्म के लिए भी अहम दिशा निर्देश निकालने के लिए विवश होना पड़ा है।
1 फरवरी से लागू होने वाले नए गाइडलाइंस के लिए सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने प्रेस को संबोधित करते हुए बताया कि सरकार ने सिनेमाघरों में occupancy बढ़ाने के अलावा OTT प्लेटफॉर्म को भी सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दायरे में लाने हेतु आवश्यक दिशानिर्देश निकालने पर जोर दिया है –
We've received a lot of complaints against some serials available on OTT platforms. Films & serials released on OTT platforms &digital newspapers don't come under purview of Press Council Act, Cable Television Networks (Regulation) Act or Censor Board: Union Min Prakash Javadekar pic.twitter.com/irMrymxfan
— ANI (@ANI) January 31, 2021
अब इसका अर्थ क्या है? केंद्र सरकार को भी आखिरकार इस बात को स्वीकार करना पड़ा है कि रचनात्मकता के नाम पर OTT प्लेटफॉर्म अपनी मनमानी जारी नहीं रख सकते। जिस प्रकार से OTT पे रचनात्मकता के नाम पर अश्लील, हिन्दू विरोधी और कभी कभी भारत विरोधी कंटेन्ट तक बिना किसी रोक टोक के परोसा जाता रहा है, उसी का परिणाम है कि अली अब्बास ज़फ़र और गौरव सोलंकी जैसे लोग रचनात्मकता के नाम पर हिन्दू देवी देवताओं का पत्र निभा रहे अभिनेताओं के मुंह से भद्दी भद्दी गालियां निकलवाने, जातिवाद को बढ़ावा देने को उचित मानता है, जैसा कि तांडव में अभी दिखा था।
लेकिन तांडव में सनातन संस्कृति का अपमान और अतार्किक भारत विरोधी तत्व देखकर जनता के सब्र का बांध टूट गया। उन्होंने जमकर विरोध प्रदर्शन किया, जिसके चलते यूपी, एमपी और महाराष्ट्र में कई मुकदमे दर्ज हुए। स्वयं वेब सीरीज के रचयिताओं को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के दिशा निर्देश अनुसार कुछ सीन तांडव से हटवाने पड़े थे।
लेकिन ये बदलाव यूं ही नहीं हुआ, बल्कि इसके पीछे महीनों से वेब सीरीज़ के नाम पर परोसा जा रहा भारत विरोध, सनातन धर्म के प्रति घृणा के प्रति जनता का आक्रोश था। इस विषय पर सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही बदलाव के संकेत दे दिए थे, जब उन्होंने तांडव के रचयिताओं की संभावित गिरफ़्तारी पे रोक लगाने से माना कर दिया था
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तांडव के भड़काऊ दृश्यों में काफी हद तक शामिल अभिनेता मोहम्मद जीशान अयूब, निर्देशक अली अब्बास ज़फ़र एवं एमेजॉन प्राइम इंडिया की क्रिएटिव हेड अपर्णा पुरोहित ने इन मुकदमों के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की।सुप्रीम कोर्ट ने केवल इनकी याचिका को निरस्त नहीं किया, बल्कि तांडव के रचयिताओं को स्पष्ट बताया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अनंत नहीं है, और उन्हें कुछ सीमाओं के अंतर्गत काम करना पड़ेगा।
इसी बीच जब अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने मोहम्मद जीशान अयूब का बचाव करने के लिए ऊटपटाँग दलीलें दी, तो जस्टिस एम आर शाह भड़क गए और उन्होंने खूब खरी खोटी सुनाते हुए कहा, “जब आपने कान्ट्रैक्ट स्वीकारा था, तो आपने स्क्रिप्ट भी पढ़ी होगी, फिर आप ऐसा काम क्यों करते हो, जिससे लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचे?”
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि तांडव ने जनता को इस दिशा में राह दिखाई है कि जानबूझकर भारतीय संस्कृति को अपमान करने वाले शो से किस प्रकार से निपटना है। जिस प्रकार से तांडव को अपने विवादित सीन हटाने पर विवश होना पड़ा, और जिस प्रकार से केंद्र सरकार ने OTT पर इस तरह के शोज़ पर लगाम लगाने के लिए गाइडलाइंस जारी करने का निर्णय किया है, वो अपने आप में जनता के लिए एक महत्वपूर्ण विजय है, और इस बात का भी संकेत देती है कि यह लड़ाई अब यहीं पर नहीं रुकने वाली।