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पंजाबी हिन्दू अल्पसंख्यकों की घोर दुर्दशा: एक ऐसा समुदाय जिनके दर्द को कोई नहीं सुनना चाहता

पंजाब में ही पंजाबी हिन्दू खतरे में हैं....

Shikhar Srivastava द्वारा Shikhar Srivastava
11 February 2021
in समीक्षा
पंजाबी हिन्दू अल्पसंख्यकों की घोर दुर्दशा: एक ऐसा समुदाय जिनके दर्द को कोई नहीं सुनना चाहता
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उदारवादी लोकतंत्रों की सबसे बड़ी समस्या यही है कि वे कुछ मुद्दों की ओर आंख मूंदे रखते हैं, ये सोचकर कि ऐसा करने से वो जहर धीरे धीरे खत्म हो जाएगा। लेकिन अलगाववाद ऐसा जहर है जो हमेशा अंदर बैठा रहता है, बस इतंजार करता है सही समय पर बाहर आने का। खालिस्तानी अलगाववादी आंदोलन पंजाब के इतिहास के गर्भ में दबा दिया गया ऐसा ही एक मुद्दा है, जिसपर भयवश कभी खुली चर्चा नहीं हुई।

खालिस्तान अर्थात सिक्खों की खालसा या शुद्ध भूमि पर उनका देश। भ्रामक ऐतिहासिक व्याख्याओं पर टिका सिक्ख अलगाववाद भारत के सबसे दुर्दांत आंदोलनों में था। इसने एक दशक तक पंजाब को जलाया। यही कारण है कि खालिस्तान आंदोलन को दबा देने के बाद किसी राजनीतिक दल, विचारक या समाजशास्त्री ने इसपर अधिक चर्चा नहीं की।

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खालिस्तानी शुद्धता पर जोर देते हैं। अपने को अन्य धर्मों से श्रेष्ठ मानते हैं। खालिस्तानी मानते हैं कि हिन्दू दूसरे दर्जे के नागरिक हैं। साथ ही वे ऐसे सिक्खों के भी विरोधी हैं जो अन्य मतावलंबियों के साथ समानता का व्यवहार करते हैं। खालिस्तानियों ने केवल हिंदुओं की हत्याएं नहीं कि, उन्होंने निरंकारी सिक्खों या राधास्वामी सिक्खों की भी हत्याएं कीं हैं।

खालिस्तानियों की ऐतिहासिक व्याख्याओं में कोई दम नहीं है। यह सत्य है कि गुरु नानक देव ने हिन्दू मान्यताओं की आलोचना की थी, किंतु इसका मतलब यह नहीं कि वे अलग धर्म को चला रहे थे। यदि ऐसा होता तो उन्होंने अपनी लेखनी में कहीं न कहीं यह बात लिखी होती।

पश्चिमी देशों में फैले अब्राहमिक रिलीजन यह मानते हैं कि पंथिक मान्यताओं की आलोचना नहीं हो सकती, आलोचना का तात्पर्य अलग रिलीजन की स्थापना। यही कारण है कि जब पश्चिमी विचारक नानक जैसे लोगों को पढ़ते हैं तो यह धारणा बना लेते हैं कि यह अन्य रिलिजन के संस्थापक हैं।

किंतु भारत में मान्यताओं को चुनौती देना और नई मान्यताओं का सृजन करना, हमेशा से होता रहा है। कृष्ण, बुद्ध, महावीर, शंकराचार्य आदि ने यही किया। नानक के समकालीन ही कबीर, रैदास आदि ने हिन्दू मान्यताओं को चुनौती दी। तो क्या उनके मतों को अलग रिलीजन मान लिया जाए?

ऐतिहासिक सत्य यह है कि गुरु तेग बहादुर के साथ बलिदान देने वाले उनके प्रिय शिष्य भाई सतीदास और भाई मतिदास हिन्दू थे, जिन्हें औरंगजेब ने आरी से कटवाकर और गर्म पानी में उबालकर मरवाया था। यदि सिक्ख अलग धर्म है तो उसके दसवें गुरु गोविंद सिंह जी शिवा, ‘माँ दुर्गा’, के भक्त क्यों थे। उनका विवाह वैदिक मंत्रोच्चार के साथ हुआ था, यह भी ऐतिहासिक सत्य है।

शुद्ध भूमि या खालसा की मांग रखने वाले खालिस्तानी यह भूल जाते हैं कि गुरु गोविंद सिंह जी, पटना में पैदा हुए। उनके पंज प्यारे, भाई दयाराम जी, ब्राह्मण थे, भाई धरम सिंह जी, जाट थे। कोई शिष्य उड़ीसा से था, कोई गुजरात से। क्या सिक्खी के इतिहास से इसे भी मिटाया जा सकता है। इन सब तथ्यों को खालिस्तानियों ने नकार दिया है।

पंजाब में खालिस्तानियों द्वारा हिंदुओं पर अत्याचार का इतिहास बहुत पुराना है। 1981 में हिन्द समाचार के सम्पादक लाला जगत नारायण की हत्या को भिंडरावाले समर्थकों की पहली हत्या माना जाता है। उसके बाद भिंडरावाले की गिरफ्तारी हुई और हिंसा का जो दौर शुरू हुआ उसने हजारों हिंदुओं की जान ली। भिंडरावाले की गिरफ्तारी के बाद इतनी हिंसा हुई कि सरकार को उसे 25 दिनों में छोड़ना पड़ा।

खालिस्तान की सोच केवल भिंडरावाले तक सीमित नहीं थी। भिंडरावाले की मौत के बाद भी हिंदुओं पर अत्याचार होते रहे। ह्यूमनराइट्स की रिपोर्ट बताती है कि खालिस्तानयों की हिंसा के कारण 1986 से बड़े पैमाने पर हिंदुओं का पलायन हुआ। भिंडरावाले के समर्थक मानते हैं कि वह एक व्यक्ति नहीं सोच है। हम इसे स्वीकार करें या नहीं, पर सत्य यह है कि ऐसी सोच रखने वाले आज भी मौजूद हैं। यही कारण है कि खालिस्तानी तत्व हमें किसानों के आंदोलन में भी दिखाई दे रहे हैं।

राजनीतिक अप्रासंगिकता ने हिंदुओ पर पंजाब में हुए अत्याचारों की कहानी को आम चर्चा का हिस्सा नहीं बनने दिया। सत्य यह है कि 38.49% हिन्दू आबादी के बाद भी पंजाब ने कभी हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं देखा। जबकि 2% सिक्ख आबादी के बाद भी भारत के 80 प्रतिशत हिंदुओं ने गर्व से सिक्ख नेताओं का नेतृत्व स्वीकार किया। ऐसा इसलिए क्योंकि हिंदुओं ने कभी अपनी ओर से सिक्खों को अपने से अलग नहीं माना।

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आज भी पंजाब में सिक्खों को माइनॉरिटी स्टेट्स का दर्जा प्राप्त है, जबकि संख्या में कम होने के बाद भी हिंदुओं को इससे वंचित रखा गया है। प्रश्न है कि क्यों पंजाब हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं देख सकता?

हिंदुओं के साथ दूसरे दर्जे के नागरिक का व्यवहार पंजाबी फिल्मों में भी देखने को मिलता है। खुले तौर पर फिल्में इस तरह के विचारों को बढ़ावा दे रही हैं।

https://twitter.com/baahu_bali/status/1359384828559376385?s=20

आज सिक्ख नेता बताते हैं कि हिंदुओं को बचाने के लिए ही सिक्खों ने शहादत दी थी। यह बिल्कुल सत्य है, किंतु वे सिक्ख थे कौन। हिंदुओं ही धर्म की रक्षा के लिए स्वयं को खालसा के झंडेतले एकजुट कर रहे थे। गुरुगोविंद सिंह जी के पंज प्यारे, हिन्दू ही थे। मुगलों को धूल चटाने वाले बंदा बहादुर हिन्दू ही थे। उन्होंने अप्रतिम बलिदान को दर्शाने के लिए स्वयं को खालसा ‘शुद्ध’ योद्धा बनाया। वे किसी अन्य धर्म की स्थापना के लिए नहीं लड़े।

What a shame this lady is @HarsimratBadal_ .. pic.twitter.com/p4h2qXtfpT

— exsecular(Modi ka Parivar) (@ExSecular) February 9, 2021

सत्य यह है कि मध्यकाल में हिंदुओं ने मिलकर आततायी मुसलमानों के आक्रमणों का विरोध किया। रही बात हिंदुओं के रक्षण की तो ऐतिहासिक तथ्य यह भी है कि जब पठानों के आक्रमण से सिक्ख भयभीत हुए थे, अमृतसर में हरमिंदर साहब पर हरा झंडा लहरा रहा था, सोने के गुरुद्वारे को मिट्टी से भर दिया गया था, तब मराठा फौज ने खालसा पंथ की सुरक्षा की। महान मराठा योद्धा रघुनाथ पंडितराव के नेतृत्व में हिंदुओं ने सिक्खों की रक्षा की। (सोर्स- मराठा रियासत, vol-4, G S सरदेसाई)

यह सत्य है कि सिक्खों ने आजादी के आंदोलन में बहुत योगदान दिया। किंतु ऐसे नहीं है कि किसी अन्य ने कम योगदान दिया। 1857 के विद्रोह में अवध की विद्रोही सेना में सभी विद्रोही पंडित ही थे। ( सोर्स – विलियम डेलरिम्पल की आखिरी मुगल)

भारत में 1905 से 1910 तक, जब प्रथम क्रांतिकारी आंदोलन शुरू हुआ, तो फाँसी चढ़ने वालों में अधिकांश सवर्ण कायस्थ और ब्राह्मण थे। (सोर्स- सुमित सरकार, आधुनिक भारत) भारत के लिए बलिदान सभी ने दिया है, कुछ के बलिदानों को गीतों का रूप मिल गया, कुछ इतिहास के गर्भ में छुप गए।

भारतीय फौज में सिक्खों की बड़ी संख्या का कारण यह है कि 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेजी हुकूमत हिंदुओं और मुसलमानों से भयभीत थी। इसलिए उसने इतिहास को तोड़ मरोड़ कर सिक्खों को हिंदुओं से अलग पहचान दी और उन्हें अपनी फौज का मुख्य आधार बनाया। सिक्खों को योजनाबद्ध तरीके से सैनिक कौम बनाया गया, क्योंकि वे राष्ट्रवादी उत्तर भारतीयों के विरुद्ध ढाल बन सकें।

(सोर्स :- Punjab and the Raj, 1849-1947 Ian Talbot)

सेना में औपनिवेशिक काल का यह प्रभाव मौजूदा है, इसीलिए आज भी सिक्ख बड़ी संख्या में हैं। यह दैवीय शक्ति नहीं, प्रशासनिक योजना के कारण हैं।

शुद्धता के नाम पर धार्मिक, भाषाई, नक्सली हिंसा एक आम बात है। शुद्धता के नाम पर ही ISIS जैसे संगठन बने, जो सिर्फ गैर मुस्लिमों को ही नहीं, बल्कि इस्लाम की शुद्धता के नाम पर ही अन्य इस्लामिक मतावलंबियों को भी मारते हैं। खालिस्तान का विचार भी शुद्धता की बात पर टिका है, इसपर मिट्टी डालने से यह खत्म नहीं होगा। यह अंदर ही अंदर जहर की तरह फैलता रहेगा और समय-समय पर कभी किसान आंदोलन के रूप में तो भी अन्य रूप में, इसी तरह सतह पर आता रहेगा। आवश्यकता है कि इसपर चर्चा की जाए, इसकी मान्यताओं की धज्जियां उड़ाई जाए, और सबसे बड़ी बात पंजाबी हिंदुओं पर हुए अत्याचारों पर भी चर्चा की जाए।

Tags: Farmer ProtestHinduphobiaKhalistanPunjab
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