अनुच्छेद 370 और रोशनी एक्ट के बाद अब जम्मू को कट्टरवादियों से बचाने के लिए म्यांमार से आने वाले रोहिंग्याओं की पहचान और उन्हें वापस भेजने की प्रक्रिया की शुरुआत हो चुकी है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि जम्मू कश्मीर की पूर्ववर्ती सरकारों ने जानबुझ कर रोहिंग्याओं को जम्मू के हिन्दू बहुल क्षेत्रों में बसा कर वहां की डेमोग्राफी बदलने का भरसक प्रयास किया। परन्तु अब मोदी सरकार ने उस प्लान को ध्वस्त करते हुए रोहिंग्याओं की पहचान और उन्हें अलग करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
रिपोर्ट के अनुसार कम से कम 155 अवैध रोहिंग्या अप्रवासी जो म्यांमार में आकर जम्मू और कश्मीर में रह रहे थे, उन्हें शनिवार को Foreigners Act की धारा 3 (2) के तहत एक “होल्डिंग सेंटर” में भेजा गया।
जम्मू क्षेत्र के पुलिस महानिरीक्षक मुकेश सिंह ने कहा, “जम्मू-कश्मीर में रह रहे 155 अवैध अप्रवासी रोहिंग्याओं को 5 मार्च, 2021 को गृह विभाग की अधिसूचना की “होल्डिंग सेंटर” में भेजा गया। उन्होंने बताया कियह कार्रवाई Foreigners Act की धारा 3 (2) के तहतकिया गया। इस कवायद में कानून की विधिवत प्रक्रिया का पालन किया गया। ये अप्रवासी पासपोर्ट अधिनियम की धारा (3) के संदर्भ में आवश्यक वैध यात्रा डॉक्यूमेंट नहीं रखते थे।
ऐसे और भी अप्रवासियों की पहचान करने की कवायद चल रही है और संघीय प्रदेश की प्रशासन यहां रह रहे रोहिंग्याओं की बायोमीट्रिक और अन्य जानकारियां जुटा रही है।
आईजीपी ने बताया, “उन्हें होल्डिंग सेंटर में भेजने के बाद, निर्धारित मानदंडों के अनुसार उनका राष्ट्रीयता सत्यापन किया जाएगा। इसके बाद, इन अवैध आप्रवासियों को डिपोर्ट की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।”
बता दें कि पिछली पीडीपी-भाजपा सरकार को केंद्र द्वारा जम्मू-कश्मीर में रोहिंग्याओं का एक डेटाबेस तैयार करने के लिए कहा गया था ताकि उन्हें उनके देश डिपोर्ट किया जा सके। प्रशासन के मुताबिक, अभी तक करीब 6000 रोहिंग्याओं की पहचान की गई है। सिलसिलेवार तरीके से इन्हें हिरासत में लेकर वापस भेजा जाएगा।
सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में कुल 13600 विदेशी नागरिक अवैध रूप से रह रहे हैं। जिनमें सबसे ज्यादा संख्या रोहिंग्याओं और बांग्लादेशियों की है। दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार जम्मू में भी इनकी बड़ी संख्या है। जम्मू के बेली चराना और सांबा में भी इनकी बड़ी संख्या है। कई बार रोहिंग्याओं का नाम ड्रग रैकेट जैसे अपराधों में सामने आया था। जम्मू के सुंजवां मिलिट्री स्टेशन पर हुए आतंकी हमले में भी इनकी भूमिका के आरोप लगे थे।
अमर उजाला की रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्याओं के खिलाफ कार्रवाई के बाद अब इनके मददगारों पर भी शिकंजा कसेगा। इन्हें मदद पहुंचाने वाले एनजीओ, व्यक्तिगत लोगों, धर्म प्रचारकों की जांच की तैयारी सरकार ने की है।
सरकार से जुड़े उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि इनके मददगारों को चिह्नित कर लिया गया है। ये रोहिंग्याओं को न सिर्फ पढ़ाई लिखाई बल्कि उनके खाने-पीने के सामान से ले कर न जाने कई मदद पहुंचाते रहे हैं। आशंका जताई जा रही है कि इन संस्थाओं को बाहरी लोगों की मदद मिलती रही है। बच्चों को आस-पास के मदरसे में भेजने के साथ ही बस्तियों में भी पढ़ाई लिखाई कराई जाती है।
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रिपोर्ट के अनुसार सूत्रों ने बताया कि इन संस्थाओं की पृष्ठभूमि, उनके बैंक अकाउंट तथा आडिट रिपोर्ट की जांच की जाएगी। इससे सब कुछ स्पष्ट हो जाएगा। यह भी इनपुट है कि बठिंडी और सुजुवां इलाके में सबसे पहले एक एनजीओ ने लाकर 45-50 रोहिंग्याओं को बसाया था। इसके बाद इनकी संख्या धीरे-धीरे बढ़ती गई। जम्मू के बाहरी इलाके में 30 से अधिक स्थानों पर इन्होंने अपना अस्थायी ठिकाना बना लिया। इनमें सुजुवां तथा नगरोटा जैसे इलाके भी शामिल हैं जहां से सैन्य प्रतिष्ठान की दूरी बहुत अधिक नहीं है।
एक रिपोर्ट के अनुसार वहां के अधिकारी भी यह मानते हैं कि म्यांमार से भारत में आए रोहिंग्याओं के लिए नया घर हमेशा हिंदू बहुल जम्मू रहा है, मुस्लिम बहुल कश्मीर नहीं। यानि स्पष्ट है कि जिन राजनीतिक पार्टियों ने आजादी के बाद कश्मीर के मंदिर तोड़ वहां की डेमोग्राफी बदली वे ही जम्मू में भी रोहिंग्याओं को फ्री पास देकर डेमोग्राफी बदलने के षड़यंत्र पर काम कर रही थीं। वहीं 1990 में कश्मीरी पंडितों के साथ अत्याचार कर उन्हें भागने पर विवश कर डेमोग्राफी बदलने की खुलेयाम कारनामा किसी से छुपा नहीं है।
परन्तु अब अनुच्छेद 370 के हटने और जम्मू कश्मीर का संघीय प्रदेश बनाने के बाद जमीनी स्तर पर भी बदलाव होने लगा है। मोदी सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद रोशनी एक्ट को भी हटा दिया था। भारत का कोई भी नागरिक जम्मू-कश्मीर में न जमीन खरीद सकता था और न ही बस सकता था, लेकिन रोशनी एक्ट के अंतर्गत चाहे पड़ोसी देश पाकिस्तान हो, या फिर रोहिंग्या घुसपैठिए हो, उन्हें बेरोक-टोक जमीन आवंटित की जा रही थी। इस अधिनियम के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर में सरकारी ज़मीन पर जो भी अवैध कब्जा करता है, उसे ही उस क्षेत्र का वास्तविक स्वामी भी बना दिया जाता। इसका उद्देश्य जम्मू की जनसांख्यिकी को बदलना नहीं था तो और क्या था?
इस एक्ट के तहत जितनी भी जमीन आवंटित की गई है, उसे वापिस लेने के लिए केंद्र सरकार की ओर से प्रशासन को छह महीने का समय भी दिया गया। बता दें कि उच्च न्यायालय द्वारा जम्मू-कश्मीर के चर्चित रोशनी एक्ट को पहले ही असंवैधानिक करार दिया जा चुका है। यही नहीं सरकार ने और देश के किसी भी भाग में रहने वाले भारतीयों को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने की भी अनुमति दे दी। अब रोहिंग्याओं पर कार्रवाई के बाद जम्मू कश्मीर के फारुख अब्दुला ने कहा है कि, “भारत को इस मुद्दे से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के चार्टर का पालन कर उसके मुताबिक ही चलना चाहिए।“
डॉ अब्दुल्ला ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर पार्टी मुख्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “हम म्यांमार में मौजूदा स्थिति से पूरी तरह से परिचित हैं और भारत शरणार्थियों के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र के चार्टर पर हस्ताक्षर कर चुका है। इसलिए हमें मानवीय आधार पर इसका पालन करना चाहिए।”
यह विडम्बना ही है कि रोहिंग्या मुसलमानों के खिलाफ एक्शन की बात होती है तो अब्दुल्ला को घुसपैठिओं को शरणार्थी बता कर यूएन चार्टर याद आ जाता है। किंतु, जब हिंदुओं की बात होती है सांप सूंघ जाता है। अब एक्शन की शुरुआत हो चुकी है अब यह देखना है कि कौन कौन इस लपेटे में आता है।