उत्तराखंड के जंगलों में एक बार फिर आग लगने की घटना सामने आई है। वह भी अप्रैल के महीने में, जब तापमान गर्मियों के उच्चतम स्तर तक नहीं पहुंचा है। आमतौर पर इस तरह की आग उच्च तापमान के कारण लगती है। इस बार, सर्दियों के महीनों में ही उत्तराखंड के कई जिलों में जंगल में आग लगना शुरू हो गई थी।
अधिकांश पहाड़ी जिले जैसे नैनीताल, अल्मोड़ा, टिहरी और पौड़ी उग्र जंगल की आग की चपेट में आ गए हैं। पिछले साल 172 हेक्टेयर की तुलना में, इस साल 1290 हेक्टेयर से अधिक वन भूमि आग से प्रभावित हुई है। ऐसा लगता है कि इसके वाबजूद भी राज्य सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है।
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पिछले छह महीनों में जंगल में आग लगने की 1,000 घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जबकि बीते 24 घंटों में जंगलों में 45 जगह आग की घटनाएं सामने आई हैं। उत्तराखंड सरकार ने रविवार को हेलीकॉप्टर और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (एनडीआरएफ) कर्मियों के लिए केंद्र से मदद मांगी। साथ ही राज्य सरकार के अधिकारियों की एक आपात बैठक बुलाई।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्विटर पर पोस्ट कर बताया कि उन्हें मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत द्वारा स्थिति के बारे में जानकारी दी गई है। आवश्यक उपकरण और कर्मियों को भेजने के लिए निर्देश जारी किए गए हैं। आपात बैठक में, सीएम रावत ने वन अधिकारियों और जिला अधिकारियों को निर्देश दिये कि जब तक आग पर नियंत्रण नहीं पा लिया जाता, तब तक वे अपने कर्मचारियों को नियमित अवकाश न दें।
मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के अनुसार, अग्निशमन कार्यों के लिए 12,000 से अधिक वन कर्मियों को तैनात किया गया है। वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 1 अक्टूबर, 2020 के बाद से 1,359 हेक्टेयर जंगल में आग की 1,028 घटनाएं सामने आई हैं। ये घटनाएँ मुख्य रूप से नैनीताल, अल्मोड़ा, टिहरी गढ़वाल और पौड़ी गढ़वाल जिलों में घटित हुई थीं। वहीं हाल में लगी आग में कम से कम पांच लोगों और सात जानवरों के मारे जाने की खबर सामने आई है।
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द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्थिति को “खतरनाक” बताया, क्योंकि जंगल की आग के लिए “पीक टाइम” अभी तक नहीं आया है। सामान्यतः मई के तीसरे सप्ताह में तापमान सबसे अधिक होता है। वहीं इस साल, यह अप्रैल के पहले सप्ताह से ही शुरू हो गया है। मौसम विभाग ने 6 और 7 अप्रैल को बारिश की भविष्यवाणी की है, जिससे थोड़ी राहत मिल सकती है। लेकिन आगे तापमान बढ़ने के कारण स्थिति और खराब हो जाएगी।’
उत्तराखंड में जंगल की आग की घटनाओं के अधिकांश मामले मानव निर्मित हैं। वन क्षेत्रों के निकट और आसपास के लोगों की प्रतिबंधित आवाजाही के कारण मामलों की संख्या कम होने की संभावना है। एक आरटीआई के जवाब के उत्तराखंड सरकार द्वारा बताया गया है कि, साल 2000 में राज्य के गठन के बाद से, जंगल की आग में 44,554 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा है।
जंगल की आग ने पिछले साल 172 हेक्टेयर जंगलों को प्रभावित किया था। 2019 में जंगल की आग के कारण प्रभावित वन क्षेत्र 2,981 हेक्टेयर था। वहीं साल 2018 में यह आंकड़ा 4,480 हेक्टेयर, 2017 में 1,228 हेक्टेयर, 2016 में 4,433 हेक्टेयर और 2015 में 701 हेक्टेयर था।
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उत्तराखंड वन विभाग के पास राज्य भर में 174 चौकीदार और 1,437 स्टेशन कर्मचारी हैं, जो जंगल की आग पर नजर रखने और उनकी जांच करने के लिए उपाय करते हैं। इस भयावह स्थिति के बारे में पता होने के बाद भी राज्य सरकार द्वारा कड़े कदम न उठाना दिखाता है कि सरकार स्थिति सुधारने में तत्पर नहीं है।
जंगल में आग की घटनाओं की संख्या बढ़ने के साथ, विशेषज्ञों और विपक्षी दलों ने सरकार पर “स्थिति को संभालने के लिए” ध्यान केंद्रित नहीं करने का आरोप लगाया है, जो “विनाशकारी मोड़” ले रहा है। अब देखना है कि राज्य सरकार कब होश में आती है और बढ़ते तापमान के साथ बढ़ने वाली आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए क्या उपाए करती है।