जब किसी भी चीज की राजनेताओं द्वारा अति कर दी जाती है तो फिर जनता का गुस्सा उबाल मारने लगता है। जनता नुकसान सह कर भी नेताओं को सबक सिखाने की नीयत रखने लगती है। कुछ ऐसा ही पश्चिम बंगाल में शायद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी के साथ भी हो रहा है। एक तरफ जहां प्रत्येक चरण में 80 फीसदी के करीब हुई बंपर वोटिंग ममता के प्रति गुस्से का संकेत कर रही है तो वहीं अब पंजाब उत्तर प्रदेश और दिल्ली से बंगाल के नागरिक केवल इसलिए वापसी कर रहे हैं क्योंकि उन्हें मतदान करना है।
पश्चिम बंगाल में छठवें चरण का मतदान समाप्त हो गया, 43 सीटों के इस चरण में भी जनता ने 79 फीसदी की बंपर वोटिंग की है। वोटिंग का बढ़ता प्रतिशत विश्लेषकों द्वारा सत्ताधारी दल के प्रति गुस्से के तौर पर देखा जाता है। ऐसे में ये माना जा रहा है, लोग इस बार सीएम ममता बनर्जी से खासा नाराज हैं। दूसरी ओर अब पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के अलग-अलग इलाकों में काम करने वाले बंगाल के प्रवासी मजदूर और कामगार भी अगले दो चरणों की वोटिंग के लिए बंगाल वापसी कर रहे हैं। इस दौरान उन्होंने जो कहा वो बेहद ग़ौर करने वाला है।
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चुनाव आयोग की प्लानिंग के अनुसार सातवें और आठवें चरण की वोटिंग 26 और 29 अप्रैल को होनी है। ऐसे में पश्चिम बंगाल के मालदा में रहने वाले वापस लौट रहें एक प्रवासी मजदूर ने बताया कि वो किसी भी कीमत पर अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहते हैं। राजेंद्र चौधरी नाम के इस शख्स ने कहा, “मैं अपना वोट बर्बाद नहीं करना चाहता। हालांकि, इसके लिए मुझे 15 दिनों तक मजदूरी न करने पर नुकसान भी झेलना होगा, क्योंकि मैं चुनावी परिणामों के बाद पांच मई तक काम पर वापस लौटूंगा।”
पंजाब में जब गेहूं की कटाई हो रही है तो ऐसे कमाई के वक्त में भी राजेंद्र पंजाब छोड़ बंगाल जाने को तैयार हैं। उन्होंने कहा, “मैने ट्रेन के बजाए बस से जाने का फैसला किया है, क्योंकि चुनाव को देखते हुए कई निजी कंपनियां बसों का संचालन कर रही हैं।” साफ है कि राजेंद्र अपना नुकसान करने के बावजूद वोट देने से नहीं चूकना चाहते हैं। इस मामले में राजेंद्र तो केवल एक उदाहरण हैं, क्योंकि ऐसे लाखो लोग बंगाल के अपने निज आवास में गए हैं जिन्हें केवल अपने वोट का इस्तेमाल करना है और ये मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए एक मुश्किल चुनौती है।
कोरोना काल के पहले दौर में जब पिछले साल बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हुआ था, तो यूपी, बिहार की अपेक्षा पश्चिम बंगाल की ममता सरकार का रवैया बेहद ही उदासीन था। ममता सरकार की तरफ से इन प्रवासियों का कोई ख्याल नहीं रखा गया। यहां तक कि केन्द्र की मोदी सरकार के आग्रह के बावजूद ममता दीदी ने बंगाल से ट्रेनों के संचालन को लेकर ढुलमुल रवैया अपनाया, जिससे बंगाल के प्रवासी मजदूरों में काफी नाराजगी थी।
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वोटिंग के अधिकार को लेकर इतनी सजगता और अपना नुकसान करने तक का जज्बा दिखाता है कि कहीं-न-कहीं ये ममता दीदी के खिलाफ प्रवासियों का गुस्सा है और वो ममता को एक तगड़ा सबक सिखाना चाहते हैं। ये साफ संकेत देता है कि इन चुनावों में ममता दीदी प्रवासी मजदूरों के एक बड़े वोट बैंक से भी हाथ धौ बैंठी हैं और ये उन्हें नतीजों के वक्त बड़ा भारी पड़ने वाला है।