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अखलाक की मौत Vs 14 BJP कार्यकर्ताओं की हत्या, क्या लगता है किसे अधिक कवरेज मिली?

Lynching पर हल्ला करने वालों, इधर भी देखो

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
9 May 2021
in मत
अखलाक की मौत Vs 14 BJP कार्यकर्ताओं की हत्या, क्या लगता है किसे अधिक कवरेज मिली?
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पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित हुए लगभग एक सप्ताह से अधिक हो चुका है लेकिन आज भी राज्य के विभिन्न हिस्सों में चुनाव के बाद हिंसा जारी है। यह हिंसा अब सिर्फ राजनीतिक कार्यकर्ताओं तक ही नहीं बल्कि आम हिन्दुओं और बीजेपी समर्थकों के खिलाफ भी हो रही है।

हालाँकि न तो इसके लिए कोई अन्तराष्ट्रीय मीडिया में लेख लिखा जा रहा है और न ही कोई अवार्ड वापसी हो रही है। बीजेपी के अनुसार अभी तक उसके लगभग 14 कार्यकर्ताओं की इस हिंसा में मौत हो चुकी है लेकिन न तो राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया में कवरेज मिल रही है और अन्तराष्ट्रीय मीडिया को कोई फर्क पड़ रहा है।

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राहुल गांधी का ह्यूस्टन इवेंट आयोजित करने वाली संस्था CAIR अमेरिका में आतंकी संगठन घोषित, हिंदू घृणा फैलाने वाली संस्था के अलकायदा, हमास जैसे आतंकी संगठनों से मिले रिश्ते

अमेरिका ने भारत को बताया “मेजर डिफेंस पार्टनर”, जैवलिन मिसाइल समेत बड़े डिफेंस पैकेज को दी मंजूरी, पटरी पर लौट रहे हैं रिश्ते ?

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अगर हम पीछे पलट कर दादरी में हुई अकलाक की  दुर्भाग्यपूर्ण हत्या को मिली कवरेज की तुलना आज पश्चिम बंगाल में हो रही हत्याओं से करे तो स्पष्ट पता चल जायेगा कि मीडिया किस बेबाकी से बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या को नजरअंदाज कर रही है।

यह विडम्बना ही है कि भारत जैसे देश में किसी मौत को भी जब तक सेक्युलरिज्म के तराजू में नहीं तौला जाता तब तक उसे मीडिया कवरेज नहीं मिलता। अब पश्चिम बंगाल में हो रही हत्याओं से तो लिबरल ब्रिगेड का एजेंडा नहीं सेट होने वाला है इसलिए न तो उसे मीडिया कवरेज मिल रही है और न ही TMC के खिलाफ कोई आउटरेज देखने को मिल रहा है।

अगर हम हिंसा शुरू होने के दो दिन बाद के समाचार पत्रों को देखे यह स्पष्ट हो जायेगा कि किस तरह बीजेपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ हिंसा को नजरंदाज किया गया। 4 मई को कोलकाता से प्रकाशित अधिकतर मीडिया हाउस ममता बनर्जी के बयानों को ही प्राथमिकता देते दिखाई दिए।

टेलीग्राफ मोदी सरकार के खिलाफ कैसे-कैसे फ्रंटपेज प्रकाशित कर चुका है यह पूछने वाली बात नहीं है लेकिन इस बार TMC द्वारा प्रायोजित हिंसा को केवल अपने फ्रंट पेज पर एक छोटे से बॉक्स में स्थान दिया।

उसमें भी ममता बनर्जी के बयान ही थे न कि मारे गए बीजेपी कार्यकर्ताओं की जानकारी। हिंसा की खबर को विस्तृत रूप से पृष्ठ 6 प्रकाशित किया गया था, जिसमें मुख्य हेडलाइन थी “हिंसा के बाद की शांति के लिए दीदी कॉल।” यह काफी साहसी पत्रकारिता थी क्योंकि उन्हें पता है कि अगर बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या को स्थान दिया जायेगा तो उसमे TMC की आलोचना करनी पड़ेगी जिसके बाद ममता बनर्जी उनसे नाराज हो जाएँगी इसलिए खबर को ही गायब कर दिया।

वहीँ उस दिन भारत के सबसे पुराने अंग्रेजी अखबारों में से एक, स्टेट्समैन ने अपने पहले पन्ने पर हिंसा की सूचना ही नहीं दी थी। हिंसा रोकने के लिए भाजपा प्रमुख दिलीप घोष की अपील पर पेज 3 की एक छोटी रिपोर्ट थी। भाजपा कार्यकर्ताओं पर कथित हमलों का विवरण दिलीप घोष के बयान में ही समेट कर लिख दिया गया था।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया की बात करे तो इस अख़बार के कोलकाता संस्करण ने हिंसा की जानकारी दिए बिना गृह मंत्रालय के बारे में एक संक्षिप्त रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें हिंसा पर एक रिपोर्ट मांगी गई थी। पृष्ठ 2 पर भी हिंसा की कोई कवरेज नहीं थी, वहीं पेज 3 में टीएमसी और भाजपा द्वारा लगाए गए एक दुसरे पर आरोपों की जानकारी देते हुए दो रिपोर्ट थी। इसी तरह से आज भी मीडिया हाउस, पत्रकार और स्तंभकार सभी मिल कर ममता बनर्जी और TMC द्वारा ढाए जा रहे जुल्म को ढकने का हर संभव प्रयास में जुटे हैं।

बता दें कि राष्ट्रीय महिला आयोग के जांच दल ने शुक्रवार को अपने दो दिवसीय बंगाल दौरे के बाद महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा का सिलसिलेवार ढंग से जांच रिपोर्ट में खुलासा किया है। आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में विधानसभा चुनावों के बाद राज्य में महिलाओं के विरुद्ध हो रहे जघन्य अपराधों, दुष्कर्म और हत्या जैसा मामलों की सच्चाई बताई है।

इसके बावजूद किसी मीडिया हाउस ने कवरेज करने की हिम्मत नहीं दिखाई और न ही किसी फेमिनिस्ट ने महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार के खिलाफ कोई लेख लिखा। आखिर वे ऐसा क्यों करेंगे, इससे सेक्युलरिजम खतरे में जो पड़ जायेगा।

वहीँ पिछले कुछ दिनों की खबर देखे तो बीजेपी के अनुसार मालदा के उत्तर लक्ष्मीपुर में टीएमसी के गुंडों ने भाजपा कार्यकर्ता मनोज मंडल (21) और चैतन्य मंडल (19) को मारकर पेड़ पर लटका दिया। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने अपने ट्विटर से जानकारी दी की 26 साल के किशोर मंडी की हत्या कर दी गई थी। किशोर मंडी झाड़ग्राम के बिनपुर विधानसभा क्षेत्र में भाजपा किसान मोर्चा के मंडल सचिव थे। पश्चिम बंगाल में हिंसा का ये आलम है कि भाजपा का समर्थन करने वाले मुस्लिमों को भी नहीं बख्शा जा रहा है।

https://twitter.com/BJP4Bengal/status/1390565513118445571?s=20

‘ABP न्यूज़’ के पत्रकार विकास भदौरिया ने जानकारी दी है कि मेटियाब्रुज मंडल 2 में भाजपा के मंडल उपाध्यक्ष शेर मोहम्मद खान को मारा-पीटा गया। इनमे से कोई भी खबर मेन स्ट्रीम मीडिया के फ्रंट पेज पर नहीं थी।

26-year-old Shri Kishore Mandi, who was the Mandal Secretary of BJP Kisan Morcha at Binpur Assembly (Jhargram), was brutally killed today by the #PoliticalTerrorists of TMC pic.twitter.com/mQzlQyoiSW

— Dilip Ghosh (Modi Ka Parivar) (@DilipGhoshBJP) May 6, 2021

 

https://twitter.com/vikasbha/status/1390339147122941960?s=20

आज के दौर में हत्या और लिंचिंग अब “धर्मनिरपेक्ष” और “सांप्रदायिक” हो चुके है। इसके उलट अगर उत्तर प्रदेश में दादरी के अखलाक की दुर्भाग्यपूर्ण हत्या को मिली ने राष्ट्रीय और अन्तराष्ट्रीय मीडिया कवरेज को देखा जाये तो यह जमीन आसमान का फर्क है। आज भी किसी मुस्लिम की हत्या में राजनीतिक एंगल जोड़ने के लिए अकलाख का नाम जोड़ दिया जाता है।

दादरी लिंचिंग सिर्फ अन्तराष्ट्रीय कवरेज ही नहीं मिली बल्कि अवार्ड्स वापसी गिरोह द्वारा अवार्ड वापस कर बीजेपी को मुस्लिम विरोधी होने की भरपूर कोशिश की गयीl उस दौरान के कुछ रिपोर्ट्स की हैडलाइन हो पढ़ कर ही यह स्पष्ट हो जायेगा किस तरह इस खबर को कवरेज मिली।

BBC की रिपोर्ट ‘Indian man lynched over beef rumours’, या इंडियन एक्सप्रेस की पहले पन्ने पर प्रकाशित रिपोर्ट या फिर ‘Dadri lynching’ and ‘India’s cow vigilantes’ जैसे शब्द इस्तेमाल कर लेख लिखे गए थे।

यही नहीं Aljazeera ने तो यहाँ तक लिख दिया कि, “The lynching that changed India” मानवाधिकार हनन से लेकर कई तरह के आरोप बीजेपी सरकार पर लगाया गया लेकिन अब पश्चिम बंगाल में हो रही हिंसा में न तो किसी को बीजेपी कार्यकर्ताओं के मानवाधिकार याद हैं और न ही जीने के अधिकार का। अगर इसके बावजूद भी आज किसी हिन्दू को यह लगता की यह सुनियोजित तरीके से हिन्दुओं के खिलाफ साजिस नहीं है तो यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा।

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