सनातन धर्म में ब्राह्मण की पूजा करने का विधान है और कई प्रसंगों में ब्राह्मण भोज, पुजा आदि का आयोजन किया जाता है, लेकिन इसका शास्त्रीय कारण क्या है और ऐसा क्यों किया जाता है ये जानने के लिए यह लेख अंत तक पढ़े। शास्त्रो में इन्हे सबसे श्रेष्ठ बतलाया है और उसके द्वारा बताई गयी विधि से ही धर्म, अर्थ, कम, मोक्ष चारों की सिद्धी मानी गयी है। इनका महत्व बतलाते हुए शास्त्र में कहा गया है:
ब्राह्मणोस्य मुखमासीद बाहु राजन्य: क्रतः।
ऊरु तदस्य यद्वैश्य पदाभ्यां शूद्रो अजायत ।। (यजुर्वेद ३१ । ११)
‘श्री भगवान के मुख से ब्राह्मण की, बाहू से क्षत्रिय की, उरु से वैश्य की और चरणों से शुद्र की उत्पति हुई है ।’
‘उत्तम अंग से (अर्थात भगवान के श्री मुख से) उत्पन्न होने तथा सबसे पहले उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से ब्राह्मण इस जगत का धर्म स्वामी होता है । ब्रह्मा ने तप करके हव्य-कव्य पहुँचाने के लिए और सम्पूर्ण जगत की रक्षा के लिए अपने मुख से सबसे पहले इन्हे उत्पन्न किया।’
शास्त्रों में कहा गया है कि ‘जाति की श्रेष्ठता से, उत्पत्ति स्थान की श्रेष्ठता से, वेद के पढ़ने-पढ़ाने आदि नियमों को धारण करने से तथा संस्कार की विशेषता से ये सब वर्णों का प्रभु है।
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इसके अलावा शास्त्रों में कहा गया है कि,
_पृथिव्यां यानी तीर्थानि तानी तीर्थानि सागरे ।_
_सागरे सर्वतीर्थानि पादे विप्रस्य दक्षिणे ।।__चैत्रमाहात्मये तीर्थानि दक्षिणे पादे वेदास्तन्मुखमाश्रिताः ।_
_सर्वांगेष्वाश्रिता देवाः पूजितास्ते तदर्चया ।।_
_अव्यक्त रूपिणो विष्णोः स्वरूपं ब्राह्मणा भुवि ।_
_नावमान्या नो विरोधा कदाचिच्छुभमिच्छता ।।_
अर्थात पृथ्वी में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी समुद्र में मिलते हैं और समुद्र में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी इनके दक्षिण पैर में है । चार वेद उसके मुख में हैं अंग में सभी देवता आश्रय करके रहते हैं इस वास्ते इनको पूजा करने से सब देवों का पूजा होती है । पृथ्वी में ब्राह्मण जो है विष्णु रूप है इसलिए जिसको कल्याण की इच्छा हो वह इनका अपमान तथा द्वेष नहीं करना चाहिए ।*
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देवाधीनाजगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवता: ।_
_ते मन्त्रा: ब्राह्मणाधीना:तस्माद् ब्राह्मण देवता ।_
अर्थात् सारा संसार देवताओं के अधीन है तथा देवता मन्त्रों के अधीन हैं और मन्त्र ब्राह्मण के अधीन हैं इस कारण ये देवता हैं ।
ब्राह्मण (आचार्य, विप्र, द्विज, द्विजोत्तम) यह हिन्दू वर्ण व्यवस्था का एक वर्ण है। यस्क मुनि की निरुक्त के अनुसार, ब्रह्म जानाति ब्राह्मण: अर्थात् ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म (अंतिम सत्य, ईश्वर या परम ज्ञान) को जानता है। अतः ब्राह्मण का अर्थ है “ईश्वर का ज्ञाता”।
ब्राह्मण कौन है?
बता दें कि इस समाज का इतिहास निषाद समाज के इतिहास के बाद भारत के वैदिक धर्म से आरंभ होता है । वास्तव में यह कोई जाति विशेष ना होकर एक वर्ण है, इस वर्ण में सभी जातियों के लोग ब्राह्मण होते थे, सर्वप्रथम निषाद जाति के लोग ब्राह्मण हुए दक्षिण भारत में द्रविड़ ब्राह्मण निषाद वंश को ही कहा जाता है। भारत का मुख्य आधार ही इनसे शुरू होता है ।
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