MK स्टालिन को बतौर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लिए एक महीना भी नहीं बीता है और वे विवादों के घेरे में आ चुके हैं। कोविड के समय भी अपनी सरकार का प्रचार करने के पीछे मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार को जमकर लताड़ लगाई है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने राहत सामग्री वितरण केंद्र पर किसी भी प्रकार के पार्टी प्रतीक चिन्ह पर प्रतिबंध लगाया है।
पर स्टालिन सरकार ने ऐसा भी क्या किया जिसके कारण मद्रास हाईकोर्ट को स्थिति की कमान संभालनी पड़ी? दरअसल MK स्टालिन तमिलनाडु में कोविड से लड़ने हेतु जो काम कर रहे हैं, उसमें भी अपनी सरकार, विशेषकर अपनी पार्टी DMK का प्रचार करने से पीछे नहीं हट रहे। ऐसे में मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की PR रणनीति पर आपत्ति जताते हुए उनकी क्लास भी लगाई।
दरअसल तमिलनाडु की वर्तमान सरकार कोविड राहत सामग्री वितरण केंद्रों पर अपने पार्टी का प्रतीक चिन्ह लगाने से बाज़ नहीं आई है, जिससे स्पष्ट पता चलता है कि कैसे DMK यहाँ भी अपने पार्टी का प्रचार करने से बाज नहीं आ रही है।
ये वही पार्टी है, जिसे काँग्रेस और कुछ विपक्षी पार्टियों की भांति PM मोदी की फोटो वैक्सीन प्रमाण पत्र पर छपने से आपत्ति है, परंतु राहत सामग्री बांटने के दौरान पार्टी का प्रचार करना बेहद आवश्यक है।
इसी बात पर मद्रास हाईकोर्ट ने लताड़ लगाते हुए कहा है कि अब से राहत वितरण केंद्र पर कोई पार्टी चिन्ह नहीं दिखना चाहिए। कोर्ट के अनुसार, “देखिए, सरकार और सरकार का हिस्सा बनने वाले लोगों में अंतर आवश्यक है। जब आप राहत सामग्री का वितरण करते हैं, तो छवि सरकार की होनी चाहिए, पार्टी की नहीं। यदि आप मुख्यमंत्री की छवि दिखाते हो, तो वो उचित है, क्योंकि वे एक चुनी हुई सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं, परंतु यदि आप पार्टी चिन्हों को दिखाएंगे, तो ये उचित नहीं है।”
यहाँ पर मद्रास हाईकोर्ट का रुख स्पष्ट है – महामारी के दौरान राष्ट्रहित या राज्यहित से ऊपर कुछ नहीं होता। एमके स्टालिन और उनके चाटुकारों की जी हुज़ूरी से कोई अपरिचित नहीं है। लेकिन जिस प्रकार से मद्रास हाईकोर्ट ने सरकार की PR रणनीति को लेकर क्लास लगाई है, उससे स्पष्ट पता चलता है कि स्टालिन की राह आगे इतनी आसान नहीं होने वाली।