बार काउंसिल जस्टिस राजेश बिंदल को पद से हटवाना चाहता है
हाल ही में हमने देखा है कि किस प्रकार से बंगाल सरकार और कोलकाता के न्यायपालिका में प्रशासनिक भ्रष्टाचार को लेकर तनातनी रहती है। इसी को लेकर अभी बंगाल बार काउन्सिल ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कोलकाता हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को हटवाने की मांग की है।
जी हाँ, आपने ठीक सुना है। बंगाल बार काउन्सिल के वर्तमान अध्यक्ष अशोक कुमार देब ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एनवी रमन्ना को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने कोलकाता हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल पर पक्षपाती होने का आरोप लगाया है।
पत्र के अंश अनुसार, “जस्टिस राजेश बिंदल एक पक्षपातपूर्ण, अनुचित और पक्षपाती जज हैं जिनका हाईकोर्ट में बने रहना न्याय के निष्पक्ष वितरण में हस्तक्षेप करता है।” यह राज्यपाल और भारतीय जनता पार्टी के प्रति अधिक पक्षधर हैं”।
लेकिन इस पत्र को लिखने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी? दरअसल, कोलकाता हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल ने Narada स्टिंग ऑपरेशन मामले में एक अहम मामले में सीबीआई के विशेष न्यायालय द्वारा सुनाए गए निर्णय के विरुद्ध जाते हुए चार तृणमूल काँग्रेस नेताओं को दी गई जमानत याचिका पर रोक लगा दी थी। इतना ही नहीं, इन चारों को अस्थाई तौर पर हाउस अरेस्ट में भेज दिया गया।
इसके विरुद्ध ममता सरकार ने अनेकों चालें चली। पहले कोर्ट को धमकाने का प्रयास किया गया, बल प्रयोग किया गया। हालांकि, कोलकाता हाईकोर्ट के प्रशासन को कोई अंतर नहीं पड़ा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को देख रहे बंगाली न्यायाधीश अवश्य भयभीत हो गए और बंगाल से जुड़े मामले से खुद को अलग कर लिया।
ममता की एक और नई चाल
लेकिन जब इनसे काम नहीं बना तब TMC ने कोर्ट के जजों को भाजपा का एजेंट बताने का प्रयास किया गया। इसपर कोलकाता हाईकोर्ट बुरी तरह भड़क गया। सुनवाई के दौरान जज कौशिक चंदा ने कहा कि, “आपके वकीलों का भी तो राजनीतिक जुड़ाव है। अभिषेक मनु सिंघवी कांग्रेस से हैं और एसएन मुखर्जी का बीजेपी बैकग्राउंड है। लेकिन यहां तृणमूल प्रमुख का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। अगर अन्य राजनीतिक बैकग्राउंड के वकीलों पर भरोसा किया जा सकता है, तो आप (ममता बनर्जी) जज पर भरोसा क्यों नहीं कर सकती हैं?”
कोलकाता हाईकोर्ट पर दबाव बनाने से इनकी बात नहीं बनी तो अब बंगाल बार काउन्सिल के कंधे पर बंदूक रखकर ममता सरकार अपनी कसर निकालने का प्रयास कर रही है, ताकि कैसे भी करके बंगाल पर उनका एकछत्र राज कायम रहे। बंगाल बार काउन्सिल के अध्यक्ष अशोक कुमार देब स्वयं तृणमूल काँग्रेस के विधायक हैं, इसीलिए ममता सरकार की भूमिका और अहम हो जाती है।
लेकिन ममता सरकार एक घोटाले को लेकर इतनी असहज क्यों है? कहने को तृणमूल कांग्रेस ने लगातार तीसरी बार सत्ता पर कब्जा जमाया है। 212 सीटें भी इस पार्टी को विधानसभा चुनाव में प्राप्त हुई है। परंतु इस बार अंतर यह है कि ममता बनर्जी स्वयं अपने ही सीट नंदीग्राम से चुनाव हार गईं।
इसके अलावा चुनाव के पश्चात तृणमूल के गुंडों ने जिस प्रकार से उत्पात मचाया है, उसपर कोलकाता हाईकोर्ट से लेकर मानवाधिकार आयोग तक का रुख बेहद सख्त है। ऐसे में ममता सरकार बिल्कुल नहीं चाहती कि उसकी पोल खुले, इसीलिए वह कोलकाता हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल को किसी भी भांति अपने रास्ते से हटवाना चाहती हैं। ये बेहद शर्मनाक है कि ममता बनर्जी अपने फायदे के लिए न्यायपालिका पर हमला कर रही हैं।