डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जीवनी
भारतीय जनसंघ के संस्थापक और इसके पहले अध्यक्ष डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी की आज 120वीं जयंती है। वे न सिर्फ एक महान नेतृत्वकर्ता थे बल्कि एक ऐसे राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने कई मील के पत्थर स्थापित किए। डॉक्टर मुखर्जी ही थे जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में लागू अनुच्छेद 370 के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत की थी तथा कांग्रेस के खिलाफ जनाधार को एक दिशा देने की नींव रखी।
6 जुलाई, 1901 को बंगाल के कलकत्ता में जन्मे श्यामाप्रसाद मुखर्जी, स्नातकोत्तर की पढ़ाई के बाद इंग्लैंड से वकालत करने चले गए। एक शिक्षाविद् तथा एक वकील के रूप में अपने आप को कलकत्ता में प्रतिष्ठित करने वाले डॉक्टर मुखर्जी ने कांग्रेस से अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया लेकिन मतभेद होने के बाद उन्होंने हिंदू महासभा की सदस्यता ले ली। कहा जाता है कि गांधीजी के कहने पर स्वतंत्र भारत के पहले मंत्रिमंडल में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें मंत्री बनाया था।
डॉ॰ श्यामाप्रसाद मुखर्जी दूसरे राजनेताओं से काफी अलग थे, उनकी खास बात यह थी कि वे समस्याओं को अनदेखा नहीं करते थे, बल्कि उसकी तह तक जाते थे और संघर्ष करने से पीछे नहीं हटते थे।
33 वर्ष की उम्र में कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति बनने का रिकॉर्ड बनाने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने कार्यकाल में मातृ भाषा पर जोर दिया। उन्होंने बांग्ला भाषा को मैट्रिक तक अनिवार्य कर दिया था। यही नहीं अंग्रेजो के भारी विरोध के बावजूद वो कलकत्ता विश्वविद्यालय का दीक्षांत समारोह बांग्ला भाषा में करवाते थे, जिसमें रवीन्द्रनाथ टैगोर मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाए गए थे।
डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी का हिन्दू महासभा से जुड़ने का कारण क्या था?
‘डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी: एक संक्षिप्त जीवनी’ किताब की मानें तो डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी को राजनीति में प्रवेश करवाने में निर्मल चंद्र चटर्जी (पूर्व लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी के पिता) आशुतोष लहीरी, न्यायधीश मन्मथ नाथ मुखर्जी का बेहद महत्वपूर्ण योगदान था। 1929 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी पहली बार कांग्रेस सदस्य के रूप में बंगाल विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए लेकिन अगले ही साल कांग्रेस से असहमति होने पर स्वतंत्र चुनाव लड़ने का फैसला किया और चुनाव जीते।
1939 में जब तत्कालीन अखिल भारतीय हिंदू महासभा के नेता विनायक दामोदर सावरकर अपने बंगाल प्रवास पर आए तब डॉक्टर मुखर्जी ने उनसे भेंट की। इसी दौरान उन्होंने हिंदू महासभा की सदस्यता ग्रहण कर ली।
पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के मंत्रिमंडल में केंद्रीय शिक्षा मंत्री रहे प्रताप चंद्र चुंदर ने श्यामाप्रसाद मुखर्जी के बारे में कहा था ‘‘डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी के हिंदू महासभा से जुड़ने का मुख्य कारण यह था कि मुस्लिम लीग हर जगह मुसलमानों के अधिकारों की बात करती थी और पक्ष लेती थी और वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस हिंदुओं की बात आने पर मौन रहती थी। इसलिए वे हिंदू महासभा से जुड़े ताकि वे हिंदुओं का पक्ष ले सकें।’’
वर्ष 1943 में बंगाल पर सबसे बड़ी आपदा आई। पहले सूखा और फिर अकाल पड़ा। इस दौरान डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने अपना ज्यादातर वक्त लोगों की मदद में बिताया।
श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ‘भारत छोड़ों’ मुहिम बहिष्कार किया था। उनका मानना था कि इस कार्यक्रम से लोकप्रिय भावनाओं को भड़का कर देश की सांस्कृतिक अखंडता को खतरे में डाला जा सकता है।
1951 डॉ. मुखर्जी द्वारा भारतीय जनसंघ की स्थापना
देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने मुखर्जी को अंतरिम सरकार में उद्योग एवं आपूर्ति मंत्री के रूप में शामिल किया था। पंडित नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली के बीच हुए एक समझौते से श्यामाप्रसाद मुखर्जी इतने नाराज हुए कि उन्होंने नेहरू मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया।
श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर में आर्टिकल 370 के खिलाफ एक लंबी लड़ाई लड़ी थी। अनुच्छेद 370 को जब संविधान सभा में रखा गया उस वक्त पंडित नेहरू अमेरिका में थे। नेहरू ने इस मसौदे पर पहले ही अपनी सहमति दे दी थी। डॉ. मुखर्जी ने आर्टिकल 370 का जोरदार विरोध किया. उन्होंने अपनी निजी सचिव वी शंकर से कहा था कि ‘जवाहर लाल रोएगा’।
और पढ़े: जब तक फडणवीस महाराष्ट्र में हैं, तब तक भाजपा-शिवसेना का गठबंधन असंभव है
21 अक्टूबर, 1951 को डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने आरएसएस के द्वितीय सरसंघचालक एमएस गोलवलकर के सानिध्य में भारतीय जनसंघ की स्थापना की। यही भारतीय जनसंघ आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी बना। जनसंघ की स्थापना के साथ ही कांग्रेस के ख़िलाफ़ एक जनाधार को तैयार करने की नींव रखी गई।
भारतीय जनसंघ के पहले अध्यक्ष बनने के बाद वर्ष 1952 के चुनावों में उन्होंने पार्टी को चुनाव में उतारा। सभी को चौंकाते हुए भारतीय जनसंघ ने मुखर्जी समेत भारत की संसद में तीन सीटें जीतीं। तीन सीटों से आज बीजेपी सबसे ज्यादा सीटों के साथ भारत की संसद में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सरकार चला रही है।
श्यामाप्रसाद मुखर्जी की संदिग्ध मृत्यु
1950 के दौर में जम्मू एवं कश्मीर राज्य में प्रवेश करने के लिए भारतीयों को एक परमिट लेना पड़ता था। यह जम्मू कश्मीर को दिए गए कई विशेषाधिकारों में से एक था, जिसके खिलाफ श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी आवाज़ बुलंद की। इसी दौरान श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने नारा दिया, ‘एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे।‘
परमिट सिस्टम के विरोध में डॉ श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर यात्रा की घोषणा की। श्यामा प्रसाद मुखर्जी कश्मीर यात्रा पर गए और उन्हें 11 मई 1953 को कश्मीर के लखेनपुर में अवैध तरह से प्रवेश करने के अपराध में हिरासत में लिया गया। 23 जून 1953 को संदिग्ध परिस्थितियों में उनकी मौत हो गई।
श्यामाप्रसाद मुखर्जी की मौत के बाद जवाहर लाल नेहरू और शेख अब्दुल्लाह पर सवाल उठे। कई लोगों ने कहा कि एक साज़िश के तहत श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हत्या की गई है। दरअसल, देश के कई नेताओं के लाख अनुरोध करने के बावजूद श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पार्थिव शरीर का पोस्टमोर्टम नहीं कराया गया।
मृत्यु के बाद कोई भी जांच कमेटी नहीं बनाई गई। हालांकि, श्यामाप्रसाद मुखर्जी के तीखे विरोध और उनकी मौत के बाद उठे आंदोलन से सरकार की चूलें हिल गईं। सरकार ने उसी साल विवादित परमिट सिस्टम को हटा लिया। डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी की जयंती पर TFI का उन्हें नमन।