हाल ही में केंद्र सरकार ने एक अहम निर्णय में मोपला के दंगाइयों को स्वतंत्रता सेनानियों की सूची से सदैव के लिए हटा दिया है। केंद्र सरकार ने हाल ही में हुतात्माओं की सूची के पांचवें वॉल्यूम की तीन सदस्यीय समिति द्वारा समीक्षा की थी।
इसमें इंडियन काउंसिल फॉर हिस्टॉरिकल रिसर्च (ICHR)’ ने मोपला नरसंहार के दोषियों के नाम हटाने की सिफारिश की थी। समिति के अनुसार, ‘मालाबार विद्रोह’ कभी अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध था ही नहीं, बल्कि ये एक कट्टरवादी आंदोलन था जिसका मुख्य उद्देश्य इस्लामी धर्मांतरण था।
सरकार के मोपला नरसंहार के दोषियों के नाम हटाने के इस क्रांतिकारी निर्णय के बाद वामपंथी तिलमिला गए हैं। वामपंथी मीडिया पोर्टल द वायर ने आदतनुसार इसके में आर्टिकल निकाला है तो वहीं कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इसे भगवाकरण सिद्ध किया है। जी हाँ, भारत के वास्तविक वीरों को जनता के समक्ष लाना और दंगाईयों को उस श्रेणी से अलग करना अथवा वास्तविक इतिहास से जनता को परिचित कराना शशि थरूर जैसों के लिए भगवाकरण है।
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शशि थरूर के ट्वीट के अनुसार, “इतिहास का ध्रुवीकरण करना एक गलत अभियान है, जिसका उपयोग राजनीतिक हित साधने के लिए किया जाता है, परंतु बीते हुए कल को पुनः लिखना ताकि लोगों में धर्मांधता की दीवारें स्थापित की जा सकें, अशोभनीय है। विशेषकर उन लोगों में जो युगों-युगों से एक साथ रह रहे हैं। ICHR को शर्म आनी चाहिए।”
Communalising history is a deplorable project pursued narrow political ends, but rewriting the past to introduce communal divisions is to create false memories in a people who have been living in amity for generations: https://t.co/UCi6OqlYP0@ichr_1972 shd be ashamed of itself.
— Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) August 23, 2021
इस ट्वीट में शशि थरूर ने द वायर का लेख भी शेयर किया है, जिसने इस निर्णय का स्वभाव के अनुसार विरोध किया। यहाँ शशि थरूर की जलन स्पष्ट दिखाई दे रही है, क्योंकि वे इस बात को अभी भी नहीं पचा पा रहे हैं कि अब मोपला दंगे के हत्यारों का पहले की भांति महिमामंडन नहीं किया जाएगा।
इसका एक अर्थ और भी है– अब पहले की भांति शशि थरूर जैसे वामपंथियों को मोपला दंगों जैसी घटनाओं को अपने हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने और उसे एक ‘कृषि विरोध’ के रूप में चित्रित करने को भी नहीं मिलेगा।
आखिर अपने आकाओं को खुश करने के लिए कितनों को ‘ध्रुवीकरण से ग्रसित’ बताते फिरेंगे ये वामपंथी? अपनी विचारधारा के पीछे ये इतने अंधे हो चुके हैं कि वो दिन दूर नहीं जब अगर कहीं बारिश भी होगी तो उसके लिए भी ये लोग बीजेपी और संघ को दोषी ठहरा देंगे।
यह प्रथम अवसर नहीं है। इससे पहले भी जब भी सरकार, किसी संस्था या फिर किसी व्यक्ति ने भारतीय इतिहास को सही दिशा देने की कोशिश की है, तब-तब वामपंथियों ने उसे भगवाकरण बताते हुए उसका उपहास उड़ाया और उसे कुचलने का प्रयास किया।
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कुछ ही महीने पहले नई शिक्षा नीति के अनुसार यूजीसी ने भारतीय इतिहास के पाठ्यक्रम में व्यापक बदलाव किए हैं। जिसके पीछे वामपंथियों ने बहुत बवाल मचाया। टीएफआई पोस्ट के ही विश्लेषणात्मक अध्ययन के अंश अनुसार,
“दरअसल, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने फरवरी और मार्च के बीच कई स्टेकहोल्डर से सुझाव प्राप्त करने के बाद Learning Outcome-based Curriculum Framework (LOCF) के तहत स्नातक इतिहास पाठ्यक्रम को संशोधित किया है।
हालांकि इस अंडरग्रेजुएट कोर्स के सिलेबस के सामने आने के बाद कई लोग हंगामा भी खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। इस सिलेबस में वैदिक साहित्य पर अधिक ध्यान दिया गया है और मुगलकालीन इतिहास को कम किया गया है, जोकि बहुत पहले हो जाना चाहिए था। मुगलकालीन इतिहास के बजाय भारतीय साम्राज्य जैसे विजयनगर को अधिक महत्व दिया गया है”।
सरकार को छोड़िए, अगर सिनेमा के माध्यम से ही वास्तविक इतिहास चित्रित करने का प्रयास किया जाता है, तो वामपंथी कैसे हाथ धोखे पीछे पड़ते हैं, ये आप ‘शेरशाह ‘ के उदाहरण से ही देख लीजिए।
कहने को ये धर्मा प्रोडक्शन की फिल्म थी, परंतु इसने आश्चर्यजनक रूप से कारगिल युद्ध एवं तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों का सटीक चित्रण किया, जिसके पीछे वामपंथियों ने अपने प्रिय करण जौहर की फिल्म तक को नहीं छोड़ा।
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अगर कोई वामपंथी कहे की सूर्योदय पश्चिम दिशा से होता है, और मैं सत्य बताते हुए कहूं कि सूर्योदय पूर्व से होता है, तो क्या वो भगवाकरण हो गया? यदि हमने औरंगजेब का महिमामंडन नहीं करके छत्रपति शिवाजी, लाचित बोरफुकान जैसे वीरों की स्तुति की तो क्या वो इतिहास का भगवाकरण हो गया? सत्य को स्वीकारना सबके बस की बात नहीं जो शशि थरूर के कुंठा भरे ट्वीट से स्पष्ट दिखता है।