अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो चुका है और अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सभी सैनिको को निकाल लिया है। एक तरह से इसे अमेरिका की हार की तरह देखा जा रहा है और सवाल उठ रहे हैं कि क्या संयुक्त राज्य अमेरिका पिछले 20 वर्षों से अफगानिस्तान में दिशाहीन युद्ध लड़ रहा था? या सिर्फ अलकायदा को खत्म करना ही ‘वॉर ऑन टेरर’ का लक्ष्य था? वैश्विक पटल पर इस समय एक ही बात चल रही है। वो यह बात है कि अमेरिका का वॉर ऑन टेरर अगर खत्म हो गया है तो पाकिस्तान में पनपने वाले आतंकवाद का क्या होगा? यह फिलहाल किसी को नहीं पता है। जो बाइडन बाहर आकर भी अफ़ग़ानिस्तान की पूर्व सरकार को दोषी ठहरा रहे थे कि अशरफ गनी तालिबानियों से लड़े तक नहीं। अमेरिका बार-बार तालिबान से लड़ता रहा और उसे हराने में विफल रहा है, ऐसा इसलिए है क्योंकि अमेरिका वास्तव में कभी नहीं समझ पाया कि इस क्षेत्र में उसका वास्तविक शत्रु कौन है।
ऐसे समय मे लोग ट्रम्प और बाइडन की दूरदर्शिता पर सवाल कर रहे हैं। ट्रम्प और बाइडन में सबसे बड़ा अंतर यह है कि ट्रम्प सीधे बड़े दुश्मन को नाम लेकर बुलाते थे और वो तालिबान से भी बड़ा दुश्मन और बड़ी समस्या पाकिस्तान को कहते थे। वह जानते थे कि पाकिस्तान में अमेरिका के खिलाफ कैसी भावनाएं है। वो तो ट्रम्प का कठोर रवैया था जिससे यह पाकिस्तान भी रोता था। पाकिस्तान की नफरत को खुले तौर पर प्रदर्शित नहीं करने का एकमात्र कारण यह है कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने अतीत में पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित किया है, वह बार बार ट्रम्प के आर्थिक पाबंदियों से डरता था। दूसरा कारण यह भी है कि डोनाल्ड ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका भारत का मित्र था, और वह जानता था कि दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा पाकिस्तान था।
डोनाल्ड ट्रम्प पाकिस्तान और उसके आतंकी-वित्त पोषण वाले सैन्य संगठनों को अकसर निशाने पर लिया करते थे, परंतु जो बाइडन ‘पाकिस्तान’ शब्द का उल्लेख करने की हिम्मत भी नहीं कर पा रहे है। शायद उन्हें डर है कि सैन्य-औद्योगिक उद्योगपति उनके खिलाफ आवाज उठाने लगेंगे। वहीं, ट्रम्प आतंकवाद हो या पाकिस्तान की नापाक हरकत या चीन की दादागिरी सभी को आड़े हाथों लेते थे।
ट्रंप की प्राथमिकताएं सीधी और स्पष्ट थी। उनके लिए अमेरिका और अमेरिकी हित पहले था। यही कारण है कि पाकिस्तान को मिलने वाली सैन्य फंडिंग ही उन्होंने रोक दी थी।। ट्रम्प काल के दौरान अमेरिका कई बार पाकिस्तान को आतंकवाद पोषित करने के लिए फटकार लगा चुका है। पाकिस्तान में मौजूद अमेरिकी राजदूत विलियम टॉड ने 2018 में कहा था, “क्षेत्रीय तनाव को वास्तव में कम करने के लिए और संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक मजबूत संबंध बनाने के लिए, पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ निरंतर और अपरिवर्तनीय कार्रवाई करनी होगी।” टॉड ने अपने बयान में यह भी कहा था, “पाकिस्तान खुद आतंकवादियों के हाथों बुरी तरह नुकसान झेला है और उसे अब यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आतंकवादी पाकिस्तानी क्षेत्र का इस्तेमाल न करें।”
2020 में पाकिस्तान एक बार फिर मुंह फुलाकर बैठ गया था जब यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के रिपोर्ट में पाकिस्तान को आतंकवाद के लिए सुरक्षित जगह बताया था। अमेरिकी राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद से ही डोनाल्ड ट्रम्प ने आतंकवाद सम्बंधित गतिविधियों के लिए पाकिस्तान के समर्थन के खिलाफ एक अक्षम्य रुख अपनाया था। उपाय के तौर पर पाकिस्तान की सेना को दिए जाने वाले वित्तीय सहायता को रोक दिया गया और इसी रिपोर्ट में यह भी बात भी कही गयी की पाकिस्तान अफ़ग़ानिस्तान में शांति के लिए जो वादा किया था, वो काम नही कर रहा है।
2019 में ट्रम्प ने सार्वजनिक रूप से पाकिस्तान का नाम लेकर उसे दोषी ठहराया था। एक वो समय था जब 1.3 बिलियन डॉलर की सैन्य मदद को ट्रम्प द्वारा रोक दिया गया था। उसके बाद अपने पहले व्यक्तव्य में ट्रंप ने कहा था, ‘हम पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध बनाना चाहते हैं, लेकिन वे दुश्मन को जमीन देते है। वे दुश्मन की देखभाल करते हैं। हम ऐसा इस परिस्थिति में नहीं कर सकते है।’ ट्रम्प ने आगे कहा थआ, “इसलिए, मैं पाकिस्तान में नए नेतृत्व के साथ बैठक के लिए जाऊंगा, लेकिन मैंने 1.3 बिलियन अमरीकी डालर का भुगतान रोक दिया है। मुझे लगता है कि यह पानी था जो पाकिस्तान को पिला रहे थे, इसलिए, मैंने इसे समाप्त कर दिया।”
जो बाइडन को अपने चश्में का नम्बर बदलना चाहिए। शायद वो दूर तक नहीं देख पा रहे है। उदारवादी सरकार का मतलब यह नहीं होता कि आप आँख बंद करके कुछ भी विश्वास करते रहे। पाकिस्तान वैश्विक शांति के लिए बड़ी चुनौती है। भले ही जो बाइडन यूटोपिया में जी रहे हैं लेकिन उन्हें कोशिश करनी चाहिए कि कभी कभार वो ट्रम्प से मिलकर उनके नीतियों से कुछ सीखें।