भारत सरकार डेटा प्राइवेसी को लेकर कितनी अधिक संवेदनशील है, इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है, कि अमेरिकी बिग टेक सोशल मीडिया कंपनियां भारत के आगे झुक गईं हैं। इसके विपरीत प्लास्टिक मनी अर्थात डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड की सर्विसेज़ प्रदान करने वाली अमेरिकी टेक कंपनी मास्टर कार्ड भी भारत सरकार के नियमों की अवहेलना करने में जुटी हुई है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पहले ही मास्टर कार्ड की सर्विसेज वाले कार्ड जारी करने पर बैन लगा चुका है। ऐसे में मास्टर कार्ड की मुसीबतें तो बढ़ ही सकती हैं, क्योंकि उसके हाथ से भारत जैसा एक बड़ा वैश्विक मार्केट निकल सकत है, वहीं भारत सरकर का मास्टर कार्ड पर ये बैन भारतीय रुपे कार्ड के विस्तार के दरवाजे भी खोल सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने 22 जुलाई से मास्टर कार्ड द्वारा डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड जारी करने पर बैन लगा दी है। हालांकि, मौजूदा उपभोक्ताओं को इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है। RBI का कहना है कि मास्टकार्ड भारतीय नियमों का पालन नहीं कर रहा है। पेमेंट सिस्टम एवं स्टोरेज को लेकर RBI का कहना है कि मास्टर कार्ड ग्राहकों का डेटा लोकल न रखते हुए भारत से बाहर ले जाता है, जिसके चलते मास्टर कार्ड पर पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम एक्ट, 2007 की धारा 17 अंतर्गत कार्रवाई की गई है।
भारत में इस वक्त प्लास्टिक मनी की सर्विसेज़ देने वाली चार कंपनियां हैं, जिनमें मास्टर कार्ड, मास्ट्रो, वीजा और रुपे हैं। खास बात ये है कि रुपे को छोड़ सभी विदेशी ब्रांड हैं, एवं अब वीजा को छोड़कर कोई भी कंपनी भारत सरकार एवं आरबीआई के नियमों का शब्दशः पालन नहीं कर रही हैं। 22 जुलाई से अब तक लगभग डेढ़ महीने हो चुके हैं, किन्तु इस मामले में मास्टर कार्ड की ओर से अभी नियमों की स्वीकृति को लेकर कोई पक्ष सामने नहीं आया है, लेकिन ये तय है कि उसे भारत सरकार के नियमों का पालन करना ही पड़ेगा, वरना उसकी भारत से विदाई तय हो जाएगी।
वहीं इस मामले में बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा बताते हैं कि भारत सरकार डेटा के नियमों को कड़ा कर स्वदेशी कंपनियों का बढ़ावा देने की नीति पर काम कर रही हैं। ऐसे में संभव हैं कि विदेशी ब्रांडों पर नियमों के पालन न करने के कारण कार्रवाई हो। वहीं बलिगा का ये भी कहना है कि यदि मास्टर कार्ड को भारत में व्यापार करना है तो उसे भारतीय नियमों को मानना ही पड़ेगा, क्योंकि मास्टर कार्ड के भारत में बड़े व्यापारिक प्लान्स पहले ही निर्धारित हैं।
वहीं इस मामले में मास्टर कार्ड ने भी जो बयान जारी किया है, उसमें भारत सरकार के नियमों को मानने के संकेत दिए हैं। कंपनी ने बयान दिया, “हम जिन बाजारों में काम करते हैं, वहां हम अपने कानूनी और नियामक दायित्वों के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध हैं। हालांकि हम 14 जुलाई को अपने संचार में आरबीआई द्वारा उठाए गए रुख से निराश हैं, हम उनकी चिंताओं को हल करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त विवरण प्रदान करने के लिए उनके साथ काम करना जारी रखेंगे।”
महत्वपूर्ण बात ये है कि साल 2019 में ही मास्टर कार्ड ने अगले पांच वर्षों के लिए करीब 1 बिलियन अमेरिकी डॉलर्स के निवेश की घोषणा की थी, जो दिखाता है कि भारतीय मार्केट में इस अमेरिकी कंपनी की कितनी अधिक दिलचस्पी है। इसके विपरीत मार्केट शेयर की बात करें तो अमेरिकी कंपनी वीजा का प्लास्टिक मनी के मामले मे सबसे अधिक शेयर 40 प्रतिशत के करीब का है। वहीं मास्टर कार्ड की हिस्सेदारी 30 प्रतिशत तक की ही है। ऐसे में यदि मास्टर कार्ड को भारत से बाहर खदेड़ा गया तो उसे एक बड़ा व्यापारिक घाटा होगा, इसीलिए अर्थशास्त्री मानते हैं कि मास्टर कार्ड देर से ही सही भारत सरकार एवं आरबीआई के सभी नियम मान लेगा।
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वहीं जब तक मास्टर कार्ड बैन रहता है, तब तक भारतीय स्वदेशी प्लास्टिक मनी की कंपनी रुपे को इसका बड़ा फायदा हो सकता है। रुपे कार्ड स्वदेशी होने के कारण भारतीय बैंकों पर पड़ने वाला आर्थिक दबाव भी कम होगा। वहीं भारत सरकार ने जिस तरह से अमेरिकी बिग टेक कंपनियों को भारतीय आईटी नियमों को मानने के लिए बाध्य कर दिया था, वो इस बात का प्रमाण है कि भारत सरकार किसी भी विदेशी कंपनी को निजता के मामले में बख्शने वाली नहीं हैं। यही कारण है कि ये माना जा रहा है कि RBI बनाम MasterCard की नियमों की इस जंग मे विजय RBI की ही होगी।