राज्य के सबसे दिग्गज नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को सीएम पद से इस्तीफे देने के लिए मजबूर करने के बाद पंजाब में कांग्रेस ने चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाया है, जिनके साथ दो डिप्टी सीएम ने भी शपथ ले ली है। चन्नी को सीएम बनाने का एकमात्र उद्देश्य पंजाब के सबसे बड़े दलित वोट बैंक पर कब्जा करना है। संभवतः यही कारण है कि चन्नी की दलित पहचान को बारंबार याद दिलाया जा रहा है। चन्नी भले ही पंजाब कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के करीबी हों, किन्तु वो सिद्धू के रिमोट कंट्रोल से चलने वाले सीएम साबित हो सकते हैं, क्योंकि सिद्धू को चाहते हुए भी कांग्रेस ने अभी सीएम नहीं बनाया है। इसकी वजह एक तो कैप्टन का संभावित आक्रोश है, तो दूसरी ओर कांग्रेस के मन में दलित वोट का लालच भी है।
कांग्रेस में नहीं मिली है दलितों को तवज्जो
कांग्रेस के राजनीतिक इतिहास को देखें तो ये आसानी से कहा जा सकता है कि पार्टी में दलितों को कभी ज्यादा तवज्जो मिली ही नहीं। यहीं कारण है कि कांग्रेस को दलितों के लिए किए हुए एक सत्कर्म को भी पोस्टर बैनर एवं विज्ञापनों के माध्यम से प्रचारित करना पड़ता है। खबरों की माने तो चरणजीत सिंह चन्नी जिनके दलित होने का प्रचार किया जा रहा है, वे स्वयं कांग्रेस सरकार को लताड़ लगा चुके हैं।
चन्नी ने ही कांग्रेस सरकार की दलित विरोधी नीतियों के विरुद्ध मुखरता से आवाज उठाई थी। पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनने के एक साल बाद ही चन्नी समेत कांग्रेस के दलित एवं बैकवर्ड क्लास के विधायकों ने सरकार पर पक्षपात करने का आरोप मढ़ा था।
किसानों की कर्ज माफी में भी कांग्रेस ने अपना पक्षपाती रवैया दिखाया था। ख़बरें बताती हैं कि कांग्रेस सरकार ने 9,500 करोड़ रुपए की कर्ज माफी में केवल 1,100 करोड़ रुपए दलितों के कर्ज माफ किए थे। इन सभी मामलों को देखते हुए पार्टी के भीतर विधायकों ने ही विद्रोह किया था। इसके अलावा अन्य राज्यों में भी कांग्रेस दलितों को किनारे करने की नीति सदैव ही अपनाती रही है। मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर पी. रच्चैया कभी भी कर्नाटक के सीएम इसीलिए नहीं बन सके, क्योंकि कांग्रेस ने वहां दलितों को तवज्जो नहीं दी।
कई नेता कांग्रेस पर पक्षपात का आरोप लगा चुके हैं
इसके विपरीत कांग्रेस नेता और कर्नाटक के पूर्व डिप्टी सीएम जी परमेश्वर स्वयं खुले मंच से पहले ही कह चुके हैं, कि उन्हें कांग्रेस ने सीएम पद तक केवल इसलिए नहीं पहुंचने दिया, क्योंकि वो दलित समुदाय से आते हैं। ऐसे में पार्टी में दलितों को पीछे रखने को लेकर कांग्रेस की समय-समय पर खूब फजीहत हुई है। सबसे महत्वपूर्ण बात ये भी है कि कांग्रेस ने आज़ादी के बाद संविधान निर्माता के तौर पर डॉ बी आर अंबेडकर का विरोध किया था, जिसके बाद उन्हें संविधान सभा में केवल इसलिए शामिल किया गया, क्योंकि महात्मा गांधी उनकी प्रतिभा को तरजीह देते हुए दलित तुष्टीकरण की नीति पर डालने का प्रयास कर रहे थे।
और पढ़ें- पंजाब कांग्रेस में आज जो हो रहा है, उसके बारे में पीएम मोदी ने 2018 में ही संकेत दिया था
इंदिरा गांधी ने अपनी कैबिनेट में मंत्री रहे जगजीवन राम का किस तरह अपमान किया था, ये जगजाहिर है। कुछ इसी तरह कांग्रेस के पूर्व गैर-गांधी राष्ट्रीय अध्यक्ष सीताराम केसरी को भी कांग्रेस दफ्तर से अपमानित करके निकाला गया था। कांग्रेस के मजबूत दौर में साल 2007 में जब राष्ट्रपति पद के चुनाव की बात आई तो कांग्रेस ने पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल को उम्मीदवार चुना।
जब कमजोर होती है कांग्रेस तब खेलती है दलित कार्ड
इसी तरह सत्ता में होने पर कांग्रेस ने 2012 में राष्ट्रपति पद के लिए प्रणब मुखर्जी को चुना। इसके विपरीत जब 2017 में कांग्रेस को पता था कि उसकी जीत नामुमकिन है, तो पार्टी ने पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और जगजीवन राम की बेटी मीरा कुमार को चुना। इससे स्पष्ट होता है कि कांग्रेस जब सबसे कमजोर या हार की स्थिति में पहुंच जाती है, तो वो दलितों का कार्ड खेलती है। ऐसे में यदि दलित चेहरे पर पार्टी की जीत होती है तो कुछ वक्त बाद कांग्रेस उनकी सत्ता छीन लेती है।
ऐसे में ये माना जा रहा है कि कांग्रेस ने सिद्धू के रिमोट कंट्रोल से चलने वाले चन्नी को केवल दलित वोटों के लिए मुख्यमंत्री बनाया है। कई राजनीतिक पार्टियों की ओर से भी इस तरह के बयान दिए जा चुके हैं। वहीं सीएम बनने की सिद्धू की आतुरता के चलते ये माना जा रहा है, कि कांग्रेस और सिद्धू जल्द ही एक बार फिर अपने इतिहास के मुताबिक चन्नी को अपमानित कर उनसे सीएम का पद छीन लेंगे।