पिछले वर्ष प्रदर्शित हुए सुप्रसिद्ध वेब सीरीज ‘स्कैम 1992’ में एक बहुत ही उचित संवाद कहा गया था, ‘जब किसी का काम नहीं खराब कर सकते तो उसका नाम खराब करो’। कुछ ऐसा ही आजकल भारतीय विज्ञान संस्थान के परिप्रेक्ष्य में देखने को मिल रहा है। विश्व में भारतीय शिक्षा की गुणवत्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले चंद उच्च शैक्षणिक संस्थानों में सम्मिलित इस संस्थान का नाम खराब करने के लिए एक सुनियोजित षड्यन्त्र रचा जा रहा है, ताकि किसी भी स्थिति में IISc वैश्विक स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व न कर सके।
दो विद्यार्थियों की आत्महत्या को जानबूझकर IISc के वर्क कल्चर से जोड़ा जा रहा –
असल में हाल ही में बेंगलुरू में स्थित IISc में दो विद्यार्थियों के आत्महत्या करने की खबर सामने आई है। ये दोनों दुखद घटनाएँ सितंबर माह में हुई। प्रारम्भिक सूत्रों के अनुसार दोनों विद्यार्थियों द्वारा इस भीषण कदम के उठाए जाने के पीछे प्रमुख कारण अवसाद, टेंशन एवं कोविड के कारण बढ़ती चिंताएँ है।
तो इसका IISc की प्रतिष्ठा से क्या लेना देना? असल में कुछ मीडिया संस्थानों की माने तो यह इसलिए हुआ है क्योंकि IISc में ऐसा ही वातावरण है, यानि IISc में विद्यार्थियों के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ ही नहीं है। एक प्रमुख प्रकाशन ने एक अज्ञात विद्यार्थी के बयान के आधार पर ये दिखाने का प्रयास किया है कि कैसे IISc के ‘दम घोंटू वातावरण’ के कारण विद्यार्थी आत्महत्या जैसे घातक कदम उठाने को विवश है।
परंतु घटना की जांच कर रहे स्थानीय पुलिस अफसरों ने ऐसे किसी भी एंगल से इनकार किया है। उनके अनुसार दोस्तों से बातचीत के बाद पता चला है की दोनों विद्यार्थियों के इस घातक कदम के पीछे निजी कारण थे। कई मामलों में तो कुछ मृतक यह भी कहते हैं कि उनके निर्णयों के लिए संस्थानों को दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए।
आखिर क्यों IISc का नाम बदनाम करना चाहते हैं?
परंतु प्रश्न तो अब भी उठता है – आखिर क्यों इस संस्थान का नाम खराब करने पर लगे हैं सब? इसी माह केन्द्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने NIRF 2021 यानि राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट रैंकिंग फ्रेमवर्क 2021 रिलीज़ किया, जिसमें अनुसंधान की दृष्टि से IISc को सर्वोच्च स्थान प्रदान किया गया, और आईआईटी बॉम्बे एवं आईआईटी चेन्नई तीसरे स्थान पर रहे।
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IISc के संस्थापक स्वयं नोबेल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक, चंद्रशेखर वेंकट रमन हैं, और इसकी गुणवत्ता पर बहुत ही कम लोगों को संदेह है। अनुसंधान के परिप्रेक्ष्य में ये प्रिंसटन, हावर्ड, ग्वांग्जू जैसे शीर्ष विश्वविद्यालयों को भी पीछे छोड़ दे रहा था।
इससे पहले TFI ने भी इनपर रिपोर्ट की थी, जिसमें 2022 के Times Higher Education World University Rankings 2022 में 63 के मुकाबले 71 भारतीय संस्थानों ने जगह बनाई। हालांकि कोई भी शीर्ष 300 में जगह नहीं बना पाया, परंतु 301 से 350 वें स्थान की श्रेणी में IISc का नाम अवश्य आया।
अपने ही पैमानों पर न खरा उतर पाना है एक कारण
वर्तमान परिप्रेक्ष्य में विद्यार्थी हो या कोई भी मनुष्य, किसी के भी मानसिक स्वास्थ्य को अनदेखा करना श्रेयस्कर नहीं है। लेकिन जो IISc, आईआईटी इत्यादि में अपना नामांकन करा रहे हैं, उन्हे मानसिक रूप से भी स्वस्थ होना चाहिए। ऐसे कई अवसर आते हैं जब व्यक्ति असहाय महसूस करता है और आवेश में आकर गलत कदम उठा लेता है, जिनमें आत्महत्या भी शामिल है।
कई स्टूडेंट इसलिए आत्महत्या कर लेते हैं क्योंकि वे NEET या आईआईटी की प्रवेश परीक्षा में अपेक्षाओं के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पाते, और ऐसे में मानसिक विकास पर ध्यान देना आवश्यक है। परंतु इसका अर्थ ये भी नहीं है कि अनुशासनहीनता को बढ़ावा दिया जाए और स्वास्थ्य के साथ समझौता किया जाए। अब चूंकि देश में आधे से अधिक लोगों को कम से कम एक डोज़ टीका लग चुका है, तो इसीलिए अब IISc प्रारंभ के मुकाबले अपने नियमों में ढील देने को भी तैयार है। ऐसे में IISc के वर्क कल्चर के कारण आत्महत्या के लिए विद्यार्थियों को विवश करना शुद्ध प्रोपगैंडा है।