जब नाश मनुज पर छाता है, विवेक पहले मर जाता है, और चीन इसका जीता जागता प्रमाण है। दुनिया को कोरोना वायरस देने के पश्चात अब उसकी स्वयं की अवस्था काफी दयनीय है। कोयला संकट, फिर ‘Evergrande’ के कारण रियल एस्टेट में संकट और अब जल्द ही आर्थिक संकट के कारण चीन का विनाश तय है। इसी बीच जहां चीन में उत्पन्न कोयला संकट के कारण पूरी दुनिया परेशान है [क्योंकि कई देश चीन पर कोयले के लिए निर्भर थे], तो वहीं भारत इस संकट से जूझते हुए बच निकलने में सफल रहा, और चीन भारत की इस सफलता को बिल्कुल भी नहीं पचा पा रहा।
ग्लोबल टाइम्स में दिखी कुंठा
चीन की यह कुंठा ग्लोबल टाइम्स में स्पष्ट दिखाई दे रही है। कोयला संकट पर उसने एक हास्यास्पद लेख में यह जताने का प्रयास किया है कि कैसे चीन में स्थिति सुधर रही है, जबकि भारत में अभी भी ऊर्जा संयंत्र कोयले के लिए मोहताज हैं। ग्लोबल टाइम्स के लेख के शीर्षक से ही आप उनकी बौखलाहट समझ सकते हैं।
इस लेख के जरिए चीन ये दिखाने में जुटा हुआ है कि किस प्रकार से चीन में सब भला चंगा है, जबकि भारत में बहुत भारी कोयला संकट है, जो अभी तक खत्म नहीं हुआ है। चीन का दावा है कि भारत के 10 ऊर्जा संयंत्रों में कोयला खत्म हो चुका है और बाकी 117 कोयला आधारित ऊर्जा संयंत्रों में सिर्फ एक हफ्ते का कोयला स्टॉक बचा है।
अपनी सराहना करते हुए ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि चाइनीज एकेडमी ऑफ सोशल साइंसेज के तहत इंस्टीट्यूट ऑफ वर्ल्ड इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिक्स के प्रमुख वांग योंगजोंग ने सोमवार को ग्लोबल टाइम्स को बताया कि “भारत की तुलना में, चीन की कहानी अलग है, जहां कोयले की कमी क्षमता की कमी के बजाय स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य को पूरा करने के लिए कई खदानों को बंद किया गया है, जिसे अब उत्पादन में वापस लाया जा रहा है।” चीन ने मोदी सरकार को असफल दिखाने के लिए कई बेतुके तर्क दिये हैं और तर्कों से केवल चीन की जनता खुश हो सकती है।
इससे पहले भी भारत के विरुद्ध ग्लोबल टाइम्स ने उगला विष
ग्लोबल टाइम्स के सम्पादन मंडली को लगता है कि चीन की जनता की भांति पूरी दुनिया भी सच को नहीं देख पायेगी और आँख मूंदकर उनके अनर्गल प्रलाप को पढ़ लेगी। हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं जब चीन ने इस प्रकार का अनर्गल प्रलाप लिखा है।
इससे पहले भी कई बार चीन ने अपने मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स के जरिए भारत के विरुद्ध झूठे दावे किए हैं।
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जब अपने बचकाने निर्णयों के कारण भारत में असफल होने पर फोर्ड को भारत छोड़ने पर विवश होना पड़ा, तो ग्लोबल टाइम्स ने इसे भारत की असफलता के रूप में चित्रित करने का हास्यास्पद प्रयास किया। ग्लोबल टाइम्स के इस प्रयास पर TFI ने कटाक्ष करते हुए अपने लेख में लिखा था,
“ग्लोबल टाइम्स को अपनी प्रशंसा करने और लंबी लंबी फेंकने में थोड़ा अंतर होता है। फोर्ड को भारत सहित कई देशों से अपना बोरिया बिस्तर क्यों समेटना पड़ा, इसके पीछे कई कारण है, जिसमें से उसकी अपनी प्रशासनिक असफलता भी हैं, चीन तो ऐसे प्रसन्न हो रहा है जैसे अंधे के हाथ बटेर लगी हो। अब जब बात अपने ऑटोमोबाइल मार्केट की चीन ने छेड़ी ही है, तो फिर इस ‘ड्रैगन’ के ‘ग्रेट ऑटोमोबाइल मार्केट’ की पोल खोलना तो बनता है।” इसके बाद हमने चीन के ऑटोमोबाइल मार्केट का पूरा सच अपने लेख में उजागर किया था।
अब चीन की दादागिरी नहीं चलेगी
ग्लोबल टाइम्स की कुंठा एक बार फिर उसके वर्तमान लेख में जगजाहिर हुई है। चीन किसी भी क्षेत्र में अपना प्रभाव छोड़ने में असफल रही है, और अगर लंबी लंबी फेंकने में उसे पाकिस्तान का बड़ा भाई कहें तो कोई गलती नहीं होगी। अपनी असफलता को इन्हीं झूठे, हास्यास्पद लेखों के पीछे छुपाकर वह अपनी जनता, विशेषकर अपने तानाशाह शी जिनपिंग को प्रसन्न रखना चाहता है, ताकि उसे लगे कि चीन में कुछ भी गड़बड़ नहीं है, जबकि सत्य तो यह है कि चीन विनाश के मुहाने पर खड़ा है, और यदि जिनपिंग ने अब भी युद्ध की सनक नहीं छोड़ी, तो उसकी अवस्था 1971 के याह्या खान (Yahya Khan) से भी बुरी होगी।