कांग्रेस के गांधी वाड्रा परिवार की VVIP कल्चर का असर अब पंजाब में भी दिखने लगा है। अब तो हाईलेवल मीटिंग में उन लोगों को भी शामिल किया जाने लगा है, जो दूर-दूर तक इसके योग्य नहीं है और इससे जुड़े नहीं है। जैसे यूपीए सरकार के समय मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री होते हुए भी गांधी-वाड्रा परिवार के सदस्य अगल-बगल मंडराते फिरते थे, अब वैसे ही पंजाब में अति संवेदनशील बैठकों में भी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी अपने बेटे को शामिल करते हुए देखे गए हैं।
जब से पंजाब के मुख्यमंत्री के रूप में चरणजीत सिंह चन्नी ने शपथ ली है, उनकी मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही। हाल ही में पंजाब के डीजीपी ने प्रदेश के अन्य अधिकारियों और मंत्रियों के साथ लॉ एंड ऑर्डर को लेकर बैठक की। तो इस बैठक में गलत क्या था? असल में इस बैठक में चरणजीत का बेटा मौजूद था, जबकि इस मीटिंग में मुख्यमंत्री और उच्चाधिकारियों के अलावा कोई अन्य व्यक्ति शामिल नहीं हो सकता।
नियमों के मुताबिक मुख्यमंत्री या किसी अन्य मंत्री के परिवार का कोई भी सदस्य इस तरह की ऑफिशियल मीटिंग में मौजूद नहीं रह सकता। अगर ऐसा होता है तो ये राज्य सरकार के कामकाज के नियमों का उल्लंघन है। इसीलिए सोशल मीडिया पर जैसे ही इसकी तस्वीरें सामने आई, कांग्रेस और सीएम चन्नी पर चौतरफा हमला प्रारंभ हो गया है और इस विषय पर भारतीय जनता पार्टी ने विशेष रूप से प्रदेश अध्यक्ष अश्विनी शर्मा के नेतृत्व में आक्रामक रुख अपनाया हुआ है।
बीजेपी ने बोला जोरदार हमला
अश्विनी शर्मा के अनुसार, “चन्नी तीन बार विधायक रह चुके हैं। उन्हें नियमों के बारे में काफी अच्छे से पता है। संवैधानिक नियम-कायदों का हमेशा पालन किया जाना चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि नियम-कानून को जानते हुए भी सीनियर ब्यूरोक्रेट्स ने इसकी इजाजत दी।“ इस बैठक में शिक्षा, खेल और एनआरआई मामलों के मंत्री परगट सिंह भी मौजूद थे, जिनका स्वयं विवादों से तभी से नाता रहा है, जब वे राजनीतिज्ञ न होकर भारतीय हॉकी टीम के सदस्य हुआ करते थे।
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नौकरशाहों के निशाने पर चन्नी
अकेले भाजपा ही नहीं, पूर्व नौकरशाहों ने भी गांधी-वाड्रा परिवार के इस ‘घटिया नीति’ का अनुसरण करने के लिए सीएम चन्नी को निशाने पर लिया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार कुछ पूर्व नौकरशाहों ने कहा कि ये घटना असामान्य है एवं इसके गंभीर दुष्परिणाम भी आगे भुगतने पड़ सकते हैं।
एक पूर्व नौकरशाह के अनुसार, “ये एक असामान्य कार्य है और इतने ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति से इसकी उम्मीद नहीं की जा सकती है। सीएमओ में तैनात नौकरशाहों को इसकी जानकारी देनी चाहिए थी। ऐसी बैठकों में किसी अनाधिकृत या निजी व्यक्ति की उपस्थिति राज्य के हित के खिलाफ है। ये मुख्यमंत्री द्वारा ली गई शपथ के भी खिलाफ है।” अब सोचिए, जब एक प्रदेश का मुख्यमंत्री राज्य की प्रशासनिक सुरक्षा को ऐसे ठेंगे पर रखता हो, तो फिर पंजाब के आम नागरिकों की सुरक्षा तो भगवान भरोसे ही है।