देश में प्रत्येक मुद्दे को राजनीतिक और धार्मिक रंग के चश्में से देखना एक प्रथा सी बन गई है और इस प्रथा को विस्तार देने का काम, सर्वाधिक देश का वामपंथी धड़ा ही करता रहता है। ये वामपंथी अब इस हद तक नीचे गिर गए हैं कि क्रिकेट को भी हिन्दू-मुसलमान तक ले आए हैं, जिसका उदाहरण इंडियन प्रीमियर लीग के फाइनल में चेन्नई सुपर किंग्स (सीएसके) और कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) के बीच मैच में देखने को मिला है। वामपंथियों ने इस मैच को शाहरुख खान की फ्रेंचाइजी केकेआर से जोड़कर हिन्दू-मुस्लिम का रंग देने की कोशिश तक कर डाली। उनका मानना था कि यदि ये मैच केकेआर जीत जाती तो शाहरुख खान के बेटे आर्य़न खान पर लगे ड्रग्स केस से संबंधित आरोपों में उन्हें राहत मिलती लेकिन केकेआर को एक प्रायोजित ढंग से हराया गया है।
सीएसके से मिली हार से नाराज हैं केकेआर प्रशंसक
आईपीएल 2021 के संस्करण के विजेता का खिताब कोलकाता नाइट राइडर्स (केकेआर) को हराकर महेन्द्र सिंह धोनी नीत सीएसके ने अपने नाम कर लिया है। निश्चित तौर पर दोनों ही टीमों ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था लेकिन जीत तो अंत में एक की ही होनी थी। इसके विपरीत केकेआर बनाम सीएसके के इस फाइनल मैच को धार्मिक रंग दे दिया गया, जिसमें केकेआर की जीत की दुआएं पढ़ी गई और जीत के जरिए टीम के मालिक शाहरुख खान को खुशी मिलने के लिए मन्नतें तक मांगी गई, क्योंकि इनके मुताबिक शाहरुख के बेटे आर्य़न का ड्रग्स केस में नाम आने पर वो पहले से काफी संकट में हैं। इन लोगों को उम्मीद थी कि केकेआर बनाम सीएसके मैच जीतने पर शाहरुख खुश हो सकेंगे पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
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Arae arae… pic.twitter.com/U3XP9b69QA
— Anshul Saxena (@AskAnshul) October 15, 2021
जीत को लेकर दुआएं
वहीं, केकेआर के फाइनल में पहुंचने और उसकी जीत को लेकर लिबरलों द्वारा खूब दुआएं पढ़ी गई! लिबरल गिरोह में कुख्यात राणा अय्यूब ने लिखा, “केकेआर का फाइनल में पहुंचना एक सांकेतिक न्याय है।” राणा अय्यूब की तरह ही रेडियो मिर्जी की रेडियो जॉकी और घोर वामपंथी आर जे सायमा ने लिखा कि वो केकेआर को ही जीतते हुए देखना चाहती हैं, जो कि एक फैन कम और एक हिन्दू बनाम मुस्लिम के मैच का संकेत देता है। साथ ही लिबरलों के बीच की कथित पत्रकार सबा नकवी ने लिखा, “केकेआर के साथ हूँ क्योंकि मुझे शहर पसंद हैं और चाहती हूँ कि शाहरुख खान के जीवन में कुछ खुशखबरी आए।”
Because nothing is ever not political in LeLiland ;
On the day of Dussehra,A team helmed by Lieutenant Colonel of the Indian Army Owned by a savarna brahmin Defeated the team of an anti-national drug peddler using 'minority' victimcard to whitewash their crimes #PoeticJustice pic.twitter.com/dMPUOon6Sx
— കുട്ടൻ തമ്പുരാൻ 🇮🇳 (@kuttan_thambran) October 15, 2021
केकेआर बनाम सीएसके फाइनल – लोगों ने लिए मजे
आईपीएल फाइनल में खेल रही केकेआर टीम का शाहरुख के बेटे के ड्रग्स मामले के साथ कोई संबंध नहीं था, लेकिन ये दिखाने की पूरी कोशिश की जा रही थी कि मुस्लिम होने के नाते शाहरुख और उनके बेटे को प्रताड़ित किया जा रहा है, ऐसे में यदि केकेआर की जीत होती है, तो यह मोदी सरकार के लिए झटका होगा और शाहरुख को खुशी प्राप्त होगी। हालांकि, केकेआर की हार पर लोगों ने लिबरलों के खूब मजे लिए हैं। द स्किन डॉक्टर नामक एक ट्विटर यूजर ने अपने एक ट्वीट में ही सभी लिबरलों को लपेट दिया और लिखा, “सीएसके अच्छे से जानती थी कि केकेआर एक मुस्लिम सुपरस्टार की टीम है जो अपने बुरे दौर से गुजर रहे हैं, वो भी उसके 23 साल के बच्चे की वजह से जो शिप पर गया था। इसके बावजूद उन्होंने केकेआर को जीतने नहीं दिया। ये पोएटिक जस्टिस नहीं हैं। ये IPL का इस्लामोफोबिया दर्शाता है न कि उस भारत का जिसका सपना नेहरु ने देखा था।”
ठीक इसी तरह एक अन्य यूजर ने लिखा, “शाहरुख के लिए लिबरल गिरोह ने पढ़ी दुआ… फिर भी हार गई केकेआर : सीएसके ने ‘मुस्लिम सुपरस्टार’ को हराया – नेटिजंस का रिएक्शन” इसके अलावा लोगों ने लिबरलों को तंज कसने के अंदाज में लिखा कि कैसे दशहरे के दिन एक सवर्ण समाज की टीम ने मुस्लिम मालिक की टीम को हरा दिया है।
"#CSK knew very well that #KKR is owned by a MusIim superstar going thru bad times due to his 23yo toddler facing jail for going to a ship and yet they didn't let KKR win the #IPLFinal
This isn't poetic justice. I in IPL stands for lsIamophobia! Not the India of Nehru's dreams."
— THE SKIN DOCTOR (@theskindoctor13) October 15, 2021
सटीक शब्दों में कहा जाए तो जो लोग इस मैच को आर्यन खान से जोड़कर केकेआर की जीत की दुआ मांग रहे थे, उन्हीं लोगों को मैच में हार के बाद सोशल मीडिया यूजर्स ने धोया है, जिसका नतीजा ये है कि वामपंथियों ने अपने ट्वीट तक डिलीट कर दिए। वहीं, इस प्रकरण से एक बात तो फिर स्पष्ट हो गई है कि प्रत्येक मुद्दे को धर्म और जाति से जोड़कर उस पर सरकारों और हिन्दुओं की आलोचना करने में इन वामपंथियों को बहुत मजा आता है, जबकि बाद में उनकी ही मिट्टी पलीद हो जाती है।