किसी भी देश के पास दो तरह की ताकत होती है। हार्ड पावर और सॉफ्ट पॉवर, इन दोनों तरीकों का इस्तेमाल किसी भी राष्ट्र द्वारा अपनी सैन्य शक्ति के लिए किया जाता है। भारत हार्ड पावर में पहले से ही दुनिया का चौथा सबसे शक्तिशाली देश है। अब भारत सॉफ्ट पावर का इस्तेमाल करने की योजना बना रहा है और मोदी सरकार के इस मुहिम ने चीन जैसे पड़ोसी देशों में तनाव एवं चिंता की स्थिति पैदा कर दी है। तिब्बत के लोगों के बीच अपनी स्वीकार्यता को मजबूत करने के लिए भारत अपने सैनिकों को ‘तिब्बतोलॉजी’ पढ़ाने की तैयारी कर रहा है।
दरअसल, भारतीय सेना वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तैनात अपने अधिकारियों और जवानों को तिब्बती संस्कृति से उन्मुख करने और सूचना युद्ध में पारंगत बनाने के लिए तिब्बतोलॉजी का कोर्स करवा रही है। इसके लिए उसने अरुणाचल प्रदेश के सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन कल्चरल स्टडीज के साथ एक समझौता किया है। इस साल मार्च से जून के बीच 15 सहभागियों की पहली बैच को तिब्बतोलॉजी की ट्रेनिंग दी जा चुकी है। दूसरी ओर देशभर में अबतक 150 आर्मी अफसरों को विभिन्न सेंटरों में ऐसी ट्रेनिंग दी जा चुकी है।
तिब्बतोलॉजी से भारत-तिब्बत के संबंध होंगे मजबूत
अरुणाचल प्रदेश के टेंगा में 5 माउंटेन डिवीजन के एक वरिष्ठ सेना अधिकारी ने कहा, “तिब्बती परंपराओं, सांस्कृतिक विशिष्टताओं, लोकतंत्र और राजनीतिक प्रभाव आदि को समझना हमारे अधिकारियों को यह समझने में सक्षम बनाता है कि हम कहां जा रहे हैं और हम कहां काम कर रहे हैं।”
आर्मी की ट्रेनिंग कमांड एआरटीआरएसी (ARTRAC) ने देश भर में इस विशेष ट्रेनिंग के लिए सात संस्थानों की पहचान की है, जिनमें से दो उत्तर-पूर्वी राज्यों में हैं। इसमें प्रमुख संस्थान सिक्किम में मौजूद ‘नामग्याल तिब्बत विज्ञान संस्थान’ है।
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42 दिनों के प्रारंभिक तिब्बतोलॉजी पाठ्यक्रम में प्रशिक्षुओं को तिब्बती इतिहास, जियो पॉलिटिक्स और मौजूदा पॉलिटिकल डिनॉमिक्स के बारे में जानकारी दी जा रही है, जिसमें लेक्चर के साथ-साथ केस स्टडीज भी शामिल है। इसके लिए बोमडिला मोनेस्टरी से तिब्बत और तिब्बतियों से जुड़े मुद्दों को समझने वाले लामाओं की भर्ती की जाएगी। भारत में मौजूद यह लामा तिब्बत के मूल संस्कृति को पहचानने में मदद करेंगे।
पूर्वी कमान, 4 कोर के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “यह पाठ्यक्रम हमारे सैनिकों को तिब्बती भाषा, संस्कृति, इतिहास और राजनीतिक स्थिति को समझने में मदद करता है। यह अंततः उन्हें सशक्त बनाएगा जब वे LAC पर तैनात हो जाएंगे।”
सेना में बढ़ेगी तिब्बती मुद्दों की समझ रखने वाले जवानों की संख्या
भारतीय सेना में काफी पहले से भी ऐसा प्रशिक्षण दिया जा रहा, लेकिन अब इसे औपचारिक रूप दे दिया गया है। तिब्बतोलॉजी का पहला बैच इस साल मार्च से मई तक आयोजित किया गया था, जिसमें 15 अधिकारियों को ट्रेनिंग मिल चुकी है। दूसरा कोर्स अगले महीने शुरू होने वाला है, मौजूदा समय में प्रत्येक पाठ्यक्रम में लगभग 15-20 प्रतिभागियों के साथ एक वर्ष में दो पाठ्यक्रमों की योजना बनाई गई है।
तिब्बतोलॉजी के भविष्य के लाभ को समझाते हुए अधिकारी ने बताया, “प्रशिक्षित अधिकारी अपनी बटालियनों में प्रशिक्षकों के रूप में कार्य करेंगे और कुछ वर्षों में हमारे पास तिब्बती मुद्दों की समझ रखने वाले कर्मियों की एक बहुत बड़ी संख्या होगी।”
तिब्बत में पहले से ही स्पेशल फ्रंटियर फ़ोर्स (SFF) है जो पलक झपकते ही चीन को गच्चा दे जाते हैं। अब भारत उनके करीब जाकर, उनकी संस्कृति को समझकर उनकी मजबूती को और बढ़ा सकता है, जिससे देश को भविष्य में मदद मिले। SFF की मौजूदगी से ‘तिब्बतोलॉजी’ का उद्देश्य जल्द ही पूरा हो जाने की उम्मीद जताई जा रही है। इससे पहले बांग्लादेश के साथ मुक्ति वाहिनी का इस्तेमाल कर भारत ने कुछ ऐसा ही किया था। बांग्लादेश के हिंदू जो अपनी मूल संस्कृति का उद्गम संबंध भारत से जोड़कर देखते हैं, भारत ने उन्हें अपने साथ लिया जिससे एयर बांग्लादेश के साथ कार्यवाही में सेना को मदद मिली थी।
चीन के दोहरे रवैये से खुश नहीं हैं तिब्बत के लोग
भारत की वर्तमान तिब्बत नीति भारत में बसने वाले तिब्बतियों के कल्याण एवं विकास हेतु महत्त्वपूर्ण है, परंतु यह तिब्बत के मुख्य मुद्दों का कानूनी समर्थन नहीं करती है। भारत का लक्ष्य है कि दोनों देश एक दूसरे के साथ आएं और यह तभी मुमकिन है जब भारत, तिब्बत की मूल संस्कृति को समझेगा। सेना को तिब्बती संस्कृति से जोड़ने के इस कदम को मोदी सरकार की एक विशेष रणनीति के रुप में देखा जा रहा है, जो भविष्य में चीन के खिलाफ भारत का हथियार साबित हो सकता है।
गौरतलब है कि लंबे समय से चीन की सेना द्वारा यह प्रयोग कर तिब्बती लोगों को हान संस्कृति से जोड़ने की कोशिश की जा रही थी लेकिन ऐसा लगता है कि चीन के दोहरे रवैये से तिब्बत खुश नहीं है और शायद इसलिए ही भारत के मार्ग खुले हुए हैं। खैर जो भी हो, भारत के इस फैसले से दुश्मन के खेमे में हलचल मच गई है और ग्लोबल टाइम्स गला फाड़-फाड़ कर रो रहा है। ऐसा लगता है कि भारत, चीनी सीमा से जुड़ा हुआ बहुत महत्वपूर्ण कदम उठाने जा रहा है।