दो अमेरिकी सीनेटरों ने बीते दिन मंगलवार को राष्ट्रपति जो बाइडन को पत्र लिख कर भारत द्वारा रूस से S-400 मिसाइल प्रणाली खरीदने की स्थिति में प्रतिबंध न लगाए जाने की मांग की। अमेरिकी सीनेटर ने आग्रह किया कि राष्ट्रपति बाइडन भारत के खिलाफ ‘काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सेंक्शंस एक्ट’ (CAATSA) के दंडात्मक प्रावधानों को लागू ना करें।
अमेरिकी राष्ट्रपति को लिखे पत्र में सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी के सीनेटर मार्क वार्नर और रिपब्लिकन पार्टी के जॉन कॉर्निन ने आग्रह किया कि CAATSA के तहत राष्ट्रीय हित को ध्यान में रखते हुए भारत को इसके प्रावधानों से छूट दी जानी चाहिए। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उनके द्वारा भारत पर प्रतिबंध न लगाना अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में है।
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अमेरिकी सीनेटरों ने जताई चिंता
न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार पत्र में अमेरिकी सांसदों ने लिखा, ‘हम रूसी उपकरण खरीद के संबंध में आपकी(बाइडन) चिंता को समझते हैं। हम आपके प्रशासन को भारतीय अधिकारियों के समक्ष इस चिंता को मजबूती से उठाना जारी रखने के लिए प्रोत्साहित करेंगे। भारत के साथ रचनात्मक रूप से जुड़कर रूसी उपकरणों की खरीद के विकल्पों का समर्थन करना भी जारी रखेंगे।’
दोनों सांसदों ने आगे लिखा कि भारत ने रूसी सैन्य उपकरणों की खरीद को कम करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं, लेकिन सोवियत संघ और बाद में रूस से हथियार खरीदने का उसका एक लंबा इतिहास रहा है। उन्होंने अपने इस पत्र में लिखा कि “इस समय प्रतिबंध लगाने से हमारे भारत के साथ द्विपक्षीय संबंधों के सभी पहलुओं, जैसे- टीकों से लेकर रक्षा सहयोग, ऊर्जा रणनीति से लेकर प्रौद्योगिकी साझाकरण आदि पटरी से उतर सकता है।”
यही नहीं उन्होंने बताया कि अमेरिकी प्रतिबंध भारतीय आलोचकों को भी प्रोत्साहित कर सकते हैं, जो एजेंडा फैलाते रहे हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका “सहयोग के लिए एक सुसंगत और विश्वसनीय भागीदार नहीं होगा”।
अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा, “हाल के वर्षों में भारत ने रूसी सैन्य हार्डवेयर के आयात को कम करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। साल 2016 से साल 2020 तक भारत में रूसी हथियारों के निर्यात में पिछले पांच साल की अवधि की तुलना में 53 प्रतिशत की गिरावट आई है।”
काफी पहले से ही इस डील पर बात कर रहा भारत
गौरतलब है कि रूसी S-400, मिसाइल सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल रक्षा प्रणालियों की प्रस्तावित खरीद के लिए ट्रंप युग से ही अमेरिका, भारत पर CAATSA के तहत प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रहा है। CAATSA के तहत खरीदे गए उपकरण की डिलीवरी होते ही एक रक्षा सौदा स्वीकृत हो जाता है। नाटो के सहयोगी तुर्की ने दिसंबर 2020 में जब अपना S-400 मिसाइल प्राप्त किया था, तब भी ऐसा हुआ था।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि 2017 में CAATSA कानून बनने से पहले ही भारत ने रूस के साथ S-400 मिसाइल खरीद पर बातचीत शुरू कर दी थी। ऐसे में अगर अमेरिका भारत कर किसी तरह का प्रतिबंध लगाता है, तो ना सिर्फ उसके भारत के साथ रिश्ते बिगड़ेंगे, बल्कि अमेरिका की मनमानियों का जवाब भी भारत कड़े रुख के साथ देगा।
बताते चलें कि 5 अक्टूबर, 2018 को भारत और रूस ने पांच S-400 मिसाइल सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल प्रणालियों की खरीद के लिए 5.43 बिलियन डॉलर की डील पर हस्ताक्षर किए थे। भारत ने पांच S-400 मिसाइल के लिए भुगतान किया है, जिसकी डिलीवरी इस साल के अंत तक होने की उम्मीद है। अमेरिका तब से ही CAATSA ढांचे के तहत भारत के पर प्रतिबंध लगाने की चेतावनी देते आ रहा है।
भारत पर प्रतिबंध लगाना अमेरिका के लिए ही घातक सिद्ध होगा
दूसरी ओर अगर भारत के खिलाफ अमेरिका ऐसा कदम उठाता है, तो यह अमेरिका के लिए ही घातक सिद्ध होगा। अमेरिकी सांसदों ने भी राष्ट्रपति को लिखे पत्र में इसकी शंका जताई है। किसी भी अमेरिकी एक्शन के बाद भारत का रूस की तरफ झुकाव अनिवार्य हो जाएगा और यह अमेरिका के लिए न सिर्फ झटका होगा, बल्कि उसके इंडो पैसिफिक में प्रभुत्व की महत्वकांक्षा भी धराशायी हो जायेगी।
स्पष्ट है कि भारत को अमेरिका के प्रतिबंधो की कोई चिंता नहीं है। आज भारत पूरे विश्व में एक ऐसा देश बन चुका है, जिसे कोई भी महाशक्ति प्रतिबंध लगा कर खतरा मोल लेना नहीं चाहेगी। भारत अब 1990 के दशक का भारत नहीं रहा, जब अमेरिका के प्रतिबंधों के दबाव में आकर रूस या किसी अन्य देश के साथ डिफेंस डील से पीछे हट जाया करता था। यह नया भारत है और आज भारत का कद कई गुना ज्यादा बढ़ चुका है। भारत की विदेश नीति अब न तो किसी महाशक्ति पर आश्रित है और न ही किसी अन्य देश के दबाव में आने वाली है।