स्वतंत्रता के बाद जब जवाहरलाल नेहरू युग में वामपंथी इतिहासकार एक-एक कर देश के इतिहास की धज्जियां उड़ा रहे थे तब एक ऐसे इतिहासकार हुए जिन्होंने उस जमाने में भी भारतवर्ष के इतिहास को बचाने की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर ली। उस इतिहासकर का नाम था RC मजूमदार! यही काम 70 से 90 के दशक में सीताराम गोएल ने किया आज के समय में वही काम इतिहासकार विक्रम संपत कर रहे हैं!
कौन कहता है आसमान में सुराख नहीं हो सकता? एक पत्थर तो तबीयत से उछालो! यह कथन विक्रम संपत पर बिल्कुल सटीक बैठती है, जिन्होंने अपने अनुसंधान और अपने वक्तव्य से पूरे ऐतिहासिक जगत में त्राहिमाम मचा दिया है। उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर पर अपने अनुसंधान से वामपंथियों के रातों की नींद उड़ा रखी है, और विक्रम संपत के अंदर इतनी क्षमता है कि वह अपने दम पर पूरे वामपंथी इतिहासकार गैंग की दुकान ही बंद करवा सकते हैं।
वो कैसे? असल में अभी हाल ही में विनायक दामोदर सावरकर को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के एक बयान ने वामपंथी खेमे में त्राहिमाम मचा दिया। उन्होंने कहा कि मोहनदास करमचंद गांधी उर्फ महात्मा गांधी ने न केवल सावरकर बंधुओं की दया याचिका के लिए पैरवी की, अपितु उन्हें सम्राट जॉर्ज पंचम के समक्ष सेल्युलर जेल से निकालने हेतु एमनेस्टी ऑर्डर के अंतर्गत दया याचिका के लिए आवेदन करने का सुझाव भी दिया। केंद्रीय मंत्री के इस बयान पर वामपंथियों की ओर से कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आई।
वामपंथी इतिहासकार की लगाई क्लास
ऐसे में वीर सावरकर पर दो अभूतपूर्व पुस्तक लिख चुके इतिहासकार विक्रम संपत ने ट्वीट करते हुए कहा, “राजनाथ सिंह के बयान पर लोग फालतू में अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं। सावरकर पर अपने प्रथम संस्करण और अनेक साक्षात्कारों में मैं ये बता चुका हूँ कि कैसे गांधीजी ने न केवल सावरकर बंधुओं को दया याचिका दायर करने का सुझाव दिया, अपितु उनके त्वरित रिहाई के लिए 26 मई 1920 को अपने पत्रिका यंग इंडिया में एक मार्मिक लेख भी छापा। तो ये हो हल्ला किस लिए और क्यों?”–
Some needless brouhaha abt statement by @rajnathsingh In my Vol 1 & in countless interviews I had stated already that in 1920 Gandhiji advised Savarkar brothers to file a petition & even made a case for his release through an essay in Young India 26 May 1920. So what's noise abt? pic.twitter.com/FWfAHoG0MX
— Dr. Vikram Sampath, FRHistS (@vikramsampath) October 13, 2021
विक्रम संपत के इस ट्वीट पर वामपंथी ट्रोल्स ने उन्हें जमकर बुरा-भला कहा। यहां तक कि वामपंथी इतिहासकार कहे जाने वाले इरफान हबीब और संजुक्ता बासु ने भी अजीबोगरीब प्रतिक्रियाएं दी। संपत के ट्वीट पर प्रतिक्रिया देते हुए ये सिद्ध करने का प्रयास कर रहे थे जैसे इनसे बड़ा ज्ञानी कोई नहीं है, और विक्रम संपत उनके सामने कुछ भी नहीं।
लेकिन जब विक्रम ने तथ्यों के माध्यम से इरफान हबीब को जवाब देना प्रारंभ किया, तो हबीब की हालत पतली हो गई और वह गोलमोल उत्तर देने लगे। इसपर आक्रामक रुख अपनाते हुए विक्रम संपत ने तुरंत ट्वीट किया, “यदि आपको गोलपोस्ट शिफ्ट करने अथवा गिरगिट की भांति रंग बदलने पर क्रैश कोर्स करना है, तो आपको बस एक वामपंथी इतिहासकार के साथ कुछ समय बिताना है। जीवन भर के लिए मूल्यवान अनुभव प्राप्त हो जाएगा, और इसके लिए कोई भी निन्दा कम पड़ेगी” –
For anyone needing a crash course on how to keep changing colors like a chameleon or shift goal posts u just have to engage with a Leftist historian even for a brief while. You will be trained for life to do convenient somersaults & couch it in sophistry! Shameless. https://t.co/WpukFYQE06
— Dr. Vikram Sampath, FRHistS (@vikramsampath) October 13, 2021
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इससे पूर्व विक्रम संपत ने इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में वामपंथी इतिहासकारों के खोखले दावों की धुलाई करते हुए बताया था कि कैसे हमें अपने इतिहास को पुनर्स्थापित करने की आवश्यकता है और इसे दिल्ली केंद्रित न करके भारत केंद्रित करना चाहिए, जहां सभी क्षेत्रों को समान रूप से कवरेज और सम्मान मिले।
TFI के विश्लेषणात्मक रिपोर्ट के अनुसार, “विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस (partition horror remembrance day) के उल्लेख पर विक्रम संपत ने आगे ये भी कहा था कि हमें आवश्यकता है कि अपने इतिहास को दिल्ली केंद्रित कम करके उसे भारत केंद्रित अधिक बनाएं, और देश के हर राज्य और हर वंश के इतिहास को बराबर प्राथमिकता दें। उन्होंने कहा, “हम इस पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं कि सच बोलने से वर्तमान सामाजिक व्यवस्था बिगड़ जाएगी। परंतु मैं कहता हूँ कि फर्जी इतिहास के आधार पर देश की सामाजिक संप्रभुता नहीं टिक सकती”।
विक्रम संपत ने सावरकर पर “Savarkar: Echoes from A Forgotten Past, 1883-1924 (Part 1)“ और “Savarkar (Part 2): A Contested Legacy 1924-1966“ किताबें लिखी हैं। जिसमें उन्होंने वामपंथी इतिहासकारों से उलट देश का वास्तविक इतिहास और सावरकर के जीवन की वास्तविक सच्चाई को दर्शाया है।
इतिहासकार विक्रम संपत के सामने पतली हो जाती है वामपंथियों की हालत
इतिहासकार विक्रम संपत से वामपंथी पत्रकारों के चिढ़ के अन्य भी कई कारण है। यदि आपके समक्ष कोई ऐसा विरोधी हो, जो आपके शब्दबाण से तनिक भी विचलित न हो, जो आपके कुत्सित षड्यंत्रों से भलि भाँति परिचित हो, और जो आप ही के तरीकों से आपको परास्त करना भी जानता हो, तो आपका भयभीत होना स्वाभाविक है, और इस समय में विक्रम संपत को देखकर वामपंथियों की यही हालत हो रही है।
विक्रम संपत उन लोगों में से नहीं है, जो भावना के आवेश में आकर कोई निर्णय लें, अपितु वे वामपंथियों के तौर-तरीकों और उनके छल प्रपंच से भलि भांति परिचित हैं, और उन्हें उन्हीं के तरीकों से परास्त करना भी जानते हैं। वामपंथी इसलिए भी विक्रम संपत से बौखलाये और भयभीत हैं, क्योंकि उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि जो व्यक्ति वीर सावरकर की स्तुति कर रहा है, जो व्यक्ति भारत के वास्तविक इतिहास का गुणगान कर रहा है, वो उनके अनेक प्रपंचों के बाद भी उनके समक्ष नतमस्तक क्यों नहीं हुआ?
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नतमस्तक होना तो दूर की बात, विक्रम संपत संभवत: ‘कैन्सल कल्चर’ की काट भी जानते हैं, और शायद इसीलिए वे विश्व प्रसिद्ध रॉयल हिस्टॉरिकल सोसायटी के फेलो के रूप में चयनित भी हुए हैं, जहां भारत के बड़े से बड़े वामपंथी इतिहासकारों को अनेक प्रकार की चाटुकारिता करने के बाद भी प्रवेश नहीं मिल पाया होगा। जॉर्ज ऑरवेल ने एक बात सत्य कही थी, ‘असत्य और विश्वासघात के इस युग में सत्य बोलना ही सबसे क्रांतिकारी कृत्य होगा’, और ऐसा करके ही विक्रम संपत अपने अनोखी शैली में वामपंथी इतिहासकारों की दुकानें बंद कराने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।