“बहुत हुआ सम्मान, अब करो भुगतान”, जलवायु मुद्दे पर पीएम मोदी की एक मांग ने पश्चिमी देशों की बोलती बंद कर दी

भारत में अमेरिका और चीन से भी कम होता है कार्बन उत्सर्जन

जलवायु परिवर्तन भारत

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एक तो चोरी ऊपर से सीनाजोरी…बहुत खेल लिया आरोप-प्रत्यारोप का खेल….निज राष्ट्र के विकास के नाम पर जलवायु का सर्वाधिक दोहन करते हो और जिम्मेदार भारत को ठहराते हो, अब मोदी सरकार ने जलवायु परिवर्तन को लेकर अपना रवैया आक्रामक कर लिया है। 17 वीं और 18वीं शताब्दी में विकास की बयार चला चुके पश्चिमी देशों ने जलवायु को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया है। वहीं, अब जब भारत अपने विकास की उड़ान भरने को तैयार है, तो ये सभी देश जलवायु परिवर्तन के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इस अजीबोगरीब रवैए पर भारत ने अब पश्चिमी देशों को तगड़ी लताड़ लगाते हुए अपनी विकास यात्रा में होने वाले नुकसान को लेकर मुआवजे की मांग कर डाली है, जो कि मोदी सरकार की आक्रामक वैश्विक कूटनीति का प्रतीक है।

दरअसल, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर मोदी सरकार ने सदैव ही सकारात्मक प्रयास किए हैं, प्राकृतिक दोहन को सतत कम करने के लिए सरकार सौर ऊर्जा की ओर रुख भी कर रही है। इसके विपरीत जब भी जलवायु परिवर्तन का मुद्दा आता है, तो पश्चिमी विकसित देश भारत जैसे देशों को जलवायु परिवर्तन के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार ठहराते हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक हुसैन ओबामा तक इस मुद्दे पर भारत को घेरते रहे थे। इसके विपरीत हाल ही में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर लंदन में होने वाली संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के 26वीं बैठक (सीपीओ26) के पहले मोदी सरकार ने वैश्विक स्तर पर संदेश दे दिया है कि जलवायु परिवर्तन के चलते होने वाले नुकसान के लिए भारत को मुआवजा मिलना चाहिए, जिसकी कीमत करीब 100 अरब डॉलर की है।

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आक्रामक है मोदी सरकार

लंदन में संयुक्त राष्ट्र की जलवायु संबधी 26वीं बैठक होने वाली है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी शिरकत करेंगे। वहीं, अब इस बैठक के पहले मोदी सरकार का पक्ष रखते हुए पर्यावरण मंत्रालय के प्रमुख सचिव रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने कहा है कि साल 2009 की कोपेनहेगन की बैठक में विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद करने के लिए विकासशील देशों को प्रति वर्ष 100 अरब डॉलर की मदद का भरोसा दिया था। इसके विपरीत अब तक यह रकम नहीं मिली है, 2009 से यह राशि बढ़कर अब 1000 अरब डॉलर हो गई है।

पर्यावरण सचिव ने कहा कि भारत को जो राशि मिलना तय हुआ था, वो अब तक नहीं पहुंची है, जबकि 12 वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है। गुप्ता ने कहा, “बाढ़ और चक्रवातों की गंभीरता तथा आवृत्ति में वृद्धि हुई है और यह जलवायु परिवर्तन के कारण है। विश्व स्तर पर 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि विकसित देशों के ऐतिहासिक उत्सर्जन के कारण हुई है। हमारे लिए मुआवजा होना चाहिए।वैश्विक स्तर पर भारत की संभावित आक्रामकता का संकेत देते हुए रामेश्वर गुप्ता ने कहा, “विकसित देशों को नुकसान का खर्च वहन करना चाहिए, क्योंकि वे इसके लिए कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं।”

भारत में अमेरिका-चीन से कम कार्बन उत्सर्जन

वास्तविक स्थिति से इतर विकासशील देशों को विकसित देशों के कारण सर्वाधिक मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। एक यथार्थ सत्य ये भी है कि भारत का प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन प्रति वर्ष मात्र1.96 टन ही है, जबकि चीन का यही आंकड़ा 8.4 और अमेरिका का 18.6 टन तक का है। ये दिखाता है कि भारत पर जलवायु परिवर्तन के नाम पर दबाव बनाने की केवल कोशिश की जाती है, क्योंकि असल में सबसे ज्यादा नुकसान तो अमेरिका और चीन जैसे देश ही करते हैं। इसको लेकर मंत्रालय के सचिव रामेश्वर प्रसाद गुप्ता ने कहा, “हम विकसित देशों के कारण पीड़ित हैं। विश्व का औसत प्रति व्यक्ति उत्सर्जन प्रति वर्ष 6.64 टन है।”  

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विकसित देशों को सख्त संदेश

पर्यावरण सचिव के संबोधन से स्पष्ट है कि मोदी सरकार अब जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर वैश्विक कूटनीति में आक्रामकता लाने वाली है, जिसके कारण जलवायु परिवर्तन को लेकर होने वाली बैठक अत्यधिक अहम हो गई है। उम्मीद ये भी है कि इस बैठक में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कार्बन उत्सर्जन के मुद्दे पर पश्चिमी देशों को स्पष्ट संदेश दे सकते हैं, जिसकी मुख्य वजह पश्चिमी देशों की नीयत है। वे अपना विकास कर लेने के बाद भारत की विकास यात्रा में अडंगा लगा रहे हैं।

बताते चले कि पश्चिमी देशों ने पहले तो प्रकृति का असीमित दोहन किया और फिर जलवायु संबंधी दिक्कतों को लेकर मुआवजा देने की बात कही। इसके विपरीत आज की स्थिति में न तो विकसित देशों ने कार्बन उत्सर्जन में कोई कटौती की है और न ही मुआवजा राशि दी है। दूसरी ओर भारत सरकार लगातार कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों में अग्रसर रही है। मोदी सरकार द्वारा सौर ऊर्जा को विस्तार देने के साथ ही जलवायु संरक्षण को विस्तार देने पर काम किया जा रहा है। इन प्रयासों को नजरअंदाज कर ये देश अब भारत की विकास यात्रा से कुंठित होकर भारत को ही जलवायु परिवर्तन का अहम जिम्मेदार बता रहे हैं।

ऐसे में विकसित देशों के इस रुख को झटका देते हुए मोदी सरकार ने जलवायु परिवर्तन संबंधी शिखर सम्मेलन से पहले भारत को अब तक हुए नुकसान का मुआवजा देने की मांग कर डाली है। मोदी सरकार का ये रुख अमेरिका, चीन, ब्रिटेन समेत सभी विकसित देशों को सर्वाधिक चुभने वाला है, जो इसके लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

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