पांच साल पहले 8 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 1,000 रुपये और 500 रुपये के पुराने नोटों के विमुद्रीकरण की घोषणा की थी और इस अभूतपूर्व निर्णय का एक प्रमुख उद्देश्य डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और काले धन के प्रवाह को रोकना था। विमुद्रीकरण के पांच साल बाद लोग कैशलेस भुगतान मोड और डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में लोगों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि देखी गई है। आधिकारिक डेटा के अनुसार कार्ड, नेट बैंकिंग और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस सहित विभिन्न तरीकों से डिजिटल यूपीआई देश में भुगतान के एक प्रमुख माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा है।
डिजिटल भुगतान के तरीकों की बढ़ती लोकप्रियता के पीछे विमुद्रीकरण ही कारण रहा है। साल 2020-21 के दौरान प्रचलन में बैंक नोटों में जो भी थोड़ी बहुत वृद्धि हुई थी, वह मुख्य रूप से महामारी के कारण लोगों द्वारा नकदी के एहतियाती प्रयोग के कारण था। UPI को 2016 में लॉन्च किया गया था और कुछ अपवादों और कारणों को छोड़कर इसके माध्यम से लेन-देन महीने-दर-महीने बढ़ ही रहा है। मूल्य के संदर्भ में अक्टूबर 2021 में इस माध्यम से लेनदेन 7.71 लाख करोड़ रुपये या 100 बिलियन अमेरिकी डालर से अधिक था। अक्टूबर में UPI के जरिए कुल 421 करोड़ ट्रांजेक्शन किए गए। इस लेख के माध्यम से हम इसी तथ्य का अवलोकन और मूल्यांकन करेंगे कि क्या विमुद्रीकरण ने नकद रहित डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है।
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विमुद्रीकरण, इंटरनेट की कनेक्टिविटी और डिजिटलीकरण में प्रगति
Google और द बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप की रिपोर्ट “डिजिटल पेमेंट्स 2020” के अनुसार भारत में डिजिटल भुगतान साधनों के माध्यम से किए गए कुल भुगतान 2020 तक लगभग 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर पहुंच गए थे। रिपोर्ट में यह भी अनुमान लगाया गया है कि गैर-नकद लेनदेन, जो वर्तमान में सभी उपभोक्ता भुगतानों का लगभग 22% है, 2023 तक नकद लेनदेन से आगे निकल जाएगा। साथ ही जैसे-जैसे 3जी और 4जी इंटरनेट कनेक्शन की संख्या बढ़ेगी और मोबाइल उपकरणों की कीमत घटेगी, वैसे ही इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या में भी तेजी से इजाफा देखने को मिल सकता है।
एक डेलॉइट और एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (ASSOCHAM) के अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि भारत में साल 2020 तक 600 मिलियन इंटरनेट उपयोगकर्ता होंगे और यह लक्ष्य सफलतापूर्वक प्राप्त भी किया जा चुका है। परन्तु, अभी भी नकद भुगतान का एक आकर्षक साधन बना हुआ है, क्योंकि भुगतानकर्ता और प्राप्तकर्ता को कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ता है।
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मोदी सरकार और नीति आयोग के सामूहिक प्रयास
2014 में पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया अर्थात नीति आयोग ने डिजिटल भुगतान पर जागरूकता पैदा करने के लिए एक देशव्यापी अभियान शुरू किया। यह विभिन्न मंत्रालयों और प्रशासनिक सेवाओं में सरकारी कर्मचारियों के लिए प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन कर रहा है। नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा, “हम डिजिटल भुगतान को एक जन आंदोलन बनाना चाहते हैं। यह केवल मंत्रालयों और राज्यों के बारे में नहीं है, हम पंचायत और तालुका स्तर (जमीनी स्तर की प्रशासनिक इकाइयों) तक जाएंगे। हमारे पास लोगों की पूरी टीम है जो लोगों को डिजिटल तकनीक सिखाएगी। यह एक संपूर्ण अभियान है, जिसमें हम डिजिटल होने में गर्व की भावना पैदा करना चाहते हैं।”
विमुद्रीकरण के कारण वित्तीय व्यवस्था तक आमजन की पहुंच
विमुद्रीकरण ने नकद के प्रभाव को खत्म किया, इस कारण लोगों ने वित्तीय संस्था तक अपनी पहुंच को सुनिश्चित किया, इसके अभ्यस्त बनें। सरकार ने भी आधार और पैन का प्रयोग कर इसे सरल बनाया। क्रेडिट सुइस ग्रुप एजी की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत का 72% उपभोक्ता लेनदेन नकद में होता है, जो चीन की तुलना में दोगुना है। डिजिटलीकरण को विकसित करने और देश के सभी क्षेत्रों में लोगों के सभी वर्गों को शामिल करने के लिए अधिक मूल्य वर्धित सेवाओं, बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी, नियामक समर्थन और बाजार शिक्षा की आवश्यकता है।
मोदी सरकार ने इसे लेकर वाणिज्यिक स्तर पर काफी सराहनीय प्रयास किया है। मार्च 2019 के अंत तक जमा खातों की संख्या बढ़कर 217.40 करोड़ हो गई है। इनमें स्थानीय क्षेत्र के बैंक, भुगतान बैंक, लघु वित्त बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों सहित सभी वाणिज्यिक बैंकों के जमा खाते शामिल हैं। 30 अक्टूबर, 2019 तक 37.36 करोड़ मूल बचत जमा (BSBD) खाते थे। ऐसे खातों से डिजिटल भुगतान शुरू करने में बैंक खातों की उपलब्धता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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डिजिटलीकरण में प्रगति के दिखते परिणाम
देश में नकद भुगतान का कोई सटीक माप नहीं है, परंतु विभिन्न डिजिटल भुगतानों की प्रगति को सटीक रूप से मापा जा सकता है। कुल मिलाकर पिछले 5 वर्षों में देश में डिजिटल भुगतानों में मात्रा और मूल्य के मामले में क्रमशः 61% और 19% की सीएजीआर देखी गई है, जो डिजिटल भुगतान की ओर एक तेज बदलाव को प्रदर्शित करता है।
डिजिटल भुगतान के भीतर खुदरा इलेक्ट्रॉनिक भुगतान, जिसमें क्रेडिट ट्रांसफर, एनईएफटी, फास्ट पेमेंट (आईएमपीएस और यूपीआई)} और डायरेक्ट डेबिट जैसी सुविधाएं शामिल हैं। इस कारण नकद रहित भुगतान के मामले में 65% और 42% की वृद्धि देखी गई है। कार्ड भुगतान को अपनाने से संपर्क रहित भुगतान और टोकन प्रौद्योगिकियों के रूप में नवाचारों का समर्थन किया गया है, जो विकास में योगदान कर रहे हैं।इसके अलावा भुगतान के लिए कार्ड का उपयोग नकद की उपयोग की तुलना में बढ़ रहा है।
देश में कई भुगतान प्रणालियां अब सप्ताह में सातों दिन 24 घंटे काम करती हैं, जो ग्राहकों को उनके द्वारा दी जाने वाली सुविधा के कारण डिजिटल भुगतान की ओर धकेल रही हैं। भारत में तत्काल भुगतान प्रणाली (आईएमपीएस) और एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई) तेजी से भुगतान के माध्यम के रूप में उभर रहे हैं। इसके अलाव 24x7x365 आधार पर (आधे घंटे के निपटान के साथ) ग्राहकों के समस्याओं का निवारण होता है।
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डेटा और एनालिटिक्स कंपनी GlobalData के अनुसार, भारत में डिजिटल कैश महत्वपूर्ण वृद्धि की ओर अग्रसर है। कंपनी द्वारा 2017 के कंज्यूमर पेमेंट्स इनसाइट सर्वे के अनुसार, भारत डिजिटल कैश अपनाने के मामले में वैश्विक स्तर पर शीर्ष बाजारों में से एक है, जिसमें 55.4% सर्वेक्षण उत्तरदाताओं ने संकेत दिया है कि वे इसका उपयोग करते हैं। भारत के बाद चीन और डेनमार्क का स्थान है।
सकल घरेलू उत्पाद में डिजिटल भुगतान का मूल्य 2014-15 में 660% से बढ़कर 2018-19 में 862% हो गया, जिससे भारत में डिजिटल भुगतान में बदलाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अन्य सीपीएमआई देशों के साथ तुलना करने से पता चलता है कि भारत अर्जेंटीना, ब्राजील, चीन, दक्षिण कोरिया, तुर्की और यूके जैसे कुछ देशों में है, जहां जीडीपी के प्रतिशत के रूप में डिजिटल भुगतान का मूल्य बढ़ा है।
निष्कर्ष
विमुद्रीकरण वैश्विक और राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली कोई प्रथम और एकमात्र घटना नहीं थी। आपकी जागरूकता और ज्ञान के लिए बता दें कि अमेरिका, ब्रिटेन, नाइजीरिया और पाकिस्तान आदि देशों ने भी समय-समय पर विशेष आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विमुद्रीकरण किया है। भारत में भी मोरारजी देसाई की सरकार में विमुद्रीकरण किया गया था। खास बात तो यह है कि मोदी सरकार के उलट, उस समय उन्हें आरबीआई के गवर्नर से सहमति भी प्राप्त नहीं थी। विमुद्रीकरण के 5 साल पूरे होने पर विभिन्न संस्थाएं और लोग अपने-अपने स्तर पर इसके सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव को चिन्हित करेंगे।
परंतु, आमजन को यह समझना होगा की विमुद्रीकरण एक पुनीत उद्देश्य और एक नवीन अर्थव्यवस्था के निर्माण के लिए किया गया एक सूचित और सराहनीय प्रयास था। हो सकता है इसमें कुछ त्रुटियां हों, जैसे कि संपूर्ण नकदी का वापस बैंकों में जमा हो जाना इत्यादि, परंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि इसने अर्थव्यवस्था को डिजिटलीकरण की राह पर धकेला। आज एक सब्जीवाले से लेकर एक साइकिल वाले तक सभी इस माध्यम का उपयोग करते हैं। अगर आप सिर्फ अपने मोबाइल फोन के माध्यम से देश के दूसरे कोने में बैठे अपने प्रियजनों को या प्रियजनों के हेतुक राशि का आदान-प्रदान कर रहे हैं, तो निश्चित रूप से इसके पीछे सरकार के सराहनीय कदम ही हैं। एक नागरिक के तौर पर आपको इतना कृतज्ञ तो होना ही चाहिए।