युद्ध क्षेत्र में अपने स्वजनों को अपने विरुद्ध शस्त्र उठाए देखकर अर्जुन संशयग्रस्त और निराश हो गए थे, उनकी निर्णय क्षमता शून्य हो गई थी। संभवत: किसी भी व्यक्ति के लिए यह सबसे बड़ा निर्णय होगा कि यदि वह अपने कर्तव्य का पालन करेगा, तो इसके कारण उसके अपने स्वजनों को कष्ट उठाना पड़ेगा। ऐसे में अर्जुन को संशय मुक्त करने के लिए तथा उन्हें निर्द्वन्द्व होकर धर्म का पालन करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को भगवद् गीता सुनाई। गीता ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र जैसी विकट परिस्थिति में भी निर्णय करने की शक्ति प्रदान की, ऐसे में यदि साधारण व्यक्ति अपने जीवन में आने वाले उतार चढ़ाव में सही निर्णय क्या है, इसका निर्धारण करना चाहे तो गीता सबसे उपयुक्त निर्देशक है। भगवद् गीता की महानता को ध्यान में रखते हुए अहमदाबाद के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट (आईआईएम) ने निर्णय किया है कि वो मैनेजमेंट स्टडीज के विद्यार्थियों को गीता पढ़ाना शुरू करेंगे।
इससे छात्रों की क्षमता होगी विकसित
प्रबंधन शास्त्र की पढ़ाई करने वाले विद्यार्थियों के लिए निर्णय क्षमता का विकास सबसे महत्वपूर्ण घटक है और भगवद् गीता इसके लिए सबसे उपयुक्त माध्यम बन सकती है। 13 दिसंबर से शुरू हो रहे कार्यक्रम में समकालीन प्रबंधन अवधारणाओं (मैनेजमेंट कांसेप्ट), संघर्षों (कॉन्फ्लिक्ट), विषय की दुविधाओं (डाइलेमा) और ट्रेड ऑफ इन बिजनस आदि विषयों को समझने के लिए गीता से सीख ली जाएगी।
आईआईएम प्रशासन का कहना है कि भगवद् गीता पर शुरू हो रहे नए कोर्स से विद्यार्थियों को अपने करियर में आने वाली कठिनाइयों से जूझने में सहायता मिलेगी। अधिकारियों ने बताया, “पाठ्यक्रम प्रतिभागियों को आत्मविश्वास के साथ अपने करियर में चुनौतीपूर्ण समय का सामना करने की क्षमता विकसित करने में सक्षम करेगा। कार्यक्रम का उद्देश्य उन्हें स्वयं को विकसित करने के तरीकों के बारे में संवेदनशील बनाना है।”
प्रोफेसर माहेश्वरी ने कहा कि उन्हें पाठ्यक्रम शुरू करने का विचार तब आया, जब उन्होंने महसूस किया कि भगवान कृष्ण के जीवन और उनकी शिक्षा, महान कौशल का विकास करते हैं जो निगमों में नेतृत्व संकट को बदल सकता है।
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अन्य मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट को भी लेनी चाहिए सीख
आईआईएम अहमदाबाद द्वारा शुरू किए जा रहे इस कोर्स को अन्य मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट में भी लागू करना चाहिए। भगवद् गीता भारत का पवित्र धार्मिक ग्रंथ और इतिहास का अभिन्न अंग है और इससे सीख लेकर इसे विद्यालय स्तर से लेकर उच्चतर शिक्षा के स्तर तक अलग-अलग कोर्स के माध्यम से पढ़ाया जाना चाहिए। यह एक महत्वपूर्ण बदलाव है कि एक ऐसे शैक्षणिक संस्थान में, जहां भारत के सर्वोत्कृष्ट विद्यार्थियों का चयन होता है, वहां भगवद् गीता का पाठ करवाया जाएगा।
पिछले दिनों काशी हिंदू विश्वविद्यालय में भी इसी प्रकार का एक कोर्स शुरू हुआ है, जिसमें प्राचीन भारत की महिला योद्धाओं, रणनीति व युद्धकौशल के बारे में पढ़ाया जाएगा। सैन्य प्रशिक्षण के लिए भी अब गीता और अर्थशास्त्र को कोर्स में शामिल किया गया है। UPSC को भी अपने सिलेबस में भगवद् गीता से जुड़े कोर्स शामिल करने चाहिए! आईआईएम जैसे भारत के बड़े शिक्षण संस्थानों को प्राचीन भारतीय साहित्य और सनातन संस्कृति में संचित ज्ञान के भंडार का उपयोग कर आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करना चाहिए।
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